जानिए, क्या है मां लक्ष्मी की महिमा व इसकी पूजन विधि
कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इसे रोशनी का पर्व भी कहा जाता है। कहते हैं पूरी श्रद्वा-भाव से अगर दिवाली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा कि जाए तो व्यक्ति धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है। इस पूजा में माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व
कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इसे रोशनी का पर्व भी कहा जाता है। कहते हैं पूरी श्रद्वा-भाव से अगर दीपवाली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा कि जाए तो व्यक्ति धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है।
पढ़ें: दीपावली से जुड़ी सारी खबरें इस पूजा में माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है।
कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियां मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं और कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था।
आज के दिन व्यापारी अपने बही खाते बदलते है तथा लाभ हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं। दीपावली पर जुआ खेलने की भी प्रथा हैं। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर में भाग्य की परीक्षा करना है। लोग जुआ खेलकर यह पता लगाते हैं कि उनका पूरा साल कैसा रहेगा।
इस बार दीपावली तीन नवंबर रविवार को पड़ा है।
नीचे दिए गए शुभ मुहूर्त में ही पूजा करें-
प्रदोष काल मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त- 18:00 18:19
अवधि- 0 घंटे 19 मिनट
प्रदोष काल- 18-00 20: 33
वृषभ काल- 18:45 20:45
आमावस्या तिथि आरंभ- 20:12 (2 नवंबर 2013)
आमावस्या तिथि समापन- 18:19 (3 नवंबर 2013)
पूजन विधान: दीपावली पर मां लक्ष्मी व गणेश के साथ सरस्वती माता की भी पूजा की जाती है। भारत मे दीपावली परम्पराओं का त्यौंहार है। पूरी परम्परा व श्रद्धा के साथ दीपावली का पूजन किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन में मां लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र की पूजा की जाती है। इसी तरह लक्ष्मी जी का पाना भी बाजार में मिलता है जिसकी परम्परागत पूजा की जानी अनिवार्य है।
गणेश पूजन के बिना कोई भी पूजन अधूरा होता है इसलिए लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन भी किया जाता है। सरस्वती की पूजा का कारण यह है कि धन व सिद्धि के साथ ज्ञान भी पूजनीय है इसलिए ज्ञान की पूजा के लिए माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।
इस दिन धन व लक्ष्मी की पूजा के रूप में लोग लक्ष्मी पूजा में पैसे व चाँदी के सिक्के भी रखते हैं। इस दिन रंगोली सजाकर माँ लक्ष्मी को खुश किया जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर, इन्द्र देव तथा समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान की भी पूजा की जाती है। तथा रंगोली बनाई जाती है।
विधि:-
दीपावली के दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व हैं। इसके लिए दो थालों में दीपक रखें। छ: चौमुखे दीपक दोनो थालों में रखें। छब्बीस छोटे दीपक भी दोनो थालों में सजायें। इन सब दीपको को प्रज्जवलित करके जल, रोली, खील बताशे, चावल, गुड, अबीर, गुलाल, धूप, आदि से पूजन करें और टीका लगावें।
दीपावली पूजन कैसे करें-
प्रात: स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
अब निम्न संकल्प से दिनभर उपवास रहें-
मम सर्वापच्छांतिपूर्वकदीर्घायुष्यबलपुष्टिनैरुच्यादि-
सकलशुभफल प्राप्त्यर्थं
गजतुरगरथराच्यैश्वर्यादिसकलसम्पदामुत्तरोत्तराभिवृद्ध्यर्थं
इंद्रकुबेरसहितश्रीलक्ष्मीपूजनं करिष्ये।
संध्या के समय पुन: स्नान करें।
लक्ष्मीजी के स्वागत की तैयारी में घर की सफाई कर लक्ष्मीजी की चित्र स्थापित करें
भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, कदली फल, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ बनाएं।
लक्ष्मीजी के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बाँधें।
इस पर गणेशजी की मिट्टी की मूर्ति स्थापित करें। फिर गणेशजी को तिलक कर पूजा करें। अब चौकी पर छ: चौमुखे व 26 छोटे दीपक रखें।
इनमें तेल-बत्ती डालकर जलाएं।
फिर जल, मौली, चावल, फल, गुढ़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करें।
पूजा के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें।
एक छोटा तथा एक चौमुखा दीपक रखकर निम्न मंत्र से लक्ष्मीजी का पूजन करें-
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरे: प्रिया।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्वदर्चनात॥
इस मंत्र से इंद्र का ध्यान करें-
ऐरावतसमारूढो वज्रहस्तो महाबल:।
शतयज्ञाधिपो देवस्तमा इंद्राय ते नम:॥
इस मंत्र से कुबेर का ध्यान करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पद:॥
इस पूजन के पश्चात तिजोरी में गणेशजी तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें।
लक्ष्मी पूजन रात के बारह बजे करने का अलग महत्व है।-
इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की मूर्ति रखें। समीप ही एक सौ एक रुपए, सवा सेर चावल, गुढ़, चार केले, मूली, हरी ग्वार की फली तथा पाँच लड्डू रखकर लक्ष्मी-गणेश का पूजन करें। उन्हें लड्डुओं से भोग लगाएँ।
दीपकों का काजल सभी स्त्री-पुरुष आँखों में लगाएं।
फिर रात्रि जागरण कर गोपाल सहस्त्रनाम पाठ करें। बड़े-बुजुगरें के चरणों की वंदना करें।
व्यावसायिक प्रतिष्ठान, गद्दी की भी विधिपूर्वक पूजा करें।
रात को बारह बजे दीपावली पूजन के उपरान्त चूने या गेरू में रुई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल्ल, लोढ़ा तथा छाज (सूप) पर कंकू से तिलक करें।
दूसरे दिन प्रात:काल चार बजे उठकर पुराने छाज में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाते समय कहें लक्ष्मी-लक्ष्मी आओ, दरिद्र-दरिद्र जाओ।
लक्ष्मी पूजन के बाद अपने घर के तुलसी के गमले में, पौधों के गमलों में घर के आसपास मौजूद पेड़ के पास दीपक रखें।
मंत्र-पुष्पांजलि-
अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन ।
तेह नाकं महिमान: सचन्त यत्र पूर्वे साध्या: सन्ति देवा: ॥
राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।
स मे कामान कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम: ।
ऊं महालक्ष्म्यै नम:, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।
(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें।)
प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें, अब हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें-
क्षमा प्रार्थना-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम ॥
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वम मम देवदेव ।
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भव: ।
त्राहि माम परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥
पूजन समर्पण-
हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें :-
ऊं अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मी: प्रसीदतु:
जल छोड़ दें, प्रणाम करें।
विसर्जन-
अब हाथ में अक्षत लें (गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें। -
यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम ।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥
फिर लक्ष्मीजी की आरती करें।
जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत हर-विष्णु-धाता ॥? जय..
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥? जय..
तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता॥ जय..
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता ॥? जय..
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता ।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥? जय..
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता ।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता ॥? जय..
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥? जय..
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता ।
उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता ॥? जय..
आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं आरती लें, पूजा में सम्मिलित सभी लोगों को आरती दें।
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