Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इसीलिए इसका नाम स्कंद पुराण पड़ा

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Thu, 19 May 2016 10:55 AM (IST)

    पुराणों के क्रम में स्कंद पुराण का तेरहवां स्थान है। आकार की दृष्टि से सबसे बड़ा पुराण है। इसमें स्कंद (कार्तकेय) द्वारा शिवतत्व का वर्णन किया गया है। इसीलिए इसका नाम स्कंद पुराण पड़ा

    पुराणों के क्रम में स्कंद पुराण का तेरहवां स्थान है। आकार की दृष्टि से सबसे बड़ा पुराण है। इसमें स्कंद (कार्तकेय) द्वारा शिवतत्व का वर्णन किया गया है। इसीलिए इसका नाम स्कंद पुराण पड़ा। इसमें तीर्थों के उपाख्यानों और उनकी पूजा-पद्धति का भी वर्णन है। 'वैष्णव खंड' में जगन्नाथपुरी की और 'काशीखंड' में काशी के समस्त देवताओं, शिवलिंगों का आविर्भाव और महात्म्य बताया गया है। 'आवन्यखंड' में उज्जैन के महाकलेश्वर का वर्णन है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हिंदुओं के घर-घर में प्रसिद्ध 'सत्यनारायण व्रत' की कथा 'रेवाखंड' में मिलती है। तीर्थों के वर्णन के माध्यम से यह पुराण पूरे देश का भौगोलिक वर्णन प्रस्तुत करता है। स्कंदपुराण का मूल रचनाकाल सातवीं शताब्दी माना जाता है, पर इसमें समय-समय पर सामग्री जुड़ती गई है। इसके वृहदाकार का यही कारण है।

    शिव-पुत्र कार्तकेय का नाम ही स्कन्द है। स्कन्द का अर्थ होता है- क्षरण अर्थात् विनाश। भगवान शिव संहार के देवता हैं। उनका पुत्र कार्तिकेय संहारक शस्त्र अथवा शक्ति के रूप में जाना जाता है।यह छह संहिताओं-सनत्कुमार संहिता, सूत संहिता, शंकर संहिता, वैष्णव संहिता, ब्रह्म संहिता तथा सौर संहिता में विभाजित है।

    'स्कन्द पुराण' में इक्यासी हज़ार श्लोक हैं। इस पुराण का प्रमुख विषय भारत के शैव और वैष्णव तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन करना है। उन्हीं तीर्थों का वर्णन करते समय प्रसंगवश पौराणिक कथाएं भी दी गई हैं। बीच-बीच में अध्यात्म विषयक प्रकरण भी आ गए हैं। तुलसीदास के 'रामचरित मानस' में इस पुराण का व्यापक प्रभाव दिखाई देता है।

    'स्कन्द पुराण' कहता है कि ममता-मोह त्याग कर निर्मल चित्त से मनुष्य को भगवान के चरणों में मन लगाना चाहिए। तभी वह कर्म के बन्धनों से मुक्त हो सकता है। मन के शान्त हो जाने पर ही व्यक्ति योगी हो पाता है। जो व्यक्ति राग-द्वेष छोड़कर क्रोध और लोभ से दूर रहता है, सभी पर समान दृष्टि रखता है तथा शौच-सदाचार से युक्त रहता है; वही सच्चा योगी है।

    'स्कन्द पुराण' में जितने तीर्थों का उल्लेख है, उतने तीर्थ आज देखने में नहीं आते। उनमें से अधिकांश तीर्थों का तो नामोनिशान तक मिट गया है और कुछ तीर्थ खण्डहरों में परिवर्तित हो चुके हैं। इस कारण समस्त तीर्थों का सही-सही पता लगाना अत्यन्त कठिन है। किन्तु जिन तीर्थों का माहात्म्य प्राचीन काल से चला आ रहा है, उनका अस्तित्व आज भी देखा जा सकता है।