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    विवेकानंद: सूक्ष्म में है शक्ति

    By Edited By:
    Updated: Mon, 24 Jun 2013 01:41 PM (IST)

    जो जितना सूक्ष्म है, उसमें उतनी ही शक्ति है। इसलिए सूक्ष्म तक पहुंचने का प्रयास करें। जो सूक्ष्मतम है वही परमात्मा है। स्वामी विवेकानंद का चिंतन..

    जो जितना सूक्ष्म है, उसमें उतनी ही शक्ति है। इसलिए सूक्ष्म तक पहुंचने का प्रयास करें। जो सूक्ष्मतम है वही परमात्मा है। स्वामी विवेकानंद का चिंतन..

    जगत में जो कुछ है, सब एक तत्व है। जो स्थूल है, वह जैसे-जैसे ऊंची चढ़ती है, वैसे ही वैसे वह सूक्ष्मतर होती जाती है। सूक्ष्मतम को हम आत्मा कहते हैं और स्थूलतम को शरीर। जो कुछ छोटे परिमाण में इस शरीर में है, वही बड़े परिमाण में विश्व में है। जो पिंड में है, वही ब्रšांड में है। यह हमारा विश्व ठीक इसी प्रकार का है। बहिरंग में स्थूल घनत्व है और जैसे-जैसे यह ऊंचा चढ़ता है, वैसे-वैसे वह सूक्ष्मतर होता जाता है और अंत में परमेश्वर रूप बन जाता है।

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    हम यह भी जानते हैं कि सबसे अधिक शक्ति सूक्ष्म में है, स्थूल में नहीं। एक मनुष्य भारी वजन उठाता है, उसकी पेशियां फूल उठती हैं और संपूर्ण शरीर पर परिश्रम के चिथ् दिखने लगते हैं। हम समझते हैं कि पेशियां बहुत शक्तिशाली हैं, परंतु असल में जो पेशियों को शक्ति देते हैं, वे तो धागे के समान पतले तंतु (न‌र्व्स) हैं। जिस क्षण इन तंतुओं में से एक का भी पेशियों से संबंध टूट जाता है, उसी क्षण वे पेशियां बेकाम हो जाती हैं। ये छोटे-छोटे तंतु किसी अन्य सूक्ष्मतर वस्तु से अपनी शक्ति ग्रहण करते हैं और वह सूक्ष्मतर वस्तु फिर अपने से भी अधिक सूक्ष्म विचारों से शक्ति ग्रहण करती है। इसी तरह यह क्रम चलता रहता है। इसलिए वह सूक्ष्म तत्व ही है, जो शक्ति का अधिष्ठान है।

    स्थूल में होने वाली गति हम अवश्य देख सकते हैं, परंतु सूक्ष्म में होने वाली गति हम देख नहीं सकते। जब स्थूल वस्तुएं गति करती हैं, तो हमें उसका बोध होता है, इसलिए हम स्वाभाविक ही गति का संबंध स्थूल से जोड़ देते हैं, परंतु वास्तव में सारी शक्ति सूक्ष्म में ही है। सूक्ष्म में होने वाली गति हम देख नहीं सकते, शायद इसका कारण यह है कि वह गति इतनी तीव्र होती है कि हम उसका अनुभव ही नहीं कर सकते। परंतु यदि कोई शास्त्र या कोई शोध इन सूक्ष्म शक्तियों के ग्रहण करने में मदद दे, तो यह व्यक्त विश्व ही, जो इन शक्तियों का परिणाम है, हमारे अधीन हो जाएगा। पानी का एक बुलबुला झील की तली से निकलता है, वह ऊपर आता है, परंतु हम उसे देख नहीं सकते, जब तक कि वह सतह पर आकर फूट नहीं जाता। इसी तरह विचार अधिक विकसित हो जाने पर या कार्य में परिणत हो जाने पर ही देखे जा सकते हैं। हम सदा यही कहा करते हैं कि हमारे कर्र्मो पर, हमारे विचारों पर हमारा अधिकार नहीं चलता। यह अधिकार हम कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

    यदि हम सूक्ष्म गतियों पर नियंत्रण कर सकें और विचार के विचार बनने एवं कार्यरूप में परिणत होने के पूर्व ही यदि उसको मूल में ही अधीन कर सकें, तो इस सब को नियंत्रित कर सकना हमारे लिए संभव होगा।

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