पंखुड़ी चरखे से गांधीजी ने काता था सूत, बनवाए थे कपड़े, दिया था संदेश
लकड़ियों को जोड़कर बने सूत कातने के यंत्र को उन्होंने पूरी दुनिया में ऐसी पहचान दी, कि लोग आज तक नहीं भूले हैं। इस पर भारतीय फिल्मों गाने भी फिल्माए गए हैं
आगरा: लकड़ियों को जोड़कर बने सूत कातने के यंत्र को उन्होंने पूरी दुनिया में ऐसी पहचान दी, कि वह उनके नाम का ही पर्याय बन गया। हम बात कर रहे हैं महात्मा गांधी की, जिन्होंने अपने सरल स्वभाव और सादगी से चरखे को सार्वभौमिक कर दिया। उनसे जुड़ी एक ऐसी ही याद आगरा में भी संरक्षित है। अपने आगरा प्रवास के दौरान उन्होंने जिस खास चरखे से सूत काता था, वह पालीवाल पार्क स्थित जोंस लाइब्रेरी में बने नगर निगम म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहा है।
यह चरखा बेहद खास है। अन्य चरखों की तरह यह तीन टांगों पर खड़ा नहीं रहता, बल्कि लेटी अवस्था में होने के कारण इसे लेटा चरखा भी कहा जाता है। इसका तकनीकि नाम पंखुरी चरखा है।
जोंस लाइब्रेरी की शुरूआत कराने वाले और इतिहास के जानकार राजीव सक्सेना बताते हैं कि सितंबर 1929 को जब गांधीजी स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए आगरा आए थे और यमुना पार स्थित गांधी आश्रम में ठहरे थे, उस समय उनकी मांग पर यह चरखा उन्हें दिया गया था। इस पर उन्होंने 10 दिन तक सूत काता था। उस समय से यह चरखा ऐसे ही रखा है और सूत की तकली भी संरक्षित की गई है।
स्वतंत्रता सेनानी चिम्मन लाल जैन ने किया भेंट
जोंस पब्लिक लाइब्रेरी के सहायक लाइब्रेरियन रवींद्र सिंह भदौरिया ने बताया कि चरखे को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चिम्मन लाल जैन ने लाइब्रेरी में बने म्यूजियम के लिए भेंट किया था। राजीव सक्सेना की प्रयासों के बाद उन्होंने इसे तत्कालीन नगरायुक्त इंद्र विक्रम सिंह को लाइब्रेरी में प्रदर्शन के लिए सुपुर्द किया था। लोगों में चरखे को देखने की रहती है उत्सुकता
सहायक लाइब्रेरियन बताते हैं कि हालांकि लाइब्रेरी में बने म्यूजियम को देखने कम ही लोग आते हैं, लेकिन जब उन्हें पता चलता है कि यहां इतना खास चरखा रखा है, तो वह उसे देखना नहीं भूलते। यदि इसका प्रचार हो, तो म्यूजियम के लिए को भी फायदा होगा।
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