सिटी ऑफ ज्वॉय में सैर विज्ञान नगरी की
इन छुट्टियों में अपने लाड़लों को ले जाए विज्ञान की सैर पर। कोलकाता की साइंस सिटी आपके होनहारों के साथ-साथ आपकी भी कई गुत्थियां सुलझा सकती है और कई जिज्ञासाएं शांत कर सकती है। कोलकाता को फिर से घूमने की नई वजह दे सकती है यह साइंस सिटी

भारत की राजधानी रहे सिटी ऑफ जॉय कहे जाने वाले कोलकाता शहर के अनेक आकर्षण हैं। इनमें अनेक ऐतिहासिक इमारतें जैसे कि विक्टोरिया मेमोरियल, राइटर्स बिल्डिंग, इंडियन म्यूजियम, एशियाटिक सोसाइटी, फोर्ट विलियम्स, दक्षिणेश्वर व कालीघाट मंदिर, बेलुर मठ, वनस्पति उद्यान, चिडि़याघर, पुराने शहर के ट्राम के अलावा एक नया नाम साइंस सिटी का भी लिया जा सकता है। यह साइंस सिटी भी अन्य दर्शनीय स्थानों की तरह ही प्रतिदिन सैलानियों से गुलजार रहती है। यहां क्या बच्चे और क्या बड़े, सब विज्ञान के विभिन्न पहलुओं से रू-ब-रू होने में घंटों बिता देते हैं और यादगार अनुभव लेकर लौटते हैं। यहां बोझिल से समझे जाने वाले विज्ञान को मनोरंजन के साथ कुछ इस प्रकार से परोसा जाता है जिससे यह रुचिकर लगे और हर कोई उसमें शामिल होकर समझ सके।
कोलकाता साइंस सिटी का विचार स्थानीय बिरला औद्योगिक व तकनीकी संग्रहालय से जन्मा। विज्ञान संग्रहालयों में हम अतीत की खोजों से संबंधित साक्ष्यों को ही देख पाते हैं। साइंस सिटी में अतीत को देखने की बजाय उस विज्ञान को देखा व समझा जा सकता है जो हमारे आस पास दिखता है। इसके अलावा वहां पर मिलती है आस-पास के विज्ञान से लेकर नवीनतम खोजों की विभिन्न माध्यमों से जानकारी। हमारी परंपरागत शिक्षा में पढ़ाने के तरीके की सीमाएं तो हैं ही, साथ में वह बोझिल भी लगता हैं। इससे कई बच्चे विज्ञान से भयभीत रहते हैं और इसके एक बेहद कठिन विषय होने की धारणा मन में बना लेते हैं। स्कूली शिक्षा भी बच्चों को किताबों से आगे सोचने का समय नहीं दे पाती है। इसलिए यह कल्पना की गई कि यदि किसी स्थान में प्रभावी, मनोरंजक तरीकों से विज्ञान को प्रस्तुत किया जा सके तो विज्ञान के प्रति कई भ्रान्तियां दूर होंगी बल्कि इससे बच्चों में रचनाशीलता बढ़ेगी, और आम आदमी में भी इसके प्रति आकर्षण बढ़ने के साथ-साथ कई अन्य प्रकार के अवसर पैदा होंगे।
साइंस सिटी में लोकप्रिय विज्ञान के कुछ शाश्वत सिद्धांतों के प्रयोग हम देख सकते हैं, तो कुछ रोचक विषय विशेष भी। इसे देखने-परखने के लिए कहीं पर आपको एक बटन भर दबाना होता है तो कहीं शामिल होना होता है। इन बातों व सिद्धान्तों को दिखने के लिए चार्ट, कार्यकारी मॉडल, प्रदर्शन से लेकर मल्टी मीडिया माध्यमों का भी इस्तेमाल होता है और वह भी रोचकता व मनोरंजन के साथ। इसके अलावा विज्ञान में नवीनतम खोजों की जानकारी को दिया जाता है ताकि वह विज्ञान जो पढ़ाया नहीं जाता है, उसके प्रति भी जनता में सोच विकसित हो सके। कोलकाता के साल्ट लेक से लगे क्षेत्र में लगभग 50 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैली इस साइंस सिटी में अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए कई आधारभूत संरचनाएं हैं। बाहर से ये संरचनाएं हर किसी के मन में कौतूहल सा पैदा करती हैं। चलिए, क्यों न थोड़ा जायजा लें।
