Agra Seat: किसके सिर सजेगा ताज? समझें सियासी समीकरण; सुरेश चंद कर्दम और एसपी सिंह बघेल के बीच मुकाबला
Agra Lok Sabha election 2024 यमुना एक्सप्रेसवे के नजदीक छलेसर में परचून की दुकान पर बैठे प्रह्लाद सिंह कहते हैं कि हुआ तो बहुत कुछ है लेकिन महंगाई पर भी चर्चा होनी चाहिए। युवाओं के सुर भी सवालों भरे हैं। कुआंखेड़ा के अखिलेश कहते हैं महंगाई पर बात कौन करेगा? अपनी-अपनी बातें सुनाई जाती हैं लेकिन असल में कोई तो हो जो युवाओं की बात करे।

जागरण संवाददाता, आगरा। UP Lok Sabha election 2024: यमुना तट... ताजमहल... ऐतिहासिक किला... कुछ समझे! अरे हुजूर, हम ताजनगरी आगरा में प्रवेश कर चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों में यहां बहुत कुछ बदला है और अब चुनावी तपिश भी बढ़ती जा रही है। अगर यहां के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो अब तक हुए लोकसभा चुनावों में सिर्फ तीन प्रत्याशी एक-एक बार जीते। बाकी को मतदाताओं ने फिर से ‘ताज’ पहनाया। आगरा सुरक्षित सीट के चुनावी परिदृश्य पर डा. राहुल सिंघई की रिपोर्ट...
मुगलों की राजधानी रहे शहर में एक दशक पहले ताजमहल के आसपास पुरानी बस्तियों के बीच सितारा होटलों की ही चमक नजर आती थी। अब ताज के चौड़े रास्ते और सड़क के ऊपर दौड़ती मेट्रो, फतेहाबाद रोड पर बहुमंजिला इमारतें, रात में तीन रंग की रोशनी से नहाई सड़कें, विकसित होते पार्क और यमुना पार क्षेत्र में बने हेलीपोर्ट बताते हैं कि ताज का शहर बदल रहा है।
राजनीतिक इच्छा शक्ति से बदलाव की बयार साफ नजर आती है। आजादी के बाद से 1971 तक कांग्रेस का गढ़ रहे आगरा में राजनीतिक बदलाव का दौर राम मंदिर आंदोलन के दौरान शुरू हुआ। 1991 में पहली बार भाजपा ने जीत हासिल की। 1999 और 2004 के चुनाव को छोड़ दें तो भाजपा की पकड़ मजबूत बनी हुई है। इस बार भाजपा ने केंद्रीय मंत्री व सांसद प्रो. एसपी सिंह बघेल को फिर से मैदान में उतारा।
प्रत्याशी घोषित होने के साथ उनका स्थानीय स्तर पर विरोध हुआ। विपक्ष इसे समझ पाता, उससे पहले ही डैमेज कंट्रोल शुरू हो गया। इसके साथ ही प्रचार ने भी गति पकड़ ली। संगठन के साथ सरकार के मंत्रियों को मैदान में उतारा जा चुका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी प्रत्याशी के पक्ष में पिछले दिनों ही सम्मेलन कर चुके हैं।
बसपा ने पूजा अमरोही पर लगाया दांव
बसपा इस बार पूजा अमरोही को लेकर आई है। भले ही बसपा का प्रचार बस्तियों में नजर नहीं आ रहा हो, लेकिन कैडर वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने के लिए गोपनीय बैठकें की जा रही हैं। पुराने कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया जा रहा है। प्रत्याशियों के मंथन में कई दिनों तक उलझी रही सपा ने सबसे आखिर में पुराने बसपाई सुरेश चंद कर्दम को टिकट दिया है।
राजबब्बर के ग्लैमर के सहारे 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव जीतने वाली सपा उसके बाद यहां कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर पाई है। ऐसे में सपा के लिए चुनौती बड़ी है। पुराने बेलनगंज क्षेत्र के दुकानदार बांकेलाल कहते हैं कि हमें बदलाव की क्या जरूरत, सब कुछ ठीक-ठीक है। शहर बदल रहा है और कानून व्यवस्था सुधर चुकी है।
पवन कहते हैं कि ये बात सच है कि मेट्रो समय से पहले शुरू हो गई। शहर में विकास हुआ और चमक दमक बढ़ी, लेकिन रोजगार पर बात भी होना चाहिए। पिछले 10 वर्षों में दंगे और बवाल की छवि भी छंट चुकी है। यहां रहने वाले मुअजिज्ज शख्स सिराज कुरैशी कहते हैं कि पिछले एक दशक में बड़ा बदलाव नजर आता है। लोग बच्चों के भविष्य की सोच आगे बढ़ रहे हैं। अब यहां बवाल नहीं होते।
भाजपा का क्लीन स्वीप
2014 से बदले राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया। आगरा और फतेहपुर सीकरी सीट पर 2014 के बाद 2019 में जीत हासिल की। इसके बाद विधानसभा चुनाव में भी यही स्थिति रही। सभी नौ विधानसभा सीटें आगरा उत्तर, आगरा दक्षिण, ग्रामीण, छावनी, एत्मादपुर, फतेहाबाद, बाह, फतेहपुर सीकरी और खेरागढ़ भाजपा के खाते में हैं।
अब तक हुए सांसद
महंगाई पर भी चर्चा होनी चाहिए
यमुना एक्सप्रेसवे के नजदीक छलेसर में परचून की दुकान पर बैठे प्रह्लाद सिंह कहते हैं कि हुआ तो बहुत कुछ है, लेकिन महंगाई पर भी चर्चा होनी चाहिए। युवाओं के सुर भी सवालों भरे हैं। कुआंखेड़ा के अखिलेश कहते हैं महंगाई पर बात कौन करेगा?
अपनी-अपनी बातें सुनाई जाती हैं, लेकिन असल में कोई तो हो जो युवाओं की बात करे। सिर्फ बड़ी-बड़ी बातों से पेट नहीं भरता। रिटायर्ड प्रोफेसर अरुणोदय बाजपेयी कहते हैं कि यह परंपरागत सीट रही है। पिछले चुनाव में भाजपा के खिलाफ कुछ माहौल था, लेकिन यहां अब कुछ नजर नहीं आता। सबसे बड़ी बात यह है कि विपक्ष कमजोर है। ये भी कहा जा सकता है कि चुनाव ठंडा है और तस्वीर साफ।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।