माता-पिता की संपत्ति में बहनों के अधिकार पर बड़ा फैसला, त्यागपत्रों को उपहार न मानने का निर्देश
माता-पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकार को लेकर अदालत का महत्वपूर्ण फैसला आया है। अदालत ने कहा कि बहनों द्वारा दिए गए त्यागपत्रों को उपहार नहीं माना जाएगा। बेटियां अब संपत्ति में बराबर की हकदार होंगी, भले ही उन्होंने पहले अपना हिस्सा छोड़ दिया हो। यह फैसला महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को मजबूत करता है और लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

माता-पिता की संपत्ति में बहनों के अधिकार पर बड़ा फैसला, त्यागपत्रों को उपहार न मानने का निर्देश
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। माता-पिता की संपत्ति में बेटियों के हिस्से के अधिकार पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम निर्णय पारित किया है। अदालत ने माना है कि बहनों द्वारा अपने भाई के पक्ष में संपत्ति में अधिकारों का त्याग करना भारतीय स्टाम्प अधिनियम- 1899 के प्रयोजनों के लिए उपहार नहीं कहा जा सकता।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए व्यक्ति को राहत दी। पांच बहनों द्वारा याची के पक्ष में निष्पादित त्यागपत्रों को जब्त करने के प्रशासन के निर्णय को रद कर दिया।
याचिका के अनुसार याचिकाकर्ता के माता-पिता संयुक्त रूप से संपत्ति के मालिक थे और अपीलकर्ता ने अपने पिता की मृत्यु पर इसका 50 प्रतिशत हिस्सा वसीयत में दे दिया था।
वहीं, मां के निधन पर संपत्ति पांचों बहनों सहित सभी भाई-बहनों को हस्तांतरित हो गई थी। हालांकि, बहनों ने अपीलकर्ता के पक्ष में त्यागपत्र निष्पादित कर दिए थे, लेकिन जिला प्राधिकारियों ने इन दस्तावेजों को उपहारपत्र माना और स्टाम्प शुल्क की कमी के कारण इन्हें जब्त कर लिया गया।
दायर की गई अपील में अदालत को इस प्रश्न को तय करना था कि क्या स्टाम्प अधिनियम के प्रयोजनों के लिए बहनों द्वारा अपने भाई के पक्ष में संपत्ति में अधिकारों के त्याग को उपहार माना जा सकता है?
मामले पर विस्तार से चर्चा के बाद अदालत ने पाया कि यह लेन-देन परिवार के सदस्यों के बीच हुआ था और इसमें आर्थिक लाभ की संभावनाएं बहुत कम हैं। इसलिए पीठ का विचार है कि त्याग विलेखों ने अपीलकर्ता के पहले से मौजूद अधिकार में केवल अधिकार जोड़ा है। ऐसे में स्टाम्प अधिनियम के प्रयोजनों के लिए संपत्ति के अधिकारों को उपहार दस्तावेज मानकर उक्त आदेश में गलती की गई है। अदालत ने माना कि त्याग अधिकारों के अलगाव के समान नहीं है। ऐसे में अदालत ने जिला प्राधिकारियों को जब्त किए गए दस्तावेज को वापस करने का आदेश दिया।
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