पांच केदारों में प्रमुख है मदमहेश्वर
उत्तराखंड वाकई देवभूमि है। वहां हर तरफ देवताओं की ही तूती बोलती है। इसी देवभूमि में एक नहीं बल्कि पांच केदार हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध केदारनाथ के अलावा बाकी हैं- मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर। सभी तक जाने के लिए पैदल यात्रा करनी पड़ती है लेकिन सभी जबरदस्त प्राकृतिक खूबसूरती के मालिक भी हैं

पिछले साल मेरा कार्यक्रम मदमहेश्वर जाने का बना। मध्य नवंबर तक यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर के कपाट बंद हो चुके थे। बस बद्रीनाथ और मदमहेश्वर के कपाट खुले थे। मैं निकला तो बद्रीनाथ के लिए ही था लेकिन रुद्रप्रयाग पहुंचकर बुद्धि फिरी और मदमहेश्वर जाने लगा। वहां जाने के लिए रुद्रप्रयाग जिले में ऊखीमठ तक जाना होता है। रुद्रप्रयाग से बसें और जीपें मिलती हैं। ऊखीमठ में मुख्य बाजार से सीधा रास्ता उनियाना जाता है जो आजकल मदमहेश्वर यात्रा का आधार स्थल है। मैं शाम तक उनियाना पहुंच गया था। यहां से मदमहेश्वर की दूरी 23 किलोमीटर है जो पैदल नापी जाती है। यूं तो मैं कभी अपनी यात्राओं में गाइड का सहारा नहीं लेता हूं लेकिन इस बार लेना पड़ गया। चार सौ रुपये प्रतिदिन के हिसाब से तय किया था और आने-जाने का तीन दिन का हिसाब था। वैसे रास्ता इतना बढि़या है कि गाइड की जरूरत ना पड़े। वैसे कुछ लोगों का यह भी मानना है कि पहाड़ के सफर में कोई स्थानीय जानकार होना अच्छा रहता है। खास तौर पर किसी मुश्किल या प्राकृतिक संकट के वक्त गाइड खासे काम आते हैं।
अगले दिन सुबह उनियाना से चलकर तीन किलोमीटर आगे रांसी गांव पहुंचे। कुछ साल पहले तक यह यात्रा मनसूना से शुरू होती थी। मनसूना ऊखीमठ और उनियाना के बीच में है। तब यात्री पैदल ही मनसूना से उनियाना तक पहुंचते थे। अब उनियाना तक तो सड़क पहुंच गई है, आगे भी जाएगी। रांसी के लिए भी सड़क मार्ग पर बस एक पुल बनना बाकी है, सड़क बन चुकी है। जिस दिन पुल चालू हुआ, गाडि़यां उनियाना के बजाय रांसी तक जाया करेंगी। इस तरह पैदल चलने का रास्ता और कम हो जाएगा। वैसे भी रांसी उनियाना के मुकाबले ज्यादा समृद्ध और बड़ा गांव है। यहां राकेश्वरी देवी का एक प्राचीन मंदिर भी है।
रांसी से हल्की सी चढ़ाई के बाद सामने दिखाई देता है गौण्डार गांव। गौण्डार तक सीधा ढलान है। घने जंगलों से होकर वहां तक पगडंडियां जाती हैं। यह इस घाटी का आखिरी गांव है। रांसी और गौण्डार के बीच में जो जंगल है, उसमें कई झरने भी हैं।
दोपहर तक हम गौण्डार पहुंच गए। वहीं खाना खाया। उनियाना से अभी तक तो रास्ता कुल मिलाकर चढ़ाई भरा था लेकिन इतनी तेज चढ़ाई नहीं थी। असली चढ़ाई शुरू होती है गौण्डार से एक खड्ड को पार कर लेने के बाद। खड्ड के बाद सबसे पहले आती है बनतोली चट्टी। यहां रुकने का ठीकठाक इंतजाम है। यहां से चौखंभा चोटी के भी दर्शन होते हैं। वैसे तो चौखंभा उनियाना से निकलते ही दिखाई देने लगती है लेकिन बनतोली में उसे नजदीक से देखना रोमांचक है।
गौण्डार से करीब डेढ किलोमीटर आगे आती है- खटरा चट्टी। चट्टी यात्रियों के रुकने के स्थान को कहते हैं। खटरा चट्टी में कई घर हैं। सबसे पहले फतेहसिंह का घर है। फतेहसिंह वहां अपनी घरवाली के साथ रहते हैं। हम वही जा पहुंचे। झोपड़ीनुमा कमरों में यात्रियों के रुकने का इंतजाम है। हमें वहीं रुकना था। यहां से मदमहेश्वर की दूरी सात किलोमीटर है। पूरा रास्ता चढ़ाई भरा है जिसे मेरे जैसा व्यक्ति दो किलोमीटर प्रति घंटे के हिसाब से आराम से साढ़े तीन घंटे में तय कर सकता था। मैंने अपने गाइड भरत को समझाना शुरू किया कि भाई, अगर हम यहां से दो बजे भी निकलते हैं तो छह बजे तक मदमहेश्वर पहुंच ही जाएंगे। लेकिन भरत किसी भी सूरत में मानने को तैयार नहीं हो रहा था। उसे अंदेशा था कि रास्ते में अंधेरा हो जाएगा और जंगली रास्ते में जानवरों का भी खतरा रहेगा। लेकिन मैं रुककर अपना समय खराब नहीं करना चाहता था। लिहाजा ठीक दो बजे मैंने भरत को चेतावनी दे दी कि मैं आगे जा रहा हूं। अगर तुम्हे भी साथ चलना हो तो चलो। लिहाजा मन मसोसकर भरत को भी साथ चलना ही पड़ा।
