Yogananda Jayanti 2024: ईश्वर तक पहुंचने के लिए विमान मार्ग का कार्य करता है क्रियायोग
Yogananda Jayanti 2024 योगानंद जी की माता जब नन्हे शिशु मुकुंद (जो बाद में योगानंद कहलाए) को लेकर आशीर्वाद हेतु अपने गुरु के पास गईं तो उन्होंने कहा छोटी मां! तुम्हारा पुत्र एक योगी होगा। एक आध्यात्मिक इंजन बनकर वह अनेक आत्माओं को ईश्वर के साम्राज्य में ले जाएगा। ईश्वर के साम्राज्य की ओर ले जाने वाले मार्ग की ओर कदम बढ़ने लगे।

श्री श्री परमहंस योगानंद। Yogananda Jayanti 2024: भाव-विभोर करने वाली कविता 'ईश्वर का केवट' के रचयिता हैं। श्री श्री परमहंस योगानंद, जिनकी मन और आत्मा के द्वार खोल देने वाली कृति योगी कथामृत एक गौरव ग्रंथ के रूप में पूजी जाती है। यह कविता पढ़कर मेरा हृदय उद्वेलित हो उठा उनकी नाव में बैठने को। ईश्वर के विषय में जानने की उत्कंठा होने लगी। ऐसा लग रहा था कि कोई स्नेहपूर्ण मधुर पुकार में बुला रहा है।
भरना चाहता हूं मैं अपनी नाव में,
पीछे छूटे पिपासुओं को,
जो बैठे हैं इंतजार में,
और उन्हें ले जाना बहुरंगे आनंद के पोखर पर
जहां बांटते हैं मेरे परमपिता,
अपनी रसमयी शांति जो पूरी करें इच्छाएं सब।
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अनंत मोतियों से भरी यह पुस्तक (योगी कथामृत) मिल भी गई थी। जो एक पृष्ठ मेरे सामने खुला उस पर लिखा था, 'नित्य नवीन आनंद ही ईश्वर है। वह अक्षय है। जैसे-जैसे तुम ध्यान करते जाओगे, वैसे-वैसे वह अनंत युक्तियों से तुम्हें मोहित करता ही रहेगा। तुम्हारे जैसे भक्त, जिन्हें ईश्वर का मार्ग मिल जाता है, स्वप्न में भी कभी ईश्वर के स्थान पर दूसरे किसी सुख की प्राप्ति की कल्पना नहीं कर सकते।' अनंत युक्तियों में से अनेक युक्तियां घटने लगीं। ऐसा लगा जैसे लेखक ने ‘तुम्हारे जैसे भक्त’ मुझे ही कहा। अब आवश्यकता थी उस उपाय की कि ध्यान कैसे किया जाए? वेबसाइट देखी तो बहुत कुछ जाना।
योगानंद जी की माता जब नन्हे शिशु मुकुंद (जो बाद में योगानंद कहलाए) को लेकर आशीर्वाद हेतु अपने गुरु के पास गईं तो उन्होंने कहा, 'छोटी मां! तुम्हारा पुत्र एक योगी होगा। एक आध्यात्मिक इंजन बनकर वह अनेक आत्माओं को ईश्वर के साम्राज्य में ले जाएगा।' ईश्वर के साम्राज्य की ओर ले जाने वाले मार्ग की ओर कदम बढ़ने लगे। उसके बाद जाना योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के बारे में, जिसकी स्थापना योगानंद जी ने की थी।
यहां क्रियायोग सिखाया जाता है, जो ईश्वर तक पहुंचने के लिए विमान मार्ग कहा जाता है। 'योगी कथामृत' में वर्णित, अपने गुरु की तलाश में अनेक संतों से योगानंद जी की भेंट और अंततः गुरु से मिलन एक चलचित्र की भांति दृश्य पटल पर चलता है और उनके गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर जी के शब्द कितने प्रेरणादायक हैं, जो हमें जीवन में संतुलन सिखाते हैं : 'जो लोग इस भूलोक में आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं, वे विवेक और निष्ठा के साथ जगत में अपना कार्य करते हुए भी अपने आंतरिक परमानंद में निमग्न रहते हैं।'
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इसी संतुलन के साथ योगानंद जी ने अपना जीवन जिया। योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया/सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप आफ अमेरिका के माध्यम से वे विश्व भर में ध्यान प्रविधियों एवं आदर्श-जीवन पर सत्संग करते हुए वे सदा आंतरिक परमानंद में निमग्न रहते। वे ईश्वर से अपनी वार्ता में कहते हैं,'मैं चाहता हूं आपका शाश्वत आनंद, केवल दूसरों को इसमें सहभागी बनाने के लिए, ताकि मैं अपने सभी भाइयों को दिखा सकूं सुख का मार्ग आपमें सदा-सदा के लिए।' क्यों न हम भी उनके आग्रह से लाभान्वित होते हुए पांच जनवरी को उनके शुभ आविर्भाव दिवस पर उनकी नौका में सवार हो आत्म-मुक्ति के तट पर पहुंचने का दृढ़ निश्चय करें।
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