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    E-Waste Management: जानिए ई-कचरे की समस्या कितनी गंभीर है और क्या हो सकता है समाधान...

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Pokhriyal
    Updated: Wed, 16 Nov 2022 10:57 AM (IST)

    E-Waste Management इलेक्ट्रानिक कचरे की समस्या लगातार गंभीर हो रही है। अगर गैजेट्स के इस्तेमाल का अपना तरीके बदलें तो अपना बजट दुरुस्त रखने के साथ-साथ हम पर्यावरण की इस बड़ी समस्या के समाधान में सहभागी बन सकते हैं....

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    फोन बदलने से पहले पर्यावरण का भी सोचें

    ब्रह्मानंद मिश्र। नया स्मार्टफोन लेने के बाद उस पुराने सेट का क्या हुआ, जो अब इस्तेमाल में नहीं है। घर में ऐसे कितने फोन हैं, जो अब अनुपयोगी हो गए हैं। दुनियाभर में तमाम संस्थाओं की रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि ऐसा करने वाले हम अकेले नहीं हैं। आज दुनियाभर में 16 अरब मोबाइल फोन चलन में हैं, जिसमें से 5.3 अरब इस साल के आखिर तक इस्तेमाल से बाहर हो जाएंगे। बीते महीने यूएन इंस्टीट्यूट फार ट्रेनिंग एंड रिसर्च सस्टेनेबल साइकल्स प्रोग्राम द्वारा ई-कचरे पर आधारित एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की गई है। अनुमान है कि अकेले 2022 में सेल फोन समेत अन्य डिवाइसेज की वजह से 24.5 मिलियन टन कचरा इकट्ठा होगा। जानते हैं यह समस्या कितनी गंभीर है और क्या हो सकता है समाधान...

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    ई-कचरे का प्रभाव

    ई-कचरा से तात्पर्य उन सभी इलेक्ट्रानिक और इलेक्ट्रिकल उपकरणों (ईईई) तथा उनके पार्ट्स से है, जो उपभोगकर्ता द्वारा दोबारा इस्तेमाल में नहीं लाया जाता। ग्लोबल ई-वेस्ट मानिटर-2020 के मुताबिक चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ई-वेस्ट उत्पादक है। चूंकि इलेक्टि्कल और इलेक्ट्रानिक उपकरणों को बनाने में खतरनाक पदार्थों (शीशा, पारा, कैडमियम आदि) का इस्तेमाल होता है, जिसका मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ता है। विषाक्त पदार्शों से मस्तिष्क, हृदय, लीवर, किडनी को नुकसान पहुंचता है। दुनियाभर में इस तरह से उत्पन्न हो रहा कचरा तेजी से बढ़ रहा है। भारत में 95 प्रतिशत ई-कचरे का पुनर्चक्रण असंगठित क्षेत्र द्वारा किया जा रहा है, इसलिए इस विषय पर अधिक गंभीरता से विचार की जरूरत है। सरकार ने ई-कचरा (प्रबंधन) नियम-2022 अधिसूचित किया है, जो अगले वर्ष एक अप्रैल से प्रत्येक विनिर्माता, उत्पादक, रिफर्बिसर, डिस्मैंटलर और ई-वेस्ट रिसाइकलर पर लागू होगा।

    फोन बदलने से पहले पर्यावरण का भी सोचें

    आमतौर पर फोन की बैटरी की क्षमता में गिरावट देखते ही लोग पूरी डिवाइस बदल देते हैं। इससे जेब पर भार तो बढ़ता है, लेकिन इससे अधिक भार पर्यावरण पर पड़ता है। विशेषज्ञों के मुताबिक फोन को बनाने में कम से कम 70 प्रकार के पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें काफी ऊर्जा की खपत होती है। फोन और डिवाइस का उत्पादन भी आमतौर पर उन देशों में होता है, जहां बिजली उत्पादन की वजह से बड़े पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन होता है। ऐसे में हमें फोन बदलने से पहले सोचने की जरूरत है, क्या वाकई इसकी आवश्यकता है? सेल फोन की औसतन उम्र साढ़े तीन साल की होती है, लेकिन यदि फोन का सावधानी और समझदारी से इस्तेमाल किया जाये, तो उसे छह से सात वर्ष तक आराम से चलाया जा सकता है।

    कैसे करें फोन का अधिकतम उपयोग

    • अगर फोन काम करने की ठीक स्थिति में है, तो बैटरी बदलने जैसे उपायों को अपनाकर उसे लंबे समय तक चला सकते हैं।
    • हर तीन साल पर फोन की बैटरी जांचने या बदलने के लिए रिपेयर शाप पर जरूर जाएं।
    • आमतौर पर तीन साल के बाद कुछ घंटों में ही फोन स्विच आफ होने लगता है, जिससे लोग यह मान बैठते हैं कि फोन खराब हो गया।
    • फोन की जांच के लिए आप सालाना कैलेंडर बना सकते हैं, जिसमें आप उन फोटो और एप को हटा सकते हैं, जिनकी अब जरूरत नहीं है।
    • अगर डिजिटल स्टोरेज स्पेस को खाली करते रहें तो इससे फोन की बैकअप स्पीड बढ़ सकती है।
    • फोन के नये माडलों पर आंख बंद कर आकर्षित न हों। इससे तरह की आदतें, हमारी मेंटीनेंस कराने की आदतें खत्म करती हैं।
    • अगर दो-दो वर्ष के अंतराल पर बैटरी बदलकर फोन छह साल तक चलाते हैं, तो आप फोन बदलने में होने वाले बड़े खर्च को बचा सकते हैं।

    छोटी पहल से ला सकते हैं बड़ा बदलाव

    फोन को बार-बार बदलने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। कई बार रिपेयर महंगा होना भी एक कारण बनता है। हालांकि, बड़ा कारण हमारे व्यवहार से ही जुड़ा है। अगर हम फोन का लंबे समय तक इस्तेमाल करें, तो इससे पैसा बचेगा और पर्यावरण को फायदा भी होगा। साल 2021 में डेफ्ट यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलाजी द्वारा किए गए सर्वेक्षण में फोन बदलने का सबसे बड़ा कारण साफ्टवेयर का धीमा होना और बैटरी में गिरावट रहा। दूसरा बड़ा कारण, नये फोन के प्रति आकर्षण था। कंपनियों की मार्केटिंग और दोस्तों द्वारा हर साल फोन बदलने की आदतों से भी प्रभावित होकर भी लोग नया फोन ले लेते हैं, जबकि इसकी जरूरत नहीं होती।