यहां से आगे निकलकर तीसरी चट्टी आती है- नानू चट्टी। तीन-चार दिन बाद यहां के कपाट भी बंद होने वाले थे। कोई यात्री आ नहीं रहा था इसलिए नानू चट्टी और उससे आगे कुन चट्टी बंद थीं। कुन चट्टी के बाद रास्ता जंगल में घुस जाता है और मदमहेश्वर से आधे किलोमीटर पहले तक जंगल में ही रहता है। ठीक साढ़े पांच बजे हम मदमहेश्वर पहुंच गए। तब मेरा लोकल गाइड भरत मुझसे नजरें नहीं मिला पा रहा था।
हर धार्मिक स्थल की कुछ ना कुछ पौराणिक कथाएं होती हैं लेकिन मेरी दिलचस्पी कभी इन कथाओं में नहीं रही। मदमहेश्वर तक पहुंचना ही कम बात नहीं है। फिर यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य! यह केदारनाथ शैली में बना हुआ मंदिर है। उस दिन यहां पर मैं ही एकमात्र पर्यटक था। ज्यादातर होटल बंद थे। एकमात्र खुले होटल में मैं रुका। यह जगह समुद्र तल से लगभग 3300 मीटर की ऊंचाई पर है। गर्मियों में ठंड का साम्राज्य रहता है फिर नवंबर में तो कहने ही क्या। गरम पानी मंगवाकर नहा-धोकर एकछत्र राज की तरह आराम से दर्शन किए, मत्था टेका, सिर नवाया और मन में कहा कि ऊपर वाले, एक बार और बुलाना। मैं भले ही मंदिरों या तीथरें में घूमता रहता हूं लेकिन इतना आस्तिक भी नहीं हूं। दान-दक्षिणा तो दूर, कभी अपने घर में धूपबत्ती भी नहीं जलाता। लेकिन हिमालय में घुमक्कड़ी करनी है तो मंदिरों में जाना ही पड़ेगा। नास्तिकों के लिए नदी, झरने, पहाड़, हरियाली, बरफ हैं और आस्तिकों के लिए देवता। बस बाहर निकलिए और घूमिए, दुनिया में हरेक के लिए कुछ न कुछ जरूर है।
बूढ़ा मदमहेश्वर
मदमहेश्वर के पास ही एक चोटी है। इसका रास्ता कम ढलान वाला है। पेड़ भी नहीं हैं। एक तरह का बुग्याल है। उस चोटी को बूढ़ा मदमहेश्वर कहते हैं। डेढ़-दो किलोमीटर चलना पडता है। जैसे-जैसे ऊपर चढ़ते जाते हैं तो चौखंबा के दर्शन होने लगते हैं। बिल्कुल ऊपर पहुंचकर महसूस होता है कि हम दुनिया की छत पर पहुंच गए हैं। दूर ऊखीमठ और गुप्तकाशी भी दिखाई देते हैं। चौखंभा चोटी तो ऐसे दिखती है मानो हाथ बढाकर उसे छू लो।
आसपास
मदमहेश्वर के आसपास भी कई जगहें हैं जहां जाने के लिए ट्रैकिंग करनी होती है। कांचली ताल जाने के लिए मदमहेश्वर से सुबह सवेरे निकलना पडे़गा और अपना खाना साथ ही ले जाना पड़ेगा। शाम तक वापस आ सकते हैं। कांचली ताल से भी अगर आगे जाना है तो पाण्डु सेरा है। पाण्डु सेरा के बारे में प्रसिद्ध है कि वहां पाण्डवों ने स्वर्गारोहण के समय अपने हथियार छोड़े थे। बताते हैं कि वहां आज भी हथियार बिखरे पड़े हैं। पाण्डु सेरा के लिए तम्बू साथ ले जाना पडता है क्योंकि मदमहेश्वर से वहां तक जाने में दिनभर लग जाता है। अगर पाण्डु सेरा से भी आगे चलते जाएं तो कल्पेश्वर पहुंच सकते हैं जहां से बद्रीनाथ भी नजदीक है। गौण्डार गांव से दो दिन के रास्ते पर एक गरम पानी का कुण्ड है। स्थानीय निवासी दो दिन ही बताते हैं, लेकिन जगह चौखंबा शिखर के ठीक नीचे होगी। और साथ में केदारनाथ तो है ही, जहां के लिए ऊखीमठ से बसें मिल जाती हैं।
कब और कैसे
मदमहेश्वर जाने के लिए सबसे पहले दिल्ली से हरिद्वार ऋषिकेश होते हुए रुद्रप्रयाग जाना पडेगा। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ जाने वाली सड़क पर गुप्तकाशी से कुछ पहले कुण्ड नामक जगह आती है जहां से ऊखीमठ के लिए सड़क अलग होती है। ऊखीमठ पहुंचकर उनियाना के लिए टैक्सियां, जीपें और बसें मिल जाएंगी। उनियाना से पैदल यात्रा शुरू होती है जो 23 किलोमीटर लंबी है और रांसी, गौण्डार होते हुए मदमहेश्वर पहुंचती है। यहां केवल सीजन में ही जाया जा सकता है। जब तक भी कपाट खुलते हैं, कभी भी जा सकते हैं। आमतौर पर मदमहेश्वर के कपाट केदारनाथ के लगभग साथ ही खुलते हैं और केदारनाथ के कपाट बन्द होने के बाद बन्द होते हैं। सीधी सी बात है कि अगर आप केदारनाथ जा रहे हैं तो मदमहेश्वर भी जा सकते हैं। अगर चार धाम यात्रा सीजन के अलावा आप वहां जाना चाहते हैं तो रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से अनुमति लेनी पड़ेगी।
नीरज जाट
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