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    समस्याएं क्यों होती है और क्या है इसका समाधान

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Tue, 13 Jan 2015 10:28 AM (IST)

    धूप और छांव की तरह जीवन में कभी दुख ज्यादा तो कभी सुख की स्थितियां ज्यादा होती हैं। जिंदगी की सोच का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि जिंदगी में जितनी अधिक समस्याएं होती हैं, सफलताएं भी उतनी ही तेजी से कदमों को चूमती हैं।

    समस्याएं क्यों होती है और क्या है इसका समाधान

    धूप और छांव की तरह जीवन में कभी दुख ज्यादा तो कभी सुख की स्थितियां ज्यादा होती हैं। जिंदगी की सोच का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि जिंदगी में जितनी अधिक समस्याएं होती हैं, सफलताएं भी उतनी ही तेजी से कदमों को चूमती हैं।

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    समस्याओं के बगैर जीवन के कोई मायने नहीं हैं। समस्याएं क्यों होती हैं, यह एक विचारणीय प्रश्न है। यह भी एक प्रश्न है कि हम समस्याओं को कैसे कम कर सकते हैं। इस प्रश्न का समाधान आध्यात्मिक परिवेश में ही खोजा जा सकता है। अति चिंतन, अति स्मृति और अति कल्पना-ये तीनों समस्याएं पैदा करती हैं। शरीर, मन और वाणी-इन सबका उचित उपयोग होना चाहिए। यदि इनका उपयोग न हो, इन्हें बिल्कुल काम में न लें तो ये निकम्मे बन जाएंगे। यदि इन्हें बहुत ज्यादा काम में लें, अतियोग हो जाए तो ये समस्या पैदा करेंगे। इस समस्या का कारण व्यक्ति स्वयं है और वह समाधन खोजता है दवा में, डॉक्टर में या बाहर ऑफिस में। यही समस्या व्यक्ति को अशांत बनाती है। जरूरत है संतुलित जीवन-शैली की। जीवन-शैली के शुभ मुहूर्त पर हमारा मन उगती धूप की तरह ताजगी-भरा होना चाहिए, क्योंकि अनुत्साह भयाक्रांत, शंकालु और अधमरा मन समस्याओं का जनक होता है। यदि हमारे पास विश्वास, साहस, उमंग और संकल्पित मन है, तो दुनिया की कोई ताकत हमें अपने पथ से विचलित नहीं कर सकती।

    हम सबसे पहले यह खोजें, जो समस्या है उसका समाधान मेरे भीतर है या नहीं? बीमारी पैदा हुई, डॉक्टर के पास गए और दवा ले ली। यह एक समाधान है पर ठीक समाधान नहीं है। पहला समाधान अपने भीतर खोजना चाहिए। एक व्यक्ति स्वस्थ रहता है क्या वह दवा या डॉक्टर के बल पर स्वस्थ रहता है या अपने मानसिक बल यानी सकारात्मक सोच पर स्वस्थ रहता है? हमारी सकारात्मक सोच अनेक बीमारियों और समस्याओं का समाधान है। जितने नकारात्मक भाव या विचार हैं, वे हमारी बीमारियों और समस्याओं से लडऩे की प्रणाली को कमजोर बनाते हैं। प्राय: यह कहा जाता रहा है-ईष्र्या मत करो, घृणा और द्वेष मत करो। एक धार्मिक व्यक्ति के लिए यह महत्वपूर्ण निर्देश है, किंतु आज यह धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन गया है। विज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया है कि जो व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है उसे निषेधात्मक भावों से बचना चाहिए।