अलग-अलग एक्टिविटी व वीथिकाओं के भ्रमण के अलग टिकट लेने होंते हैं। बोर्ड से जानकारी ले सकते हैं और देख कर तय कर सकते हैं कि आपको क्या क्या देखना है। अन्दर जाते ही सबसे पहले दिखता है इवोल्यूशन पार्क। दाहिनी ओर जो डायनासोर का मुख है वहीं से प्रवेश करना होता है। यह पार्क इस भवन के पूरे 1300 वर्ग मीटर क्ष्ेात्रफल में फैला है। दुनिया में कैसे-कैसे जीव-जंतु थे यह सब पढ़ते हैं और जानते हैं। दुनिया में विशालकाय डायनासोरों को बोलबाला था लेकिन आज उनके फॉसिल्स ही मिलते हैं। वे दुनिया के पटल से लुप्त ही हो गए। इस पार्क में विविध प्रकार के डायनासोरों को प्रदर्शित किया गया है। विशाल मैमथ से लेकर आदिमानव के रहन-सहन को भी इसमें देख सकते है। इसके अन्दर उनको उसी परिवेश में दिखाया गया है ताकि वे स्वाभाविक से लगें। समीप ही स्पीकर कमेन्टरी जारी रहती है। फाइबर ग्लास से बने ये डायनासोर मात्र पुतला न लगें इसलिए इनको गतिशील बनाने के साथ काल्पनिक आवाज भी दी गई है। हकीकत में यह कैसे लगते होंगे यह इनको देखकर जान पाते हैं। चलो ये तो पूरी हुई इवोल्यूशन पार्क की सैर।
अब चलते हैं डायनामोशन हाल। बाएं हाथ की ओर सबसे ऊंचे स्प्रिंग के जैसे आकार का भवन में यह स्थापित है। विज्ञान के सिद्धान्तों को आपने पढ़ा होगा लेकिन उनको सिद्ध होते नहीं देखा होगा। यहां पर आप उनमें से कुछ को काम करते देख सकते हैं। इस हाल में ज्यादातर भौतिक विज्ञान के प्रयोग हैं। जिसमें उर्जा, प्रकाश, घूर्णन जड़त्व जैसी घटनाओं के मॉडल रखे गए हैं। इसके अन्दर ही भ्रम का आभास देने वाले कई प्रयोग है। यह पंाच मंजिल जितना भवन है जिसमें भवन की दीवारों से सटी एक गोल वीथिका भी है ताकि उसे देखते समय सीढ़ी पर से उतरने की जैसी समस्या न आए। इसके गलियारे एक मछलीघर है जहां लगभग तीन दर्जन ग्लास बॉक्स में भिन्न-भिन्न प्रकार की सजावटी मछलियां हैं। यहां उनके व्यवहार, उनके खाने की आदतों को देख व समझ सकते हैं। किताबों में सेन्ट्रीपिटल बल भले ही समझ में न आता हो लेकिन स्पिनिंग प्लेटफॉर्म में इसे करने पर समझ सकते हैं। इसी से लगा है स्पेस ओडिसी। इसमें है एक स्पेस थियेटर, दर्पण प्रभावों को लेकर बनी एक प्रदर्शनी। दर्पण के अनेक जादुई प्रभाव इसमें देख सकते है। इसके अलावा यहां पर टाइम मशीन सिमुलेटर है जिसका अनुभव रोमांचकारी रहता है। यहां एक थ्री-डी थियेटर है जिसकी फिल्में एक थ्रिल पैदा करती हैं।
सबसे अधिक रोमांचकारी पल तो तब आता है जब आप स्पेस थियेटर में आते हैं। फिल्में तो आपने काफी देखी होंगी। सिनेमा हाल, मल्टीप्लैक्स में और टीवी पर हर रोज देखते ही हैं। लेकिन विज्ञान नगरी के इस थियेटर में विज्ञान सम्बन्धी ऐसी फिल्में दिखाई जाती हैं जिनके बारे में हम देखते पढ़ते सुनते हैं। 40 से 45 मिनट की विज्ञान आधारित फिल्में एक रोमांचकारी अहसास कराती हैं। चाहे वह अन्तरिक्ष यान का छोड़ा जाना हो या किसी नेशनल पार्क या अभयारण्य की सैर या और कुछ। 