Shastriya Sangeet: शास्त्रीय गायकों की रुपहले परदे पर आवाज 'आज गावत मन मेरो झूम के'
Shastriya Sangeet हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और बालीवुड की जुगलबंदी ने हिंदी फिल्मों को अनेक नायाब गीतों से सजाया है जिनके सुमधुर स्वर आज भी कानों में गूंजते रहते हैं। जानिए हिंदी सिनेमा के वह गीत जिन्होंने शास्त्रीय संगीत को दिया नया मकाम।

यतीन्द्र मिश्र | Shastriya Sangeet in Bollywood: राग आधारित फिल्म संगीत का एक छोटा सा परिदृश्य वह भी है, जिसे शास्त्रीय गायक-गायिकाओं ने अपने घरानों में बुलंदी हासिल करने के साथ अकसर फिल्म संगीत में आजमाया है। कभी अपने मनपसंद विषय, तो कई बार संगीतकारों से मैत्री और उनके इसरार के कारण। एक समृद्ध परंपरा ऐसे गायन की बनी, जिसमें उस्तादों की गाई हुई बंदिशें फिल्म संगीत को समृद्ध करती रहीं हैं। इसमें उस्ताद बड़े गुलाम अली खां का नाम अग्रणी है, जिन्होंने के। आसिफ की 'मुगल-ए-आजम' के लिए नौशाद साहब के अनुरोध पर तानसेन की आवाज के लिए एक बेमिसाल गीत 'प्रेम जोगन बन के' गाया था। उदात्त प्रेम को दर्शाने वाले इस गीत की सर्जना राग सोहनी और मालकौंस की संधि पर हुई है। कहते हैं, इस फिल्म के लिए उन्होंने प्रोड्यूसर से पच्चीस हजार रुपये मेहनताना लिया था। बाद में गीत के फिल्मांकन से इतने प्रसन्न हुए कि बधाई का एक अन्य गाना अपनी ओर से 'शुभ दिन आयो राजदुलारा' गाया।
यह बात अनूठी है कि शुद्ध कामर्शियल और सदाबहार संगीत वाली फिल्मों के लिए जहां स्थाई रूप से लता, रफी, आशा, किशोर मौजूद रहते थे। उस्ताद अमीर खां से लेकर शोभा गुर्टू, बेगम परवीन सुल्ताना तक ने अपनी आवाज से कुछ शाहकार गीतों को नवाजा। उस्ताद अमीर खां के गाए दु्रत तीन ताल, राग अड़ाना में 'झनक-झनक पायल बाजे' (संगीत- वसंत देसाई) का शीर्षक गीत याद करना चाहिए। उन्होंने राग देसी में 'आज गावत मन मेरो झूम के' (बैजू बावरा) पंडित डी। वी। पलुस्कर के साथ गाया, जिसमें तानसेन और बैजू बावरा की प्रतिस्पर्धा दिखाई गयी है।
इसी तरह पंडित कृष्णराव चोंकर 'बाट चलत नयी चुनरी रंग डारी' (रानी रूपमती), लक्ष्मीशंकर 'काहे कान्हा करत बरजोरी' (बावर्ची), पंडित जसराज 'वंदना करो अर्चना करो' (लड़की सहयाद्री की), किशोरी अमोनकर का 'गीत गाया पत्थरों ने' का शीर्षक गीत मिसाल देने लायक बानगियां हैं। शोभा गुर्टू के ढेरों गीत 'सैंया रूठ गए मैं मनाती रही' (मैं तुलसी तेरे आंगन की), 'नथनिया ने हाय राम बड़ा दुख दीना' (सज्जो रानी) और 'बंधन बांधो' (पाकीजा) लोकप्रिय रहे हैं। शंकर-जयकिशन ने किराना घराने के उस्ताद पंडित भीमसेन जोशी से 'बसंत बहार' फिल्म के लिए मन्ना डे के साथ युगल गीत 'केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूले' गवाया था। एक दिलचस्प तथ्य यह कि फिल्म कथानक के अनुसार मुख्य पात्र की आवाज से पंडित जी की आवाज हारती है।
एक वृत्तचित्र में मस्तीभरे अंदाज में भीमसेन जी कहते हैं- 'मैं मन्ना डे से गायन में हार गया था'। बेगम परवीन सुलताना का 'देव पूजी पूजी हिंदू मोई' (आश्रय) असाधारण गीत है, हालांकि उनका सफल गीत 'हमें तुमसे प्यार कितना' (कुदरत) रहा है। उस्ताद गुलाम मुस्तफा खां का 'झूला किन्ने डाला रे अमरैंया', 'प्रथम धर ध्यान दिनेश' (उमराव जान), हीरादेवी मिश्र की ठुमरी 'आजा संवरिया तोहे गरवा लगा लूं' (गमन) और आरती अंकलिकर का 'घर नाहीं हमरे श्याम' तथा 'राह में बिछी हैं पलकें' (सरदारी बेगम) स्मरणयोग्य हैं। सत्यजित रे की फिल्मों के दो गीत 'कान्हा मैं तोसे हारी' (शतरंज के खिलाड़ी, पंडित बिरजू महाराज) और 'हे भर-भर आईं मोरी अंखियां पिया बिन' (जलसाघर, बेगम अख्तर) फिल्म संगीतेतिहास में संगेमील माने जाते हैं।
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