रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत दर्शन
वैष्णव आचायरें में प्रमुख रामानुजाचार्य ने वेदांत दर्शन पर आधारित अपने दर्शन विशिष्टाद्वैत की आधारशिला रखी थी। उन्होंने ब्रह्मसूत्र पर भाष्य 'श्रीभाष्य' एवं 'वेदार्थ संग्रह' की रचना की। रामनुजाचार्य के विशिष्टाद्वैत दर्शन में सत्ता या परमसत के तीन स्तर माने गए हैं- ब्रहम अर्थात ईश्वर
वैष्णव आचायरें में प्रमुख रामानुजाचार्य ने वेदांत दर्शन पर आधारित अपने दर्शन विशिष्टाद्वैत की आधारशिला रखी थी। उन्होंने ब्रह्मसूत्र पर भाष्य 'श्रीभाष्य' एवं 'वेदार्थ संग्रह' की रचना की।
रामनुजाचार्य के विशिष्टाद्वैत दर्शन में सत्ता या परमसत के तीन स्तर माने गए हैं- ब्रहम अर्थात ईश्वर, चित अर्थात आत्म-तत्व, तथा अचित अर्थात प्रकृति। आत्म-तलव तथा प्रकृति विशिष्ट रूप से ब्रहम का ही स्वरूप है। यही रामनुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत सिद्धांत है। जैसे शरीर एवं आत्मा पृथक नहीं हैं तथा आत्म-तत्व के उद्देश्य की पूर्ति के लिए शरीर कार्य करता है, उसी प्रकार ब्रह्म या ईश्वर से पृथक चित एवं अचित का कोई अस्तित्व नहीं हैं।
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