150 विशेष प्रभाव वाले एस्ट्रोविजन प्रोजेक्टर से विशाल फॉर्मेट में बनी इन फिल्मों को 23 मीटर की अर्द्धगोलाकार स्क्रीन में दिखाया जाता है जो सामान्य थियेटर में दिखने वाली फिल्म से आकार में कम से कम पांच गुना अधिक है। प्रोजेक्टर दो साल पहले जब लिया गया था तब इसकी लागत 14 करोड़ रु. थी। कम्प्यूटरीकृत लाइट व साउंड इफेक्ट से यहां ऐसा लगता है कि जैसे आप उस स्थान पर खुद मौजूद हों। इसमें एक बार में 360 दर्शकों के देखने के लिए स्थान है। अब चलें देखें अपनी दुनिया को। अर्थ एक्सप्लोरेशन सेन्टर में पृथ्वी को लेकर एक स्थायी प्रदर्शनी है। पृथ्वी हमारे सौर मंडल में अकेला ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन है। इसकी भौगोलिक संरचना बेहद जटिल है। धरती की सतह कई प्रकार की पपडि़यों से मिलकर बनी है। जिस पर समुद्र, नदियां, पर्वतमालाएं, घटियां, पठार, झीलें, मैदान, ज्वालामुखी हैं जबकि पृथ्वी के चारों ओर गैसीय आवरण है जो जीवन के लिए आवश्यक है। कैसे टैक्टोनिक प्लेटें एक-दूसरे पर दबाव डालती हैं, कैसे पर्वत बने या समुद्र ज्वालामुखी बने। चक्रवात कैसे आता हैं? पृथ्वी के किस भाग में कैसी जैव विविधता हैं? अर्थ एक्सप्लोरेशन सेन्टर के मध्य भाग में विशालकाय ग्लोब है जिसमें दुनिया को दिखाया गया है। इसमें भूतल पर दक्षिणी गोलार्द्ध संबंधी जानकारियों का अवलोकन किया जा सकता है जबकि प्रथम तल पर उत्तरी गोलार्द्ध संबंधी जानकारियां मिलती हैं। जानकारी क्षेत्र, देश या नगर संबंधी है। इस जानकारी को दिखाने के लिए वीडियो स्क्रीन, मल्टीमीडिया का सहारा लिया गया है। यहीं पर एक छोटा सा 3 डी थियेटर है।
विज्ञान के सैलानी
कोलकाता के जे.बी.एस. हल्डेन मार्ग पर जिस समय करोड़ों रुपये की लागत की साइन्स सिटी निर्माणाधीन थी तो कइयों को यकीन न था कि शहर भर का कूड़ा डाले जाने वाला यह स्थान इतनी जल्दी इस नगर में आकर्षण का केंद्र बन कर उभरेगा। खुलने के कुछ समय के बाद ही यहां विज्ञान प्रेमी जुटने लगे और फिर यह संख्या लगातार बढ़ने लगी। अब 13 साल बाद यहां पर भ्रमणार्थियों की संख्या 14 लाख को पार कर चुकी है। साइन्स सिटी की सफलता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा। इसकी स्वीकार्यता का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि इसको देखने आने वालों में लगभग 60 प्रतिशत संख्या में बाहरी पर्यटक होते हैं।
कोलकाता में अपनी उपयोगिता सिद्ध करने के बाद कोलकाता से निकला यह विचार देश के अनेक बड़े-छोटे नगरों में साइन्स सिटी, रीजनल साइन्स सेन्टर व जिला साइन्स सेन्टर के रूप में फलीभूत हो चुका है और अनेक नगरों में हकीकत बनने जा रहा है। कोलकाता के बाद उसकी ही तर्ज पर बनी साइन्स सिटी, अहमदाबाद और पुष्पा गुजराल साइन्स सिटी, जालंधर को अब पहचान की दरकार नहीं रही। अन्य राज्यों की राजधानियों व नगरों में विज्ञान केन्द्र बच्चों में विज्ञान के प्रति माहाल बनाने, उनके ज्ञानार्जन के साथ पर्यटन में अपना योगदान दे रहे हैं। कोलकाता साइंस सिटी में रोजमर्रा