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    मनुष्य का व्यवहार दो प्रकार का होता है

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Fri, 13 Feb 2015 09:30 AM (IST)

    कभी-कभी लगता है कि समय का पहिया तेजी से चल रहा है। जिस प्रकार से प्रतिक्रियाओं का दौर चल रहा है, वह और भी इस आभास की पुष्टि करा देता है, लेकिन समय की गति न तेज होती है और न रुकती है। समाज में प्रतिक्रियाएं बढ़ें, इसमें बुराई भी

    मनुष्य का व्यवहार दो प्रकार का होता है

    कभी-कभी लगता है कि समय का पहिया तेजी से चल रहा है। जिस प्रकार से प्रतिक्रियाओं का दौर चल रहा है, वह और भी इस आभास की पुष्टि करा देता है, लेकिन समय की गति न तेज होती है और न रुकती है।

    समाज में प्रतिक्रियाएं बढ़ें, इसमें बुराई भी नहीं है, लेकिन प्रतिक्रियाएं रचनात्मक न होकर विध्वंसात्मक अधिक हैं, जो घायल मानसिकता और ठहरी हुई सोच को दर्शाता है। सच तो यह है कि वर्तमान दौर में प्रतिक्रियाएं स्वस्थ, संतुलित और स्वाभाविक भावों से प्रेरित नहीं हैं। वे प्राय: आवेश, भावावेग, संवेग-उच्छृंखलता और बदले की भावना से संचालित हैं। उनका परिणाम प्रशस्त और हितकर नहीं है, बल्कि अशांति, बुराई, बर्बरता और अंध-प्रवृत्ति को बढ़ाने वाला है। इसी कारण हमने सांप्रदायिक विद्वेष, आतंकवाद और घोटालों का एक लंबा सफर तय किया है।

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    प्रतिक्रिया असंतुलित, उत्तेजक और मूर्छित भावों की संतान है। इसमें विवेक का पूरा अभाव होता है। जोश में और बड़प्पन के आगोश में यह अंधानुकरण चलता रहता है। मानव समाज को इससे कोई लाभ नहीं, बल्कि नुकसान ही ङोलना पड़ता है। सम्यक और स्वस्थ चिंतन से किसी दबाव के बगैर अपने ही सात्विक व स्वच्छ भावों से अपने या समाज के विकास, शांति और समृद्धि के लिए जो प्रयास किए जाएं, वे क्रियाएं होती हैं, पर आजकल तो हर क्रिया दूसरों की दूषित क्रियाओं से प्रेरित होती है। इनमें किसी व्यक्ति को तिरस्कृत या विनष्ट करने का कुत्सित मनोभाव छिपा रहता है। समाज इन घृणित, जघन्य और नकारात्मक प्रतिक्रियाओं से अंदर में खोखला और बाहर में टूटता चला जाता है। उनके प्राणों में विकार व्याप्त हो जाता है। इसलिए अपेक्षा है, मानव-समाज में क्षुद्र, संकीर्ण और भेदपरक प्रतिक्रियाओं का प्रवाह बंद हो और उदार, स्वस्थ, शालीन व अभेदजनक भावों से प्रेरित क्रियाओं का समुद्र उमड़े ताकि मानव समाज का भला हो, कल्याण हो और मानवीय समरसता बढ़े।

    मनुष्य का व्यवहार दो प्रकार का होता है। क्रियात्मक व्यवहार और प्रतिक्रियात्मक व्यवहार। जो व्यक्ति द्वंद्वों की परिधि से मुक्त रहता है, उसका व्यवहार क्रियात्मक होता है। जिसका व्यवहार क्रियात्मक रहता है, उसे प्रसन्नता का रहस्य उपलब्ध हो जाता है। जिसे प्रसन्नता का सूत्र मिल जाता है, वह शांत और सुखी बन जाता है।