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    सोचेंगे हम, बोलेगा सिस्टम: दिमाग पढ़ने की तकनीक तैयार, वैज्ञानिकों ने किया कमाल

    Updated: Tue, 17 Jun 2025 06:00 PM (IST)

    ऑस्ट्रेलिया के सिडनी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक Artificial Intelligence (AI) सिस्टम तैयार किया है जो दिमाग की तरंगों को पढ़कर इंसानी विचारों को शब्दों में बदल सकता है। यह टेक्नोलॉजी इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम यानी EEG के जरिए मस्तिष्क से मिलने वाले संकेतों का एनालिसिस करके काम करती है। चलिए इस टेक्नोलॉजी के बारे में विस्तार से जानें

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    सोचेंगे हम, बोलेगा सिस्टम: दिमाग पढ़ने की तकनीक तैयार

     टेक्नोलॉजी डेस्क, नई दिल्ली। पिछले कुछ वक्त में AI ने कई काम आसान कर दिए हैं। टेक दिग्गज कंपनियां भी इसे और ज्यादा एडवांस बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं। वहीं, इसी बीच ऑस्ट्रेलिया के सिडनी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (UTS) के वैज्ञानिकों ने तो कमाल ही कर दिया है। जी हां, यहां के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा Artificial Intelligence (AI) सिस्टम्स तैयार किया है जो दिमाग की तरंगों को पढ़कर इंसानी विचारों को शब्दों में बदल सकती है। यह टेक्नोलॉजी इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम यानी EEG के जरिए मस्तिष्क से मिलने वाले संकेतों का एनालिसिस करके काम करती है। चलिए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं...

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    बिना बोले लिख दी मन की बात...

    जानकारी के मुताबिक, यूटीएस के पीएचडी स्टूडेंट चार्ल्स, उनके सुपरवाइजर चिन-टेंग लिन और डॉ. लियोंग द्वारा तैयार किया गया यह AI मॉडल डीप लर्निंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करता है। इस सिस्टम की पावर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब डॉ. लियोंग ने 128 इलेक्ट्रोड वाले EEG कैप पहनकर बिना कोई शब्द बोले इसकी टेस्टिंग की तो AI मॉडल ने उनके विचार को पढ़कर एक सेंटेंस में लिख दिया।

    AI कैसे करता है मदद?

    फिलहाल इस AI मॉडल को वर्ड्स और सेंटेंस के लिमिटेड सेट पर ही ट्रेनेड किया गया है ताकि हर शब्द की पहचान को आसान बनाया जा सके। वैज्ञानिकों का कहना है कि मस्तिष्क से निकलने वाले सिग्नल में नॉइस काफी ज्यादा होता है क्योंकि ये संकेत खोपड़ी की सतह पर एक-दूसरे के ऊपर ओवरलैप करते हैं। ऐसे में AI इन्हीं सिग्नल्स को क्लियर करने का काम करता है।

    इन लोगों के लिए फायदेमंद  

    बता दें कि दूसरी तरफ एलन मस्क की न्यूरालिंक भी इसी तरह की टेक्नोलॉजी पर काम कर रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके फ्यूचर में स्ट्रोक पीड़ितों, ऑटिज्म से जूझ रहे लोगों की स्पीच थेरेपी में और पैरालिसिस के रोगियों के लिए कम्युनिकेशन को बेहतर करने में मदद मिलेगी।

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