Yoga Day 2025: मनुष्य के भीतर की मिलन की चाह सकारात्मक रूप धारण करती है, तो वह योग है
प्राकृतिक रूप में जीवन बिल्कुल सही या संपूर्ण नहीं हो सकता। उसमें हमेशा सुधार की गुंजाइश होती है। किंतु सृष्टि की ज्यामिति संपूर्ण होती है। इस सटीक ज्यामितीय संतुलन के कारण जीवन इस तरह फलता-फूलता है। मानव जीवन जितना क्षणभंगुर है उतना ही शक्तिशाली भी है। एक मनुष्य बहुत कुछ कर सकता है। इसकी वजह यह है कि रचना की प्रक्रिया के पीछे जो ज्यामितीय बनावट है वह संपूर्ण है।

सद्गुरु, ईशा फाउंडेशन के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु। आज विज्ञान यह पता लगाने में लगा है कि एक कीड़े से लेकर हाथी तक, पेड़ से लेकर नदी और सागर तक, ग्रहों से लेकर पूरे ब्रह्मांड तक हर रूप में अणु और परमाणु संबंधी संरचना की ज्यामिति कैसी है। अणु से लेकर ब्रह्मांड तक, सभी रूपों की ज्यामिति अपने मूल गुण में बिल्कुल एक जैसी है।
यह बनावट इतनी संपूर्ण है कि जीवन क्षणभंगुर होने के बाद भी मजबूत और सुंदर है। ज्यामिति की इस संपूर्णता को जीवन में उतारने के प्रयास से ही योग की परिष्कृत प्रणाली का जन्म हुआ। अपने पूरे तंत्र को, जिसमें शरीर, मन, भावनाएं, पिछले जन्म के कर्म और मूलभूत ऊर्जा शामिल हैं, ब्रह्मांड के साथ एक ज्यामितीय संतुलन में लाना ही योग बताता है।
योग का महत्व
लगभग 15 हजार साल पहले आदियोगी शिव संपूर्णता की इस स्थिति तक पहुंचे थे। वह इतने स्थिर हो गए थे कि उन्हें देखने वाले यह तय नहीं कर पाते थे कि वह जीवित हैं या नहीं। उनके भीतर जीवन की एकमात्र निशानी थी, उनके गालों पर लुढ़कते परमानंद के आंसू। आदियोगी संपूर्ण स्थिरता की इस स्थिति से निकलकर अचानक उन्माद में नृत्य करने लगे।
यह तांडव दर्शाता था कि उनके भीतर की संपूर्ण ज्यामिति उनके लिए कोई बाधा नहीं थी, उन्हें एक जगह बैठने की आवश्यकता नहीं थी। वह पूरी उन्मुक्तता से नृत्य करते हुए भी अपने और विशाल ब्रह्मांडीय प्रकृति के साथ संपूर्ण संतुलन को खोते नहीं थे। यह तांडव एक आनंदमय अभिव्यक्ति है- भाव, राग, ताल और ब्रह्मांडीय प्रकृति के बीच संतुलन और संपूर्णता की।
योग का सही अर्थ
योग का अर्थ होता है मेल। जब शरीर और भावनाओं की सीमाओं में कैद कोई व्यक्ति अपने भीतर संपूर्णता को प्राप्त कर लेता है, जहां वह हर वस्तु के साथ एक हो जाता है, तो वह योग की स्थिति में होता है। यह संभावना हर मनुष्य के भीतर एक बीज के रूप में होती है।
अगर आप कोशिश करें तो आप अपने भीतर पूरे ब्रह्मांड को महसूस कर सकते हैं। योग की इस अवस्था को लेकर बहुत सारी कहानियां प्रचलित रही हैं। जैसे, यशोदा का कृष्ण के मुंह में ब्रह्मांड को देखना या पूरे ब्रह्मांड को शिव के शरीर के रूप में देखना। योग की अवस्था का मतलब सिर के बल या एक पांव पर खड़ा होना नहीं है। योग का मतलब मिलन की स्थिति में होना है।
मिलते हैं अद्भुत लाभ
ज्यामिति की यह पूर्णता बहुत तरीकों से पाई जा सकती है। बुद्धि से, भावना से, ऊर्जा से, कार्य की शुद्धता से और सबसे बढ़कर भक्ति से - ये सब उन्मुक्तता की स्थिति तक आने के उपकरण हैं। जब आप अपने व्यक्तित्व को छोड़ देते हैं तो आप शेष ब्रह्मांड के साथ मिलन की स्थिति में होते हैं। इंसान की संपूर्णता की भावना बढ़ जाती है, जब वह मिलन की प्रतीति करता है।
यह चाह शारीरिक होती है, तो कामुकता कहलाती है, लेकिन वह भावनात्मक, प्रेम या करुणा रूप में व्यक्त हो तो उसे सफलता, विजय आदि कहा जाता है। योग किसी के विरुद्ध नहीं होता है, सिवाय अयोग्यता या प्रभावहीनता के। हम इंसान पृथ्वी पर विकास के शिखर पर रहे हैं, इसलिए हमसे थोड़ी बुद्धि और निपुणता से काम करने की उम्मीद की जाती है।
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