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Swami Vivekananda Jayanti: आज है स्वामी विवेकानंद जयंती, जानें-उनका जीवन परिचय

स्वामी जी की माता की श्रद्धा सनातन धर्म में थी। वह रोजाना सुबह और शाम प्रभु का सुमरन करती थी। उनकी जिद के चलते स्वामी जी की प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई। स्वामी जी का बचपन में नाम नरेंद्र दत्त था। नरेंद्र बाल्यावस्था से प्रतिभा के धनी थे।

By Umanath SinghEdited By: Published: Tue, 11 Jan 2022 01:02 PM (IST)Updated: Wed, 12 Jan 2022 09:05 AM (IST)
Swami Vivekananda Jayanti: आज है स्वामी विवेकानंद जयंती, जानें-उनका जीवन परिचय
Swami Vivekananda Jayanti: आज है स्वामी विवेकानंद जयंती, जानें-उनका जीवन परिचय

Swami Vivekananda Jayanti: युवा के मार्ग प्रशस्तक और प्रेरणास्त्रोत स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी, 1863 ई में कलकत्ता के एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे। अतः इनके पिता दत्त जी पश्चिम सभ्यता में अधिक विश्वास करते थे। दत्त जी हमेशा अपने पुत्र स्वामी विवेकानंद जी को पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने की सलाह देते थे। उनका सपना था कि स्वामी जी भी उनकी तरह अंग्रेजी सीखकर कोई बड़ा आदमी बने।

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हालांकि, स्वामी जी की माता की श्रद्धा सनातन धर्म में थी। वह रोजाना सुबह और शाम प्रभु का सुमरन करती थी। उनकी जिद के चलते स्वामी जी की प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई। स्वामी जी का बचपन में नाम नरेंद्र दत्त था। नरेंद्र बाल्यावस्था से प्रतिभा के धनी थे। उन पर मां सरस्वती की कृपा थी। स्वामी जी को ईश्वर से बेहद ही लगाव था। 16 वर्ष की आयु में 1869 में स्वामी जी ने कलकत्ता विश्व विद्यालय के एंट्रेंस एग्जाम में बैठे और इस एग्जाम में उन्हें सफलता मिली।

इसी विश्व विद्यालय ने उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इस दौरन उनकी भेंट परमहंस महाराज जी से हुई। इसके बाद स्वामी जी ब्रह्म समाज से जुड़े। उस समय यह संस्था सनातन धर्म में सुधार के लिए कार्य करती थी। सन 1884 में स्वामी जी के पिता का निधन हो गया। इसके बाद घर परिवार की जिम्मेवारी स्वामी जी के कंधे पर आ गई। हालांकि, स्वामी जी ने अपनी जिम्मेवारी को बखूबी निभाया।

रामकृष्ण परमहंस महाराज जी ने स्वामी जी को मानवता में निहित ईश्वर की सेवा करने की सलाह दी। इसके बाद स्वामी जी ने अपना जीवन ईश्वर भक्ति और मानव सेवा को समर्पित कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि परमहंस महाराज जी ने स्वामी जी को आदि शक्ति मां काली का दर्शन कराया था। उस समय स्वामी जी शक्तिघात के कारण कुछ दिनों तक उन्मत्त अवस्था में रहे। गुरु के वचनों को मानकर उन्होंने शादी नहीं की। सन्यासी बनने के पश्चात स्वामी जी ने देशभर की पैदल यात्रा की।

स्वामी जी ने 1 मई 1897 को कोलकाता में रामकृष्ण मिशन और 1898 में बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की। सन 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित धर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। इस सम्मेलन में स्वामी जी के भाषण की पूरी दुनिया में प्रशंसा की गई। इससे भारत को भी नई पहचान मिली। 4 जुलाई, 1902 को बेलूर के रामकृष्ण मठ में ध्यानावस्था में महासमाधि धारण कर स्वामी जी पंचतत्व में विलीन हो गए।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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