श्रावण विशेष: हर युग में प्रासंगिक 'महादेव'
आदियोगी शिव ने मानव चेतना को इस प्रकार से विकसित करने के साधन और तरीके दिए कि वे हर युग में प्रासंगिक रहें। हमने उन्हें महादेव की उपाधि दी क्योंकि उनक ...और पढ़ें

सद्गुरु (योगगुरु, ईशा फाउंडेशन) । कुछ दिन पहले किसी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं आदियोगी शिव का प्रशंसक हूं। प्रशंसक होने का अर्थ है कि उसकी भावनाओं से जुड़ जाना। मेरे साथ ऐसा नहीं है। मैं शिव को महत्वपूर्ण इसलिए मानता हूं, क्योंकि उनका योगदान काल के परे है। इसलिए वे सदा प्रासंगिक हैं। किसी भी पीढ़ी में किसी इंसान की प्रशस्ति उस योगदान के लिए की जाती है, जो उसने उस पीढ़ी या आने वाली पीढ़ियों के लिए किया है। इस धरती पर कई ऐसे लोग आए हैं, जिन्होंने दूसरों के जीवन में योगदान किया है। जो उस समय की जरूरत के अनुसार था, वह उसे लेकर आया। गौतम बुद्ध के समय समाज कर्मकांडों में लिपटा हुआ था।
जब उन्होंने बिना किसी कर्मकांड के आध्यात्मिक प्रक्रिया शुरू की तो वह लोकप्रिय हो गए। अगर समाज में कर्मकांड नहीं होते, तो वह इतने महत्वपूर्ण नहीं होते। कृष्ण बहुत महत्वपूर्ण थे, लेकिन फिर भी, यदि पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध नहीं होता, तो वह सिर्फ अपने आसपास की जगहों पर प्रभावशाली होते। आदियोगी या शिव का महत्व यही है कि उनके साथ ऐसी कोई घटना नहीं हुई। कोई युद्ध नहीं हुआ, कोई टकराव नहीं हुआ। उन्होंने मानव चेतना को इस प्रकार से विकसित करने के साधन और तरीके दिए कि वे हर युग में प्रासंगिक रहें।
हमने उन्हें महादेव की उपाधि दी, क्योंकि उनके योगदान के पीछे की बुद्धि, दृष्टि और ज्ञान अद्भुत है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप कहां पैदा हुए, आप किस धर्म, जाति या वर्ग के हैं, आप पुरुष हैं या स्त्री, इन तरीकों का इस्तेमाल हमेशा किया जा सकता है। चाहे लोग उनको भूल जाएं, लेकिन उन्हें वही तरीके उपयोग करने होंगे, क्योंकि उन्होंने मानव तंत्र के भीतर कुछ भी अछूता नहीं छोड़ा। उन्होंने कोई उपदेश नहीं दिया। उन्होंने उस युग के लिए कोई समाधान नहीं दिया। जब लोग वैसी समस्याएं लेकर उनके पास आए, तो उन्होंने बस अपनी आंखें बंद कर लीं और पूरी तरह उदासीन रहे।
मनुष्य की प्रकृति को समझने, हर तरह के मनुष्य के लिए एक रास्ता खोजने के अर्थ में, यह वाकई एक शाश्वत या हमेशा बना रहने वाला योगदान है। यह उस युग का या उस युग के लिए योगदान नहीं है। सृष्टि का अर्थ है कि जो कुछ नहीं था, वह एक-दूसरे से मिलकर कुछ बन गया। उन्होंने इस सृष्टि को खोलकर एक शून्य की स्थिति में लाने का तरीका खोजा। इसीलिए हमने उन्हें शिव नाम दिया। इसका अर्थ है 'वह जो नहीं है'। जब 'वह जो नहीं है', कुछ या 'जो कुछ है' बन गया, तो हमने उस आयाम को ब्रह्म कहा। शिव को यह नाम इसलिए दिया गया, क्योंकि उन्होंने एक तरीका, एक विधि नहीं, बल्कि हर संभव तरीका बताया कि चरम मुक्ति को कैसे पाएं, जिसका अर्थ है, कुछ से कुछ नहीं तक जाना।
शिव कोई नाम नहीं हैं, वह एक वर्णन है। जैसे यह कहना कि कोई डाक्टर है, वकील है या इंजीनियर है, हम कहते हैं कि वह शिव हैं, जीवन को शून्य बनाने वाले। इसे जीवन के विनाशकर्ता के रूप में थोड़ा गलत समझ लिया गया, लेकिन वह भी सही है। बात मात्र यह है कि जब आप 'विनाशकर्ता' शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो लोग उसे बुरा समझ लेते हैं। अगर किसी ने 'मुक्तिदाता' कहा होता तो उसे अच्छा माना जाता। धीरे-धीरे 'शून्य करने वाला', 'विनाशकर्ता' बन गया और लोग यह सोचने लगे कि वह बुरे हैं। आप उन्हें कुछ भी कहिए, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता- बुद्धिमत्ता की प्रकृति यही है। अगर आपकी बुद्धिमत्ता एक ऊंचाई पर पहुंच जाती है, तो आपको किसी नैतिकता की जरूरत नहीं होगी। सिर्फ बुद्धि की कमी होने पर ही आपको लोगों को बताना पड़ता है कि क्या नहीं करना है।
अगर किसी की बुद्धि विकसित है, तो उसे बताने की आवश्यकता नहीं है कि क्या करना है और क्या नहीं। उन्होंने इस बारे में एक शब्द भी नहीं बोला कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। यौगिक प्रणाली के यम और नियम पतंजलि की देन है, आदियोगी की नहीं। पतंजलि काफी बाद में आए। पतंजलि हमारे लिए इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि योग इतनी सारी शाखाओं में बंट गया था कि वह हास्यास्पद हो गया था। उस समय योग की 1800 से ज्यादा शाखाएं थीं। वह अव्यावहारिक और हास्यास्पद हो गया था। इसलिए पतंजलि आए और उन्होंने उन सबको 200 सूत्रों में डालते हुए योग के सिर्फ आठ अंगों का अभ्यास करने के लिए कहा। अगर ऐसी स्थिति नहीं होती, तो पतंजलि का कोई महत्व नहीं होता। आदियोगी या शिव के साथ यह स्थिति नहीं है, क्योंकि चाहे कोई भी स्थिति हो, वह हमेशा महत्वपूर्ण होते हैं। इसीलिए वह महादेव हैं।

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