इन वास्तु नियमों का पालन कर चमकाएं अपनी किस्मत, खुशियों से भर जाएगा घर-आंगन
वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय ज्ञान है, जो घर के निर्माण में दिशाओं और पंचतत्वों के संतुलन पर जोर देता है। इसका उद्देश्य घर में सकारात्मक ऊर्जा, शांति और समृद्धि लाना है। सही दिशा में मुख्य द्वार, रसोई, पूजा स्थान और शयन कक्ष होने से घर में सुख, स्वास्थ्य और धन की वृद्धि होती है, जबकि वास्तु दोष मानसिक अशांति और आर्थिक समस्याओं का कारण बन सकते हैं।

वास्तु के नियम और महत्व।
दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय ज्ञान है, जो हमें यह समझाता है कि घर या किसी भी स्थान का निर्माण किस दिशा में और किस तरीके से होना चाहिए, ताकि वहां सकारात्मक ऊर्जा, शांति और समृद्धि बनी रहे। जैसे हमारे शरीर को अच्छे स्वास्थ्य के लिए सही खानपान और विश्राम की जरूरत होती है, वैसे ही घर को भी सही दिशा और संतुलन की आवश्यकता होती है, ताकि वह ऊर्जा से भरपूर और खुशहाल बना रहे।
- वास्तु में पांच आवश्यक तत्व (पंचतत्व)
- पृथ्वी (भूमि)– यह घर की नींव और स्थिरता से जुड़ी होती है।
- जल (पानी)– जहां जल होता है, वहां जीवन होता है। वास्तु के अनुसार जल स्रोत (बोरिंग, टंकी) उत्तर-पूर्व दिशा में होने चाहिए।
- अग्नि (आग)– यह शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। रसोई दक्षिण-पूर्व दिशा में होनी चाहिए।
- वायु (हवा)– शुद्ध वायु से घर में ऊर्जा प्रवाहित होती है। खिड़कियाँ उत्तर-पश्चिम दिशा में हों तो वायु संचार उत्तम रहता है।
- आकाश (खुला स्थान)– घर का मध्य भाग खुला और स्वच्छ हो, ताकि शुभ ऊर्जा पूरे घर में प्रसारित हो सके।
- घर बनाते समय दिशाओं का ध्यान क्यों आवश्यक है?
- पूर्व दिशा- सूर्य के उदय की दिशा है। यहां द्वार या खिड़की होने से घर में प्रकाश और ऊर्जा आती है।
- उत्तर दिशा- धन के अधिपति कुबेर की दिशा मानी जाती है।
- दक्षिण दिशा- यह स्थिरता से जुड़ी होती है, और शयनकक्ष के लिए उचित मानी जाती है।
- पश्चिम दिशा- यह विश्राम और संतुलन से जुड़ी होती है। बच्चों का कक्ष यहां शुभ रहता है।
वास्तु के ये नियम बदल देंगे घर की ऊर्जा!
मुख्य द्वार पूर्व या उत्तर दिशा में बनाना उत्तम होता है। इससे घर में प्रकाश, शुभ ऊर्जा और उन्नति का प्रवेश होता है।
रसोई घर अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व) में हो, और भोजन बनाते समय मुख पूर्व दिशा की ओर हो। इससे भोजन सात्विक और ऊर्जा से युक्त रहता है।
पूजा स्थान ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में होना श्रेष्ठ माना गया है। यह देवताओं की दिशा है और यहां पूजन करने से घर में पुण्य और दिव्यता बनी रहती है।
शयन कक्ष (Bedroom) नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में हो तो दांपत्य जीवन में स्थिरता और मधुरता बनी रहती है।
स्नान गृह और शौचालय (Toilet & Bathroom) नैऋत्य या पश्चिम दिशा में रखें। इन्हें पूजास्थान या भवन के मध्य में नहीं बनाना चाहिए।
घर का मध्य भाग (Living Room) सदा खाली, स्वच्छ और हल्का रखें। इस स्थान पर कोई भारी वस्तु न रखें यहीं से शुभ ऊर्जा पूरे घर में फैलती है।
यदि वास्तु दोष होने के लक्षण
- घर में मानसिक अशांति बनी रहती है।
- बिना कारण चिड़चिड़ापन या तनाव महसूस होता है।
- परिवार के सदस्यों के बीच बार-बार झगड़े या मतभेद होते हैं।
- रोग और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बार-बार होती हैं।
- आर्थिक प्रगति में रुकावट आती है या धन का नुकसान होता है।
- कार्यों में अकारण विफलता और बाधाएं आती हैं।
- घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास हो सकता है।
- मन में स्थायित्व और संतुलन की कमी अनुभव होती है।
समापन
वास्तु शास्त्र हमें सिखाता है कि कैसे घर को प्रकृति के अनुरूप बनाकर उसमें सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन लाया जा सकता है। जब दिशाओं, पंचतत्वों और स्थानों का सही ध्यान रखा जाए, तो घर में सुख, शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि आने लगती है। घर को सिर्फ एक संरचना नहीं, बल्कि एक ऊर्जा-स्थान समझें जहां हर दिशा आपकी उन्नति की ओर संकेत देती है।
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लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।
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