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    Swami Ramkrishna Paramhans: अहंकार ही अज्ञान है, पढ़िए स्वामी रामकृष्ण परमहंस के अनमोल विचार

    By Jagran NewsEdited By: Shantanoo Mishra
    Updated: Tue, 21 Feb 2023 04:01 PM (IST)

    Swami Ramkrishna Paramhans स्वामी रामकृष्ण परमहंस बताते हैं कि जीव का अहंकार ही माया है। व्यक्ति को अपने जीवन में किस तरह रहना चाहिए और अहंकार व मैं के दंभ को क्यों किनारे रखकर कार्य करना चाहिए। जानते हैं स्वामी जी के कुछ अनमोल विचार।

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    श्रीरामकृष्ण परमहंस जी से जानिए क्यों अहंकार को नष्ट करने से मिलता है व्यक्ति को लाभ।

    नई दिल्ली, श्रीरामकृष्ण परमहंस | सूर्य वैसे तो सारे संसार को प्रकाश और ताप देता है, पर यदि वह मेघ से आच्छन्न हो जाए तो ऐसा नहीं कर पाता। इसी भांति जब तक हृदय अहंकार के आवरण से आच्छादित रहता है, तब तक उसमें भगवान प्रकाशित नहीं हो पाते। यह अहं मेघ की तरह है। इसी के कारण हम ईश्वर को नहीं देख पाते। यदि श्रीगुरु की कृपा से अहं-बुद्धि दूर हो जाए तो फिर ईश्वर के पूर्ण दर्शन हो जाते हैं। जैसे, सिर्फ ढाई हाथ की दूरी पर ही साक्षात पूर्णब्रह्म श्रीरामचंद्र जी हैं, किंतु बीच में सीता रूपिणी माया का आवरण होने के कारण लक्ष्मण जी रूपी जीव को ईश्वर राम के दर्शन नहीं होते। जीव का अहंकार ही माया है। यही अहंकार सब आवरण का मूल है।

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    अहंकार के नष्ट होने पर ही मिलती है मनुष्य को मुक्ति

    मैं के मरने पर ही सारा जंजाल दूर होगा। अगर किसी को ईश्वर की कृपा से मैं कर्ता नहीं हूं- यह ज्ञान हो जाए, तब तो वह जीवनमुक्त ही हो गया। फिर उसे किसी बात का भय नहीं। अगर मैं अपने को इस अंगोछे की ओट में कर लूं तो तुम मुझे नहीं देख सकते, पर मैं तुम्हारे बिल्कुल नजदीक ही हूं। इसी भांति और सभी चीजों की अपेक्षा ईश्वर ही तुम्हारे सबसे ज्यादा निकट है, किंतु अहं रूपी आवरण के कारण तुम उनके दर्शन नहीं कर सकते। जब तक अहंकार रहता है, तब तक न ज्ञान होता है, न मुक्ति मिलती है। हांडी में रखे पानी और चावल, दाल, आलू आदि को तब तक छुआ जा सकता है, जब तक हांडी आग पर नहीं रखी जाती। जीव की देह मानो हांडी है और धन, मान, विद्या, बुद्धि, जाति, कुल आदि मानों दाल, चावल, आलू की तरह हैं। अहंकार ही आग है, जिसके कारण ही जीव गरम (गर्वीला) होता है।

    वस्तुत: बरसात का पानी ऊंची जमीन पर नहीं ठहर पाता है, बहकर नीची जगह में ही जमता है। वैसे ही ईश्वर की कृपा भी नम्र व्यक्तियों के ही हृदय में ठहरती है, अहंकार-अभिमानपूर्ण हृदय में नहीं। जब तक अहंकार पूरी तरह नष्ट नहीं हो जाता तब तक मनुष्य की मुक्ति नहीं। मनुष्य में मैं निकल कर उसकी जगह तुम आ जाना चाहिए, परंतु आध्यात्मिक जागरण हुए बिना यह संभव नहीं। मुक्ति तभी मिलेगी, जब तुम्हारा मैं-पन चला जाएगा और तुम भगवान में डूब जाओगे। मैं मेरा अज्ञान है। तुम और तुम्हारा ज्ञान है। जो सही भक्त होता है, वह सदा कहता है- हे प्रभो, तुम्हीं कर्ता हो, तुम्हीं सब कुछ कर रहे हो। मैं तो केवल तुम्हारे हाथों का यंत्र मात्र हूं। तुम मुझसे जैसा करवाते हो, वैसा ही करता हूं। यह धन, ऐश्वर्य, यह जग तुम्हारी ही महिमा है। यह घर, परिवार, सब कुछ तुम्हारा है, मेरा कुछ भी नहीं। मैं तुम्हारा दास हूं। जैसा तुम्हारा आदेश होगा, वैसी ही सेवा करने भर का मुझे अधिकार है।