Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सोमवती अमावस्या: विश्वास का चंद्रमा

    By Edited By:
    Updated: Mon, 02 Dec 2013 09:51 AM (IST)

    जीवन की 'अमावस' में भी हम विश्वास के 'सोम' (चंद्रमा) द्वारा उजाला ला सकते हैं। यही सोमवती अमावस्या (2 दिसंबर) का संदेश है.. सोम अर्थात चंद्रमा और अमावस्या अर्थात वह तिथि, जिस दिन चंद्रमा नहीं दिखाई देता। सोमवार यानी चंद्रमा वाले दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहत

    जीवन की 'अमावस' में भी हम विश्वास के 'सोम' (चंद्रमा) द्वारा उजाला ला सकते हैं। यही सोमवती अमावस्या (2 दिसंबर) का संदेश है..

    सोम अर्थात चंद्रमा और अमावस्या अर्थात वह तिथि, जिस दिन चंद्रमा नहीं दिखाई देता। सोमवार यानी चंद्रमा वाले दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। यह हमारे जीवन के उन विरोधाभासों की तरह है, जो बहुत जरूरी हैं। संकट की काली रात्रि में हमारे भीतर आशा और विश्वास का चंद्रमा उदित रहना चाहिए, अन्यथा हमारा जीवन अत्यंत कष्टमय हो जाता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जब हमारे जीवन में संकट का अंधेरा अमावस बनकर आच्छादित हो जाता है, तब हमें ऐसे प्रकाश की आवश्यकता होती है, जिससे यह अंधेरा छंट सके। ऐसे में हमें अपने भीतर उम्मीद के चंद्रमा को उदित करना होता है, जिसके शीतल प्रकाश से हम उस अंधेरे से मुकाबला कर सकें। हमारे भीतर यह विश्वास भी प्रकाशित रहना चाहिए कि अंधेरे के बाद उजाला ही आता है। यही संदेश देती है सोमवार के दिन पड़ने वाली 'सोमवती अमावस्या'।

    सोमवार को भगवान शिव जी का दिन माना जाता है, इसलिए सोमवती अमावस्या शिव जी की आराधना-अर्चना को समर्पित होती है। तभी तो विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं और पीपल के वृक्ष में शिव का वास मानकर उसकी पूजा और परिक्रमा करती हैं।

    सोमवती अमावस्या पर स्नान-दान करने की भी परंपरा है। इस दिन गंगा-स्नान का विशिष्ट महत्व है, लेकिन जो लोग गंगा तक नहीं जा पाते, वे किसी भी नदी या सरोवर आदि में स्नान करते हैं। फिर भगवान शंकर, पार्वती माता और तुलसी की पूजा करते हैं। इस दिन पीपल की परिक्रमा करने का भी विधान है। पूजा के बाद निर्धनों को भोजन कराते हैं।

    इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करने का विधान पर्यावरण को सम्मान देने के लिए है। माना गया है कि पीपल के मूल में भगवान विष्णु, तने में शिव जी तथा अग्रभाग में ब्रह्मा जी का निवास होता है। मान्यता है कि सोमवती अमावस्या पर पीपल के पूजन से सौभाग्य की वृद्धि होती है। यह भी मान्यता है कि इस दिन पितरों को जल देने से उन्हें तृप्ति मिलती है।

    ये सारे उपक्रम हमारे भीतर आशा और विश्वास का चंद्रमा उदित करने के लिए ही हैं। दृढ़ विश्वास के सहारे हम किसी भी संकट को पार कर लेते हैं और निर्धनों को दान आदि करके संकट के समय भी अपने सद्गुणों से न डगमगाने का संबल पाते हैं। इस प्रकार सोमवती अमावस की सार्थकता तभी है, जब संकट से हम न घबराएं और हर परिस्थिति में हमारे मन में आशा और विश्वास का चंद्रमा प्रकाशमान रहे।

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर