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नवग्रहों की शांति कर जीवन की अनेक समस्याओं को दूर कर सकते हैं

नवग्रहों का व्यक्ति के जीवन पर पूर्ण रुप से प्रभाव देखा जा सकता है| इन नवग्रहों की शांति द्वारा जीवन की अनेक समस्याओं को दूर करने में सहायक हो सकते हैं|

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 08 Apr 2017 12:59 PM (IST)Updated: Sat, 08 Apr 2017 02:04 PM (IST)
नवग्रहों की शांति कर जीवन की अनेक समस्याओं को दूर कर  सकते हैं
नवग्रहों की शांति कर जीवन की अनेक समस्याओं को दूर कर सकते हैं

 नवग्रह पूजन का विशेष महत्व पुराणों में वर्णित है| नवग्रह-पूजन के लिए सर्वप्रथम ग्रहों का आह्वान करके उनकी स्थापना की जाती है| मूर्ति का स्वरूप: नवग्रह शांति के लिए सबसे आवश्यक है उस ग्रह की प्रतिमा का होना। भविष्यपुराण के अनुसार ग्रहों के स्वरूप के अनुसार प्रतिमा बनवाकर उनकी पूजा करनी चाहिए।

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नवग्रहों का व्यक्ति के जीवन पर पूर्ण रुप से प्रभाव देखा जा सकता है| इन नवग्रहों की शांति द्वारा जीवन की अनेक समस्याओं को दूर करने में सहायक हो सकते हैं| नवग्रहों के विषय में अनेक तथ्यों को बताया गया है जिनमें मंत्रों का महत्व परिलक्षित होता है| इस विषय में ज्योतिष में अनेक सिद्धांत प्रचलित हैं| नव ग्रह स्त्रोत इसी के आधार स्वरुप एक महत्वपूर्ण मंत्र जाप है जिसके द्वारा समस्त ग्रहों की शांति की जा सकती है| नवग्रह स्त्रोत में मंत्र तथा दान-पुण्य करके इन ग्रहों की शांति की जा सकती है| कुंडली में स्थित इन नवग्रहों की शांति के लिए भी इस नवग्रह स्त्रोत का बहुत महत्व रहता है|

कभी - कभी सब कुछ सही होते हुए भी अगर हमारे ग्रह नक्षत्र खराब चल रहें हो तो कुछ अच्‍छा नहीं होता| शुभ अशुभ कर्मों के अनुसार ग्रहों का भी मनुष्‍य के जीवन पर प्रभाव पड़ता है| अशुभ ग्रहों का प्रभाव दूर कर शुभ ग्रहों को अनुकूल बनाने के लिए ग्रहों के मंत्र, प्रार्थना तथा उनसे संबंधित णमोकार मंत्र एवं तीर्थंकर का जाप बताया गया है| नौ ग्रह में जिस ग्रह का जाप किया जाये, उसी ग्रह के अनुकूल रंग के वस्त्र, माला, तिलक तथा रत्न धारण करने से शीघ्र लाभ मिलता है| जाप प्रारंभ करने से पूर्व निम्न मंत्र- गाथा सात बार अवश्य पढ़ें|

मंत्रो उच्चारण करते हुए ग्रहों का आह्वान करते हैं. धूप, अगरबत्ती, कपूर, केसर, चंदन, चावल, हल्दी, वस्त्र, जल कलश, पंच रत्न , दीपक, लौंग, श्रीफल, धान्य व दूर्वा इत्यादि वस्तुओं को पूजा में रखा जाता है| सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शानि, राहु एवं केतु इन नवग्रहों की पूजा के लिए सर्वप्रथम नवग्रह मण्डल निर्मित करना चाहिए जिसमें नौ कोष्ठक होते हैं| इन कोष्ठकों में नव ग्रहों को स्थापित किया जाता है दिशा के अनुरूप मध्य वाले कोष्ठक में सूर्य, आग्नेय कोण में चंद्र, दक्षिण में मंगल, ईशान में बुध, उत्तर में गुरू , पूर्व में शुक्र, पश्चिम में शानि, नैऋत्य में राहु और वायस्क में केतु ग्रह की स्थापना कि जानी चाहिए| स्थापना तथा आवाहन पश्चात नवग्रहों का षोडशोपचार पूजा करना चाहिए| ग्रहों के अनुरुप उन्हें वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए जैसे सूर्य की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए गेहूं, गुड़ आदि का उपयोग करना चाहिए इनका उपयोग करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं|

