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    क्या है सिक्स्थ सेंस, क्या यह एक नयी दुनिया से संपर्क करवाती है

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Wed, 20 Jan 2016 10:42 AM (IST)

    यह सिक्स्थ सेंस ही है, जो समय-समय पर आपको आगाह करता है। कई बार तो हम विश्र्वास करते हैं और कभी हम उसकी परवाह नहीं करते। यही है सिक्स्थ सेंस, जिसकी व्याख्या पांचों इंद्रियां भी नहीं कर सकतीं।

    यह सिक्स्थ सेंस ही है, जो समय-समय पर आपको आगाह करता है। कई बार तो हम विश्र्वास करते हैं और कभी हम उसकी परवाह नहीं करते। यही है सिक्स्थ सेंस, जिसकी व्याख्या पांचों इंद्रियां भी नहीं कर सकतीं।

    भविष्य में घटने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं के प्रति सचेत करने वाला सिक्स्थ सेंस है। हर व्यक्ति को अपने जीवन-काल में ऐसा अनुभव अवश्य होता है, लेकिन कभी अज्ञानता, तो कभी अंधविश्र्वास समझते हुए, वह इस पर यकीन नहीं करता। व्यक्ति अपनी पॉंच इंद्रियों के प्रति जागरूक रहता है, क्योंकि ये इंद्रियां प्रत्यक्ष रूप से शरीर से संबंधित हैं, लेकिन सिक्स्थ सेंस की जानकारी बहुत कम लोगों को होती है, जबकि यह सेंस संवेदनाओं को समझने में पांच इंद्रियों से ज्यादा समर्थ है।

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    इस सेंस के जरिए व्यक्ति एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करता है, जो अनदेखी है, ऐसी दुनिया से संवाद स्थापित करता है, जो अनसुनी है। यह आत्मिक दुनिया विज्ञान की कसौटी पर पूरी तरह परखी नहीं गई है, लेकिन इस पर विश्र्वास करने वाले मानते हैं कि छठी इंद्रिय आपको सचेत करती है और एक नयी दुनिया से संपर्क करवाती है।

    सेंस से क्या डरनाः

    सिक्स्थ सेंस हर व्यक्ति के पास होता है। यह मनुष्य की मानसिक अवस्था की एक सामान्य प्रिाया है। ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ स्पेशल या गिफ्टेड लोगों के पास होता है। इसे गलत तरीके से प्रचारित किया गया है, इसलिए लोग इससे घबराते हैं।

    वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारितः

    व्यक्ति में जन्म से ही यह शक्ति होती है कि वह आत्मिक दुनिया से संवाद स्थापित कर सके। सिक्स्थ सेंस भी उसी वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है, जिस वैज्ञानिक पद्धति के तहत रेडियो और टेलीविजन के ट्रांसमिशन कार्य करते हैं। जिस तरह जरूरत पड़ने पर आप प्रोग्राम सुनने या देखने के लिए किसी फ्रीक्वेंसी या बैंड पर टी.वी. या रेडियो को ट्यून कर लेते हैं, उसी तरह सिक्स्थ सेंस को भी आप दूसरे व्यक्ति की फ्रीक्वेंसी या आध्यात्मिक दुनिया के किसी व्यक्ति की फ्रीक्वेंसी के अनुसार ट्यून कर सकते हैं। इलेक्ट्रानिक ट्यूनिंग बिजली के माध्यम से काम करती है, लेकिन आत्मिक ट्यूनिंग मस्तिष्क के माध्यम से संपर्क स्थापित करती है। इसके साधन हैं मानसिक एकाग्रता और इच्छाशक्ति।

    मेंटल साइट और सिक्स्थ सेंसः

    कोलंबिया ब्रिटिश यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजिस्ट रोनाल्ड रेनसिंक ने सिक्स्थ सेंस को प्रमाणित करने के लिए 40 लोगों को कंप्यूटर सीन पर कुछ आस्थर इमेज दिखाए। प्रत्येक इमेज को एक सेकेंड से भी कम समय के लिए हर व्यक्ति को दिखाया गया। इसके बाद लोगों को एक ग्रे सीन दिखाई गई। ग्रे सीन पर भी कुछ लोगों को वही चित्र नजर आया। कुछ समय बाद उन्हें इन तस्वीरों में कुछ बदलाव करके दिखाया गया। लोगों को पता चल गया कि चित्र में कुछ बदलाव किया गया है। हालांकि वे यह नहीं बता सके कि किस हिस्से में बदलाव किया गया है। रोनाल्ड इसे मेंटल साइट कहते हैं, जो यह बताती है कि चित्र में कुछ न कुछ जरूर बदल दिया गया है। उनका मानना है कि मेंटल साइट और सिक्स्थ सेंस में गहरा संबंध है।

    मेंटल ट्यूनिंगः

    इलेक्ट्रानिक ट्यूनिंग विश्र्वसनीय और तर्कसंगत है, जबकि मानसिक एकाग्रता से ट्यूनिंग करना मुश्किल है, क्योंकि यह स्थिर नहीं है। इस पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहा जा सकता। फिर भी इसे पूरी तरह से अवैज्ञानिक मानकर खारिज भी नहीं किया जा सकता। इलेक्ट्रिकल ट्यूनिंग और मेंटल ट्यूनिंग में फर्क सिर्फ इतना है कि मेंटल ट्यूनिंग अभी शोध के प्रारंभिक दौर में है। इस दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना है। जहां तक भविष्य में इसकी प्रगति का सवाल है तो हमें यह समझना होगा कि आज विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि सिक्स्थ सेंस की प्रमाणिकता को भी वैज्ञानिक आधार पर परखा जा सकता है। सिक्स्थ सेंस का आत्मिक दुनिया से संबंध स्थापित करने संबंधी शोध प्रारंभिक अवस्था में होने के कारण इस पर से पूरी तरह से पर्दा नहीं उठ सका है।

    हर व्यक्ति को होता है ऐसा अनुभव:

    जागृत अवस्था में या सपने में हर व्यक्ति कभी न कभी सिक्स्थ सेंस जैसे अनुभव से गुजरा है। जो लोग ऐसे अनुभव को याद नहीं कर पाते, वे इसके संकेतों से अनभिज्ञ रहते हैं।

    कई बार अंधविश्र्वास या मन का वहम समझते हुए भी लोग इन बातों को दूसरों को बताने से डरते हैं। अध्यात्म से जुड़े लोग इस बात को स्वीकार करते हैं कि कभी न कभी आत्मिक दुनिया से उनका सम्पर्क हुआ है।