जमीं के गर्भ से निकले अंधकार युग के साक्ष्य
निर्लोष कुमार, आगरा: धरा को रत्नगर्भा कहा जाता है। रत्नों व कीमती धातुओं के साथ उसके अंदर इतिहास की
निर्लोष कुमार, आगरा: धरा को रत्नगर्भा कहा जाता है। रत्नों व कीमती धातुओं के साथ उसके अंदर इतिहास की बिखरी कड़िया भी दबी हुई हैं। गोहाना खेड़ा में जमीं के अंदर से भारतीय इतिहास के अंधकार युग का 'सच' बाहर आया है। यहां ऐसे साक्ष्य मिले हैं, जिससे यहां 3500 वर्ष पहले विकसित नगर आबाद होने के अनुमान लगाए जा रहे हैं।
अलीगढ़ के सासनी में गोहाना खेड़ा है। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के आगरा सर्किल के अंतर्गत आता है। करीब डेढ़ किमी की परिधि में विस्तीर्ण यह प्राचीन टीला एएसआइ द्वारा संरक्षित है। विभाग इसे प्राचीन तो मानता था, लेकिन प्राचीनता तय नहीं हो पाई थी। विभाग द्वारा जब यहां टीले को संरक्षित कर अतिक्रमण से बचाने को चहारदीवारी का निर्माण शुरू कराया तो इतिहास की कड़ियां एक-दूसरे से जुड़ती चली गई। दीवाल की नींव को कराई गई खोदाई में करीब 3500 वर्ष पुराने चित्रित धूसर मृदभांड (पेंटेड ग्लेज्ड वेयर) और कृष्ण लेपित मृदभांड (ब्लैक स्लिप्ड वेयर) मिलना शुरू हो गए। जिससे विभागीय अफसर भी चकित रह गए। कृष्ण लेपित मृदभांड, चित्रित धूसर मृदभांड के साथ प्रचलन में रहे हैं। तीसरी सदी ईसा पूर्व तक इनका प्रचलन था। जिस तरह के साक्ष्य गोहाना खेड़ा से मिले हैं, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि वहां प्राचीन काल में कोई विकसित नगर रहा होगा, जिसके चारों ओर परकोटा बना था। टीले पर इसके साक्ष्य भी मिलते हैं।
अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. भुवन विक्रम बताते हैं कि इस क्षेत्र की यह काफी प्राचीन मृदभांड परंपरा है। जो मृदभांड यहां मिले हैं, वह करीब 3500 वर्ष पुराने हैं।
अहिक्षेत्रा व अतरंजी खेड़ा में मिले हैं ऐसे साक्ष्य
गोहाना खेड़ा में जिस तरह के पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं, उसी तरह के मृदभांड अहिक्षेत्रा (बरेली) और अतरंजी खेड़ा (कासगंज) में टीलों के उत्खनन में मिलते रहे हैं। अहिक्षेत्रा में एएसआइ और अतरंजी खेड़ा में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने पूर्व में उत्खनन कराया था। गोहाना खेड़ा में इससे पहले उत्खनन नहीं हुआ है।
अंधकार युग
भारतीय इतिहास में सिंधु सभ्यता (3300 से 1700 ईसा पूर्व) के बाद छठी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य के इतिहास के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती है। भगवान महावीर और गौतम बुद्ध के जन्म के बाद का इतिहास अभिलेखों में है। इस युग को अंधकार युग कहा जाता है। लगातार शोध और उत्खनन में पुरातात्विक साक्ष्य मिलने के बाद अंधकार युग कही जाने वाली समयावधि की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के बारे में अब अच्छी जानकारी मिल रही है।
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