वैज्ञानिकों ने तैयार की हजारों साल तक चलने वाली बैटरी, साइज- 10mm, जानें ये कैसे करती है काम?
वैज्ञानिकों और इंजीनियर्स ने एक ऐसी बैटरी तैयार की है जिसे एक बार चार्ज करने के बाद हजारों साल तक चलाया जा सकता है। इसकी साइज 10mm है। इस बैटरी का इस्तेमाल स्पेस में या मेडिकल इक्विपमेंट्स के लिए खास तौर पर किया जा सकता है। जहां मरीजों को बार-बार बैटरी बदलने की दिक्कत से छुटकारा मिल जाए। आइए जानते हैं इसके बारे में।

टेक्नोलॉजी डेस्क, नई दिल्ली। वैज्ञानिकों और इंजीनियर्स ने मिलकर एक ऐसी बैटरी को तैयार किया है जो हजारों साल तक चल सकता है और डिवाइसेज को पावर सप्लाई दे सकता है। ऑक्सफोर्डशायर के कुलहम में यूके एटॉमिक एनर्जी अथॉरिटी (यूकेएईए) ने ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के साथ मिलकर दुनिया की पहली कार्बन-14 डायमंड बैटरी बनाई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका इस्तेमाल ऑक्यूलर इम्प्लांट, हियरिंग एड और पेसमेकर जैसे मेडिकल डिवाइसेज के साथ किया जा सकता है, जिससे इनमें बैटरी रिप्लेसमेंट की जरूरत लगभग खत्म हो जाएगी।
यूकेएईए में ट्रिटियम फ्यूल साइकल की डायरेक्टर सारा क्लार्क ने इसे निरंतर बिजली उपलब्ध कराने का एक 'सुरक्षित और टिकाऊ तरीका' बताया। उन्होंने आगे कहा, 'यह एक उभरती हुई टेक्नोलॉजी है जो कार्बन-14 की छोटी मात्रा को सुरक्षित तरीके से घेरने के लिए मैन्युफैक्चर्ड डायमंड का इस्तेमाल करती है।'
कैसे काम करती है ये बैटरी?
बैटरी में कार्बन-14 का इस्तेमाल किया गया है, जो कार्बन का एक रेडियोएक्टिव आइसोटोप है, जिसका आधा-जीवन 5,700 साल है। इसका मतलब ये है कि बैटरी हजारों सालों के बाद भी अपनी आधी शक्ति बरकरार रखेगी। प्रोटोटाइप के तौर पर तैयार की गईं बैटरियां 10 मिमी x 10 मिमी आकार की हैं और इनकी मोटाई 0.5 मिमी तक है।
कार्बन-14 को इसलिए चुना गया क्योंकि ये शॉर्ट-रेंज रेडिएशन एमिट करता है, जिसे कोई भी सॉलिड मटेरियल तेजी से एब्जॉर्ब कर लेता है। इसे मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे कठोर पदार्थ यानी हीरे के भीतर सुरक्षित रूप से रखा जाता है। इसका मतलब है कि कोई भी छोटी दूरी का रेडिएशन इससे बच नहीं सकता।
ये सौर पैनलों के समान ही काम करता है, लेकिन लाइट पार्टिकल्स का इस्तेमाल करने की जगह, यह हीरे की संरचना के भीतर से तेज गति से चलने वाले इलेक्ट्रॉन्स को कैप्चर कर लेता है। इस बैटरी का इस्तेमाल एक्स्ट्रीम एनवायरमेंट्स में भी किया जा सकता है। इसे अंतरिक्ष और पृथ्वी दोनों जगहों पर भी किया जा सकता है, जहां कन्वेंशनल बैटरी को रिप्लेस कर पाना प्रैक्टिकल नहीं होता है।
ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टॉम स्कॉट ने कहा, 'हमारी माइक्रोपावर टेक्नोलॉजी स्पेस टेक्नोलॉजी और सिक्योरिटी डिवाइस से लेकर मेडिकल इंप्लांट्स तक कई महत्वपूर्ण एप्लिकेशन्स को सपोर्ट कर सकती है। हम अगले कुछ सालों में इंडस्ट्री और रिसर्च में पार्टनर्स के साथ काम करते हुए इन सभी संभावनाओं का पता लगाने में सक्षम होने के लिए उत्साहित हैं।'
ये बैटरी न्यूक्लियर वेस्ट से निपटने का एक सेफ तरीका भी ऑफर करती है। कार्बन-14 कुछ न्यूक्लियर फ्यूजन पावरप्लान्ट्स में ग्रेफाइट ब्लॉक्स में जनरेट होता है।
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