चंद्रमा मन और माता का कारक होता है अत: चंद्रमा की प्रसन्नता एवं शांति हेतु चीनी, दूध और दूध से बने पदार्थ और सफेद वस्तुओं को उपयोग में लाना तथा दान करना उत्तम होता है| इसके अतिरिक्त चमेली का इत्र या सुगंध चंद्रमा की शांति के लिए बहुत अनुकूल माने जाते हैं|

मंगल ग्रह की पूजा एवं शांति के लिए गुड़, मसूर की दाल, अनार, जौ और शहद का उपयोग एवं दान करना चाहिए| लाल चंदन से बने इत्र, तेल मंगल देव को प्रसन्न करने हेतु बहुत शुभ होते हैं|

बुध ग्रह की पूजा एवं शांति के लिए इलायची, हरी वस्तुएं चंपा, मटर, ज्वार, मूंग उपयोग में लाने चाहिए| चंपा का इत्र तथा तेल का प्रयोग बुध की शुभता के लिए उपयोगी होते हैं|

बृहस्पति ग्रह की पूजा एवं शांति के लिए चना, बेसन, मक्का, केला, हल्दी, पीले वस्त्र और फलों का उपयोग करना चाहिए पीले फूलों की सुगंध, केसर और केवड़े की सुगंध भी गुरू के शुभ फलों में वृद्धि करती है|

शुक्र ग्रह के लिए चीनी, कमलगट्टा, मिश्री, मूली और चांदी का उपयोग करना उत्तम होता है सफेद फूल, चंदन और कपूर की सुगंध भी अतिशुभ मानी गई है|

शनि ग्रह की पूजा एवं शांति हेतु काले तिल, उड़द, कालीमिर्च, मूंगफली का तेल, लौंग तथा लोहे का उपयोग करना चाहिए कस्तुरी या सौंफ की सुगंध शनि देव को भेंट करनी चाहिए|

राहु और केतु की पूजा के लिए उड़द, तिल और सरसों का प्रयोग लाभदायक होता है| कस्तुरी की सुगंध से शुभ फलों की प्राप्ति होती है|

नवग्रह स्त्रोत |

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।

तमोSरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम ।।

दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।

नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।

धरणी गर्भ संभूतं विद्युत्कान्ति समप्रभम ।

कुमारं शक्ति हस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम ।।

प्रियंगुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम ।

सौम्यं सौम्य गुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम ।।

देवानां च ऋषीणां च गुरुं का चनसन्निभम ।

बुद्धि भूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पितम ।।

हिम कुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम ।

सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम ।।

नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम ।

छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम ।।

अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम ।

सिंहिकागर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम ।।

पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम ।

रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम ।।

हमारे धर्म ग्रंथों में कई मंत्रों का वर्णन है जिनके जप से किसी भी ग्रह की शांति हो जाती है। एक मंत्र ऐसा भी है जिसके माध्यम से सभी ग्रहों की एक साथ पूजा की जा सकती है। यह मंत्र नौ ग्रहों की पूजा के लिए उपयुक्त है। यदि इस मंत्र का प्रतिदिन जप किया जाए तो सभी ग्रहों का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है और शुभ फल प्राप्त होते हैं।

मंत्र

ऊँ ब्रह्मामुरारि त्रिपुरान्तकारी भानु: राशि भूमि सुतो बुध च।

गुरू च शुक्र: शनि राहु केतव: सर्वेग्रहा: शान्ति करा: भवन्तु।।

जप विधि

सुबह जल्दी उठकर नहाकर साफ वस्त्र पहनकर नवग्रहों की पूजा करें। नवग्रह की मूर्ति के सामने आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का पांच माला जप करें। आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है। एक ही समय, आसन व माला हो तो यह मंत्र जल्दी ही शुभ फल देने लगता है।


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