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संगीतज्ञों के आराध्य स्वामी हरिदास

ध्रुपद के जनक स्वामी हरिदास का जन्म विक्रम संवत 1535 में भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था। पिता आशुधीर, माता गंगा देवी के साथ अपने उपास्य राधा माधव की प्रेरणा से अनेक तीर्थयात्रा करने के बाद अलीगढ़ के ग्राम कोल (हरिदासपुर) में बस गए। स्वामी हरिदास संप्रदाय के ग्रंथ वाणी के अनुसार मधुर कंठ के क

By Edited By: Published: Fri, 13 Sep 2013 07:07 PM (IST)Updated: Fri, 13 Sep 2013 07:42 PM (IST)

वृंदावन, जागरण संवाददाता। ध्रुपद के जनक स्वामी हरिदास का जन्म विक्रम संवत 1535 में भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था। पिता आशुधीर, माता गंगा देवी के साथ अपने उपास्य राधा माधव की प्रेरणा से अनेक तीर्थयात्रा करने के बाद अलीगढ़ के ग्राम कोल (हरिदासपुर) में बस गए।

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स्वामी हरिदास संप्रदाय के ग्रंथ वाणी के अनुसार मधुर कंठ के कारण बचपन से ही हरिदास जी की गायन शैली की प्रसिद्धि फैलने लगी थी। यहां तक कि गांव भी उनके नाम से ही जाना जाने लगा। हरिदास जी का विवाह हरिमती से हुआ। लेकिन श्यामा कुंजबिहारी में उनकी आसक्ति देख पतिव्रता पत्नी ने योगाग्नि से अपना शरीर त्याग दिया। ताकि हरिदास जी की साधना में कोई विघ्न न आए। 125 वर्ष की उम्र में वह वृंदावन पहुंचे।

यहां निधिवन में वो श्यामा-कुंजबिहारी के ध्यान और भजन में तल्लीन रहते। उनकी साधना की शक्ति ने ठा. बांके बिहारी महाराज का प्राकट्य हुआ। वैष्णव, स्वामी हरिदास जी को ललिता सखी का अवतार मानते हैं। ललिता सखी को संगीत की अधिष्ठात्री माना गया है। स्वामी हरिदास संगीत के परम आचार्य थे, उनका संगीत सिर्फ अपने आराध्य को समर्पित था। बैजू बावरा, तानसेन जैसे दिग्गज संगीतज्ञ उनके शिष्य थे। स्वामी जी के संगीत की तारीफ सुन मुगल बादशाह अकबर भेष बदलकर वृंदावन स्वामीजी का संगीत सुनने आए थे।

सखी संप्रदाय के प्रवर्तक हरिदास

स्वामी हरिदास जी ने एक नये पंथ सखी संप्रदाय का प्रवर्तन किया। उनके द्वारा निकुंजोपासना के रूप में श्यामा कुंजबिहारी की सेवा-उपासना की पद्धति विकसित हुई, जो विलक्षण है। निकुंज उपासक प्रभु से अपने लिए कुछ नहीं चाहता, उसके समस्त कार्य अपने आराध्य को सुख देने के लिए ही होते हैं।

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