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    शेषनाग झील के दर्शन बिना अधूरी है अमरनाथ यात्रा

    By Edited By:
    Updated: Tue, 02 Jul 2013 05:10 AM (IST)

    बर्फानी बाबा के दर्शनों के लिए अमरनाथ यात्रा शुरू हो चुकी है। हजारों की तादाद में देश भर के शिव भक्त अमरनाथ की पवित्र गुफा के दर्शन को जम्मू कश्मीर पहुंच रहे हैं। भगवान शिव की आस्था के इस मार्ग में जहां यात्रियों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है वहीं यहां आने पर प्रकृति की सुंदरता के अद्भुत दर्शन भी करने क

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    बर्फानी बाबा के दर्शनों के लिए अमरनाथ यात्रा शुरू हो चुकी है। हजारों की तादाद में देश भर के शिव भक्त अमरनाथ की पवित्र गुफा के दर्शन को जम्मू कश्मीर पहुंच रहे हैं। भगवान शिव की आस्था के इस मार्ग में जहां यात्रियों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है वहीं यहां आने पर प्रकृति की सुंदरता के अद्भुत दर्शन भी करने को मिलते हैं।

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    अमरनाथ यात्रा में शेषनाग झील का धार्मिक महत्व है। यह कश्मीर वैली के लोकप्रिय टूरिस्ट जगहों में से एक हैं। यह पहलगाम से लगभग 23 किलोमीटर जबकि श्रीनगर से लगभग 120 किलोमीटर दूर है। यहां से अमरनाथ गुफा 20 किलोमीटर की दूरी पर है। यह झील जमीन से 3658 की ऊंचाई पर स्थित है। शेषनाग झील की अधिकतम लंबाई 1.1 किलोमीटर है जबकि इसकी चौड़ाई 0.7 किलोमीटर है। इस चारों ओर चौदह-पन्द्रह हजार फीट ऊंचे-ऊंचे पर्वत हैं।

    शेषनाग झील हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। सर्दियों में यह झील जम जाती है जहां पहुंचना कठिन हो जाता है। इस झील को चारो ओर से कई ग्लेशियरों ने अपने आगोश में ले रखा है। यहीं से लिद्दर नदी निकलती है जो पहलगाम की सुन्दरता में चार चांद लगा देती है।

    भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार शेषनाग का मतलब सांपों के राजा से लिया जाता है। ऐसी धारणा है कि जब शिव जी माता पार्वती को अमरकथा सुनाने अमरनाथ ले जा रहे थे, तो उनका इरादा था कि इस कथा को कोई ना सुने इसलिए शेषनाग को इस झील में छोड़ दिया। ताकि कोई इस झील को पार करके आगे न जा पाए। आज भी कहा जाता है कि कभी-कभी झील के पानी में शेषनाग दिखाई देते हैं।

    यह इलाका दुर्गम होने की वजह से यहां न तो कोई होटल है और न ही कोई गेस्ट हाउस। अधिकतर यात्री चन्दनवाड़ी ठहरते हैं और वहां से 16 किलोमीटर पैदल चलकर या फिर पोनी पर बैठकर इस झील के दर्शन करने आते हैं। अगर यात्री इस झील के आसपास रुकना भी चाहते हैं तो यहां कई तरह के तम्बू उपलब्ध हैं और राज्य सरकार द्वारा प्रबंध किए जाते हैं। यह तम्बू अप्रैल से जून महीने तक उपलब्ध रहते हैं। इस तरह के तम्बुओं की कीमत एक रात के लिए 400 रुपए तक है।

    यहां आते समय ध्यान रखें कि आपके पास पानी की बोतल और बरसात से बचने के लिए छाता और रेनकोट जरूर हो। आप ठंड से बचने का सभी सामान साथ ले जाएं। साथ ही चेहरे और शरीर पर लगाने के लिए क्त्रीम का भी प्रबंध करने के बाद ही जाएं। खाने में आप सूखे मेवे और चॉकलेट रखना ना भूलें।

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