Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अध्यात्म आज युग की आवश्यकता है

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Thu, 08 Jan 2015 10:03 AM (IST)

    अध्यात्म आज युग की आवश्यकता है। लगभग सभी चिंतक, विचारक, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक इसकी आवश्यकता का अनुभव करने लगे हैं, परंतु वर्तमान में अध्यात्म का जो स्वरूप है, क्या यह उस आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है?

    अध्यात्म आज युग की आवश्यकता है

    अध्यात्म आज युग की आवश्यकता है। लगभग सभी चिंतक, विचारक, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक इसकी आवश्यकता का अनुभव करने लगे हैं, परंतु वर्तमान में अध्यात्म का जो स्वरूप है, क्या यह उस आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है?

    आज अध्यात्म सुंदर शब्दों पर टिक गया है। जो जितना अध्यात्म के गूढ़तत्वों को अलंकृत शैली में बोल सके, वह उतना ही बड़ा आध्यात्मिक व्यक्ति माना जा रहा है। फिर इसके एक भी तत्व को भले ही अनुभव न किया गया हो। वस्तुत: अध्यात्म ऐसा है नहीं। इसे ऐसा कर दिया गया है। अध्यात्म एक वैज्ञानिक प्रयोग है, जो पदार्थ के स्थान पर जीवन के नियमों को जानना, समझना, प्रयोग करना और अंत में जीवन जीने का तरीका सिखाता है। अध्यात्म जीवन-दृष्टि और जीवन-शैली का समन्वय है। यह जीवन को समग्र ढंग से न केवल देखता है, बल्कि इसे अपनाता भी है। आज कई लोग ऐसे हैं, जो अध्यात्म से नितांत अनभिज्ञ हैं, लेकिन वही अध्यात्म की भाषा बोल रहे हैं। आज अध्यात्म के तत्वों की कार्यशालाओं में चर्चा की जाती है। यह कटु सत्य है कि आध्यात्मिक भाषा बोलने वाले कुछ लोगों का जीवन अध्यात्म से नितांत अपरिचित, परंतु भौतिक साधनों और भोग-विलासों में आकंठ डूबा हुआ मिलता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    आज के तथाकथित कई अध्यात्मवेत्ता भय, आशंका, संदेह, भ्रम से ग्रस्त हैं, जबकि अध्यात्म के प्रथम सोपान को इनका समूल विनाश करके ही पार किया जाता है। चेतना की चिरंतन और नूतन खोज ही इसका प्रमुख कार्य रहा है, परंतु चेतना के विभिन्न आयामों को खोजने के बदले इससे जुड़े कुछ तथाकथित लोगों ने इसे और भी मलिन और संकुचित किया है। अध्यात्म को वर्तमान स्थिति से उबारने के लिए आवश्यक है कि इसे प्रयोगधर्मी बनाया जाए। अध्यात्म के मूल सिद्धांतों को प्रयोग की कसौटी पर कसा जाए। आध्यात्मिकता के बहिरंग और अंतरंग दो तत्व जीवन में परिलक्षित होने चाहिए। संयम और साधना ये दो अंतरंग तत्व हैं और स्वाध्याय व सेवा बहिरंग हैं। अंतरंग जीवन संयमित हो और तपश्चर्या की भट्टी में सतत गलता रहे। आज भी वास्तविक आध्यात्मिक विभूतियां विद्यमान हैं, परंतु उनके पदचिह्नें पर चलने का साहस करने वालों की कमी है। यही वह परिष्कृत अध्यात्म है, जो कहीं बाहर नहीं, हमारे ही अंदर है। हमें इसी की खोज करनी चाहिए।