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    Shardiya Navratri 2024: कौन हैं शुंभ-निशुंभ का वध करने वाली देवी मां कौशिकी और कैसे हुई इनकी उत्पत्ति?

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 30 Sep 2024 04:22 PM (IST)

    देवी की सुंदरता का वर्णन सुनकर शुंभ ने देवी कौशिकी (Shardiya Navratri 2024) को विवाह का प्रस्ताव भेजा। देवी ने उनसे यह शर्त रखी कि यदि वे युद्ध में देवी को हरा पाएंगे तभी वह उससे विवाह करेंगी। इन असुरों ने सोचा कि कोई भी स्त्री उनके जितनी शक्तिशाली नहीं हो सकती और किसी अबला स्त्री के साथ युद्ध करना उनकी प्रतिष्ठा के विरुद्ध है।

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    Shardiya Navratri 2024: शारदीय नवरात्र का धार्मिक महत्व

    श्री श्री रवि शंकर (आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता, आध्यात्मिक गुरु)। देवी माहात्म्य में कथा है कि शुंभ और निशुंभ नाम के दो राक्षस थे। उन्होंने कठोर तपस्या से यह वरदान प्राप्त किया था कि देव-दानव, पुरुष-पशु, नाग, किन्नर, गंधर्व और यक्ष कोई भी उन्हें मार नहीं सकते। उन्होंने अहंकार में यह सोचा ही नहीं कि उनका वध एक स्त्री भी कर सकती है। वरदान पाकर दोनों राक्षस अत्यधिक शक्तिशाली हो गए और संसार में उत्पात मचाने लगे। एक बार शुंभ और निशुंभ के सेनापतियों चंड-मुंड ने देवी कौशिकी (देवी दुर्गा का एक स्वरूप) को देखा तो उनकी सुंदरता पर मुग्ध हो गए। उन्होंने शुंभ और निशुंभ को देवी के सौंदर्य के बारे में बताया।

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    देवी की सुंदरता का वर्णन सुनकर शुंभ ने देवी कौशिकी को विवाह का प्रस्ताव भेजा। देवी ने उनसे यह शर्त रखी कि यदि वे युद्ध में देवी को हरा पाएंगे, तभी वह उससे विवाह करेंगी। इन असुरों ने सोचा कि कोई भी स्त्री उनके जितनी शक्तिशाली नहीं हो सकती और किसी अबला स्त्री के साथ युद्ध करना उनकी प्रतिष्ठा के विरुद्ध है, इसलिए उन्होंने अपने तीन सेनापतियों-धूम्रलोचन, चंड और मुंड को देवी से युद्ध करने के लिए भेज दिया।

    इन तीनों असुरों ने देवी से युद्ध किया और मारे गए। देवी के पराक्रम से जब शुंभ और निशुंभ की सारी सेना नष्ट हो गई तो अंत में उन्हें युद्ध के लिए आना ही पड़ा और फिर देवी ने उनका भी वध कर डाला। इस प्रकार देवी ने सभी राक्षसों का अंत किया और संसार को उनके उत्पात से मुक्ति दिलाई। इस कहानी का एक गूढ़ अर्थ है। शुंभ ‘आत्म-संदेह’ और निशुंभ ‘दूसरों पर संदेह का’ प्रतीक है। जब कोई व्यक्ति अपने आप पर संदेह करता है, तो प्रायः वह दूसरों पर भी संदेह करने लगता है।

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    ऐसे व्यक्तियों से निपटना बहुत कठिन होता है। एक दिन एक दंपती हमसे मिलने आए। वे आश्रम से केवल 500 मीटर की दूरी पर रहते थे, लेकिन उन्हें आश्रम पहुंचने में कई घंटे लग गए। उन सज्जन को हर चीज में संदेह करने की समस्या थी। वे दरवाजा बंद करते थे, दस कदम चलते थे, फिर इस संदेह से कि शायद दरवाजा ठीक से बंद नहीं किया है, वापस उसे देखने जाते थे। उनका आत्म-संदेह उनके और उनकी पत्नी के जीवन में परेशानियां पैदा कर रहा था।

    आत्म-संदेह और दूसरों पर संदेह से अक्सर मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। ऐसे ही यदि आपके बास को आप पर विश्वास नहीं हो तो आपको कैसा लगेगा? या फिर आपके बच्चे को परीक्षा से पहले आत्मविश्वास की कमी हो, तो इससे उसके परिणाम पर प्रभाव पड़ सकता है। आत्म-संदेह के वातावरण में कोई भी रचनात्मक गतिविधि नहीं हो सकती और जब आप दूसरों पर संदेह करते हैं तो कोई भी महत्वपूर्ण उपलब्धि नहीं हो सकती। संदेह आपके अच्छे गुणों और प्रबंधन की क्षमता को दबा देता है, जिससे आपके और आपके आसपास के लोगों के लिए दुख पैदा होता है।

    शुंभ और निशुंभ का एक सेनापति था-धूम्रलोचन! ‘धूम्र’ का अर्थ है धूम (धुएं) के रंग का और ‘लोचन’ का अर्थ है आंखें। धूम्रलोचन उस व्यक्ति का प्रतीक है, जिसकी दृष्टि धुएं की तरह धुंधली होती है। जब आप संदेह की मनोस्थिति में होते हैं और किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं, जिसकी धारणा गलत होती है तो वे आपके संदेह को मान्यता देकर उसे और मजबूत कर सकते हैं। चंड के पास केवल सिर था, लेकिन बाकी का शरीर नहीं था। चंड एक ऐसे अभिमानी व्यक्ति का प्रतीक है, जो किसी की नहीं सुनता। मुंड के पास केवल धड़ है, लेकिन कोई सिर नहीं है।

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    वह उस व्यक्ति का प्रतीक है, जो प्रभावी ढंग से संवाद नहीं कर सकता और बिना सोचे-समझे हर कार्य करता है। बिना सिर के वास्तविक संवाद नहीं हो सकता, सभी संवाद सिर के माध्यम से होते हैं। जब ज्ञान और कर्म अलग हो जाते हैं तो दोनों आपके भीतर आसुरी वृत्तियों को जन्म देते हैं। ‘कौशिकी’ का अर्थ है, वह जो हमारे हर कोश में विद्यमान हैं। हमारे पांच कोश हैं: अन्नमय कोश (भोजन), प्राणमय कोश (जीवनी शक्ति), मनोमय कोश (मन), विज्ञानमय कोश (ज्ञान) और आनंदमय कोश। देवी कौशिकी आनंद, सुंदरता, सत्य और ज्ञान की अवतार हैं, जो संदेह, धुंधली दृष्टि, अभिमान और बिना सोचे-समझे कृत्य करने की प्रवृत्ति का विनाश करती हैं।

    जब आपकी कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होती है तो सभी तरह के संदेह मिट जाते हैं, आपकी प्राणशक्ति बढ़ जाती है, आप सहज हो जाते हैं और विवेकपूर्ण कार्य करने में सक्षम हो जाते हैं। इसीलिए जब आप ध्यान करते हैं, सुदर्शन क्रिया करते हैं तो आपके भीतर प्राणशक्ति बढ़ जाती है, जिससे आत्म-संदेह या दूसरों पर संदेह की दुष्प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है और आपका दृष्टिकोण धुंधला नहीं रह जाता। वह स्पष्ट हो जाता है। धूम्रलोचन हार जाता है और आपके भीतर अभिमान और बेतुके कार्य करने की वृत्ति समाप्त हो जाती है।