की सैर के अतिरिक्त वार्षिक कैलेन्डर के हिसाब से लगभग तीन दर्जन से अधिक विज्ञान संबंधी दिवसों पर कार्यक्रम होते हैं। प्रदर्शनी, प्रतियोगिताएं, क्विज, भाषणमालाएं, विज्ञान प्रदर्शनियां, विज्ञान मेले, शिविर, प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएं, शो यहां पर लगातार होते हैं। यह साइन्स सिटी स्वयं में आत्मनिर्भर है, जिसके 67 कर्मचारी इसकी व्यवस्था को देखते हैं। साइन्स सिटी के निदेशक ए.डी. चौधरी बताते हैं कि विज्ञान को कौतूहल, मनोरंजक, रोमांचकारी ढंग से परोसने से उन सबकी हिचकिचाहट दूर हो जाती है जो विज्ञान से दूर भागते हैं। युवाओं और बच्चों की एक बड़ी संख्या यहां आकर उस विज्ञान से परिचित होती है जिसे वे अपनी कक्षाओं में नहीं समझ पाते हैं। जहां पर कुछ की जिज्ञासा शांत होती है तो कुछ मनन करने को बाध्य होते हैं। भारतीय विज्ञान संग्रहालय परिषद, जो इस साइंस सिटी सहित भारत के अधिकांश विज्ञान केंद्रों की देखरेख करती है, के महानिदेशक जी.एस. रौंतेला कहते हैं कि विज्ञान केन्द्र विज्ञान के प्रसार से लेकर जागरूकता के साथ पर्यटन विकास में अपना अलग योगदान दे रहे हैं। परिषद के अधीन विभिन्न संग्रहालय, सिटी व केंद्रों में भ्रमणार्थियों की संख्या 80 लाख तक पहुंच चुकी है। अधिकांश केन्द्र आज उन नगरों के पर्यटन नक्शे पर भी पैठ बना चुके हैं।
स्पेस थियेटर के पीछे जो मैरिटाइम सेन्टर यानि सामुद्रिक केन्द्र है, वह समुद्री जहाज नहीं है बल्कि उसके जैसा है। इसमें भारतीय समुद्री विकास का इतिहास है तो जहाज के अंदर की कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी भी। इसे कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ने तैयार किया है। इसके एक कोने पर तितलियों का कोना भी है जहां भांति-भंाति की तितलियां देखने के अलावा उनके जीवन चक्र को भी समझा जा सकता है। हां, यदि थक जाएं तो बाहर साइन्स पार्क में बैठ सकते हैं और कैफेटेरिया में जलपान आदि कर सकते हैं। साइंस सिटी को ट्राली की सैर से भी देख सकते हैं। इस साइंस सिटी के अंदर एक आधुनिक विशाल प्रेक्षागृह है।
साइंस सिटी में एक पिकनिक गार्डन भी है। यानी विज्ञान का ज्ञान और पिकनिक का मजा, साथ-साथ। इसके लिए खास गार्डन है, जहां लोग अपना खाना लेकर आ सकते हों और हरियाली के बीच भोजन के साथ विज्ञान को हजम करने का लुत्फ उठा सकते हैं। देश के बाकी म्यूजियमों के उलट यह साइंस सिटी साल में केवल एक दिन बंद होती है- होली के दिन। बाकी पूरे साल यह सवेरे 9 बजे से रात 9 बजे तक खुली रहती है। टिकटों की दरें भी कोई ज्यादा नहीं हैं। सामान्य लोगों के लिए प्रवेश शुल्क 25 रुपये है। उसके बाद स्पेस थियेटर का 50 रु. इवोल्यूशन पार्क का 10 रुपये, 3डी थियेटर का 20 रुपये, टाइम मशीन का 10 रुपये, रोड ट्रेन का 10 रुपये और केबल कार का 25 रुपये प्रति व्यक्ति किराया है। समूह में जाने वालों और स्कूलों के बच्चों के लिए इन किरायों में भी कई तरह की छूट है।
एल. मोहन कोठियाल
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