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    दान तीन प्रकार के होते हैं

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Fri, 10 Apr 2015 10:10 AM (IST)

    सामान्यत: व्याकरण के आचार्यों ने दान को एक प्रकार का व्यवसाय मानते हुए कहा है कि वह व्यापार, जिसमें किसी वस्तु पर से अपना स्वत्व (अधिकार) दूर कर दूसरों का हो जाए। धर्मशास्त्रकारों ने धन (अर्थ) का अधिक महत्व समझ कर कहा है-'श्रेष्ठ पात्र देखकर श्रद्धापूर्वक द्रव्य (धन) का अर्पण

    दान तीन प्रकार के होते हैं

    सामान्यत: व्याकरण के आचार्यों ने दान को एक प्रकार का व्यवसाय मानते हुए कहा है कि वह व्यापार, जिसमें किसी वस्तु पर से अपना स्वत्व (अधिकार) दूर कर दूसरों का हो जाए। धर्मशास्त्रकारों ने धन (अर्थ) का अधिक महत्व समझ कर कहा है-'श्रेष्ठ पात्र देखकर श्रद्धापूर्वक द्रव्य (धन) का अर्पण करने का नाम दान है। ऐसा इसलिए, क्योंकि भौतिक साधनों की संपन्नता से मनुष्य सांसारिक सुख-साधनों को धन से प्राप्त कर लेता है। धर्मशास्त्रकारों ने दान के छह प्रमुख अंग बताए हैं-'दान लेने वाला, दान देने वाला, श्रद्धायुक्त, धर्मयुक्त, देश और काल। श्रद्धा और धर्मयुक्त होकर अच्छे देश (तीर्थ) या पुण्य स्थल और अच्छे काल (शुभ-मुहूर्त) में अच्छे दान द्वारा सुपात्र को दिया गया दान ही श्रेष्ठ दान कहलाता है।

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    दान तीन प्रकार के होते हैं-बिना किसी प्रत्युपकार के सत्पात्र की श्रद्धा और धर्मपूर्वक किया गया दान सात्विक कहलाता है। प्रत्युपकार या यज्ञ की अभिलाषा से किया गया दान राजसिक और देश, काल, पात्र आदि का ध्यान दिए बगैर किसी भी पात्र-अपात्र को असत्कार पूर्वक किया गया दान तामसिक कहलाता है। प्राचीन काल में भारतीय सभ्यता और संस्कृति के आधार पर दान की प्रचलित परंपराओं में परिवर्तन हुए हैं। आचार्यो द्वारा दान की पद्धतियों पर विचार करते हुए कहा गया है कि जिसे जिस वस्तु की आवश्यकता हो, उसे उसी वस्तु का दान देना चाहिए। हंिदूू धार्मिक ग्रंथों में ग्रहों की शांति के लिए दान को प्रमुखता दी गई है। निर्धारित मर्यादाओं में शिथिलता के कारण दान की परंपरा विलुप्त होती जा रही है। देश में दान के विविध रूपों-गोदान, भूदान, रक्तदान, अन्नदान आदि में देश की वर्तमान सांस्कृतिक परंपराओं में कन्यादान को ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। कन्या परिवार का गौरव भूषण वंशवेलि का संवर्धन करने वाली और स्वाभिमान के साथ ही विनम्रता, ममता, शिक्षिका और सेवा का प्रतीक भी है। कन्या पितृकुल और पतिकुल- दोनों ही को संवारने और महान बनाने वाली होती है। कन्यादान करने वाला व्यक्ति अभिमानशून्य और विनम्र हो जाता है, किंतु आजकल अनेक लोगों की मनोवृत्ति कन्या को परिवार का अंग न बनने देने की होती जा रही है। इसके लिए वह भ्रुण हत्या जैसा जघन्य अपराध करने में भी संकोच नहीं करते। इस मनोवृत्ति का मुख्य कारण आयातित सभ्यता के प्रति बढ़ रहा आकर्षण है।

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