सावन में सोमवार का दिन ही क्यों विशेष रूप से चुना गया?
‘सोम’ का अर्थ ही दिव्यौषधि से है। प्राचीन काल में सोम-लताओं का प्रयोग यज्ञ-अनुष्ठान के साथ प्रसाद के रूप में किए जाने का उल्लेख ग्रंथों में है। सोम-लता के रसपान से मानसिक शक्ति तो मिलती ही थी आयुवृद्धि भी होती थी। सोमवार के अधिष्ठाता चंद्रमा हैं।
नई दिल्ली, सलिल पांडेय। वैसे तो वर्ष भर भगवान शंकर की पूजा की जाती है, लेकिन सावन के महीने में पूरा वातावरण शिवमय हो जाता है। लोकमान्यता है कि सावन में भगवान शंकर कैलास पर्वत से उतर कर मैदानी परिक्षेत्र में आ जाते हैं। भगवान शंकर के इस आगमन की व्याख्या विद्वानों ने शीर्ष पर बैठे महापुरुष का आवश्यकतानुरूप धरातल के लोगों के बीच आकर उनका कुशलक्षेम जानने के रूप में की है। स्वाभाविक है कि जब तक उच्चस्थ लोग आम जनता के बीच नहीं आएंगे, तब तक लोक-कल्याण नहीं हो सकता। शीर्ष और धरातल के इस संगम पर प्रकृति झूमने लगती है।
महादेव को प्रसन्न करने के लिए सावन के सोमवार का दिन विशेष रूप से सुनिश्चित किया गया है। चूंकि सोमवार शीतलता और आरोग्य प्रदान करने का दिवस माना गया है। ‘सोम’ का अर्थ ही दिव्यौषधि से है। प्राचीन काल में सोम-लताओं का प्रयोग यज्ञ-अनुष्ठान के साथ प्रसाद के रूप में किए जाने का उल्लेख ग्रंथों में है। सोम-लता के रसपान से मानसिक शक्ति तो मिलती ही थी, आयुवृद्धि भी होती थी। सोमवार के अधिष्ठाता चंद्रमा हैं।
चंद्रकिरणों से वनस्पतियों में रस-रसायन निर्मित होता है। चंद्रमा को आयुर्वेद में ‘औषधीश’ की उपाधि दी गई है। महादेव को चंद्रमा अति प्रिय हैं। समुद्र-मंथन में मिले अमृत के वितरण के वक्त राहु का देवताओं के बीच छुप कर अमृतपान का भेद चंद्रमा ने उजागर किया। इस पर राहु क्रूद्ध होकर चंद्रमा को मारने दौड़ा। चंद्रमा महादेव के शीश पर आकर बैठ गए। राहु ने महादेव से कहा कि वह चंद्रमा को शीश से हटा दें, परंतु महादेव ने ऐसा करने से मना कर दिया। महादेव का विवाह दक्ष की प्रथम पत्नी प्रसूति की 24 कन्याओं में सती से हुआ था और चंद्रमा का विवाह भी दक्ष की दूसरी पत्नी वीरणी की 60 कन्याओं में से 27 कन्याओं से हुआ था। इसी कारण चंद्रमा भगवान शंकर के अति प्रिय हैं और सोमवार का दिन भी।