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    शीरोज हैंग आउट कैफे की रुकैया को 22 वर्ष बाद मिला न्याय, शादी से मना करने पर बड़ी बहन के देवर ने फेंका था एसिड

    Updated: Wed, 01 Oct 2025 10:57 AM (IST)

    आगरा की शीरोज हैंगआउट कैफे में काम करने वाली रुकैया को 22 साल बाद सरकार से 5 लाख रुपये का मुआवजा मिला। 2002 में अलीगढ़ में रुकैया पर उसकी बड़ी बहन के देवर ने तेजाब फेंका था क्योंकि उसने शादी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस ने इस मामले में रुकैया की मदद की और उसे न्याय दिलाने के लिए पैरवी की।

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    एसिड अटैक सर्वाइवर रुकैया के साथ सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता नरेश पारस सौजन्य: सामाजिक कार्यकर्ता

    जागरण संवाददाता, आगरा। शीरोज हैंगआउट कैफे में काम करने वाली रुकैया को 22 वर्ष बाद नवरात्र पर मुआवजा मिला। सरकार की ओर से मुआवजे में पांच लाख रुपए की राशि मिली है। रुकैया के लिए 22 वर्ष की काली रात के बाद अब उम्मीदों की सुबह हुई है। सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता नरेश पारस के प्रयासों से रुकैया को संभव हो सका।

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    शीरोज हैंगआउट कैफे में काम करने वाली रुकैया पर अलीगढ़ में वर्ष 2002 में फेंका था तेजाब

    एत्माद्दौला क्षेत्र की रहने वाली 14 वर्षीय की रुकैया वर्ष 2002 में बड़ी बहन इशरत जहां की ससुराल तुर्कमान गेट, कोतवाली अलीगढ गई थी। बहन का देवर आरिफ उससे एकतरफा प्रेम करने लगा। शादी का प्रस्ताव दिया लेकिन रुकैया ने इंकार कर दिया।बौखलाकर उसने रुकैया पर तेज़ाब डाल दिया। जिससे उसका चेहरा बुरी तरह जल गया। रुकैया की जान तो बच गई,लेकिन चेहरा खराब हो गया।

    इस दौरान बेइंतहा दर्द सहा, उसकी 12 सर्जरी हुईं। स्वजन ने बड़ी बहन का घर बिगड़ने के डर से दबाव में मुकदमा दर्ज नहीं कराया। कुछ वर्ष बाद भाई ने उन्हें न्याय दिलाने के लिए अभियोग दर्ज कराने का प्रयास किया। पुलिस ने कई वर्ष पुराना मामला होने का हवाला देते हुए कार्रवाई नहीं की। छांव फाउंडेशन द्वारा संचालित शीरोज हैंग आउट कैफे पर उसने काम करना शुरू किया।

    बड़ी बहन का देवर था आरोपित, 20 वर्ष तक सहा एसिड अटैक का दर्द तब दर्ज हुआ था मुकदमा

    दो वर्ष पूर्व वह तत्कालीन एडीजी (वर्तमान डीजीपी) राजीव कृष्ण शीरोज हैंग आउट कैफे में गए थे। रुकैया उनसे मिलीं। अपनी आप बीती सुनाई। मामला तत्कालीन पुलिस आयुक्त डा. प्रीतिंदर सिंह के संज्ञान में आने के बाद आरोपित के खिलाफ एत्माद्दौला थाने में मुकदमा दर्ज किया गया। बाद में विवेचना अलीगढ़ के थाना कोतवाली स्थानांतरित कर दी गई। मुकदमे के बाद पीड़िता पैरवी करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी।

    कानूनी लड़ाई कैसे लड़ी जाएं, इसकी जानकारी उसे नहीं थी। सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता नरेश पारस ने मामले की पैरवी शुरू की। आगरा और अलीगढ़ प्रशासन से मजबूत पैरोकारी की। जिसके बाद सरकार से उसे पांच लाख रुपए का मुआवजा मिला।

    हादसा भी न डिगा सका रुकैया का हौसला

    आरोपित आरिफ जेल में बंद है। नरेश पारस रुकैया को न्याय दिलाने के लिए न्यायालय में भी पैरवी कर रहे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में पैरवी के लिए जाते वक्त बस कानपुर में दुर्घटना की शिकार हो गई। जिसमें बस चालक समेत दो लोगों की मृत्यु हो गई थी। नरेश पारस भी घायल हो गए थे। यह हादसा भी उनके हौसलों को डिगा नहीं सका और रुकैया की मजबूत पैरवी की। अभी भी हाईकोर्ट में पैरवी कर रहे हैं। नरेश पारस कहते हैं कि आरोपित को सजा दिलाने तक पैरवी करेंगे।