समाधि का अर्थ है, पूर्णता को प्राप्त करना
समाधि का अर्थ है, पूर्णता को प्राप्त करना, प्रभु से मिलना, सत्य से जुड़ना। सोचने मात्र से सत्य उपलब्ध नहीं हो सकता है। सोचना लक्ष्य प्राप्ति में सहयोगी हो सकता है, उपयोगी हो सकता है, लेकिन सिर्फ सोच-सोचकर व्यक्ति लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता। जितने भी दुनिया में सिद्ध साधक
समाधि का अर्थ है, पूर्णता को प्राप्त करना, प्रभु से मिलना, सत्य से जुड़ना। सोचने मात्र से सत्य उपलब्ध नहीं हो सकता है। सोचना लक्ष्य प्राप्ति में सहयोगी हो सकता है, उपयोगी हो सकता है, लेकिन सिर्फ सोच-सोचकर व्यक्ति लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता। जितने भी दुनिया में सिद्ध साधक या विचारवान मनुष्य हुए हैं, सबने सोचने के साथ-साथ तत्वज्ञान को पाने के लिए कठोर साधना की, तप किया। जानने और सोचने में अंतर है। समुद्र का पानी खारा है, यह जानने के लिए उसे पीना पड़ेगा। सोचने मात्र से हाथ में मात्र विचारों की राख मिलती है।
प्रेम भी मात्र सोचने से नहीं मिलता है, प्रेम में डूबना पड़ता है। प्रेम के बारे में जो मात्र सोचते हैं, उनका प्रेम भी असफल होता है। मीरा ने कृष्ण प्रेम में गोता लगाया। मात्र सोचने वाले व्यक्ति पर कथा-प्रवचन का प्रभाव भी क्षणिक ही रहता है। आपको क्या लगता है, मात्र प्रवचन सुनकर आत्म सम्मोहित हो जाने से मोक्ष की प्राप्ति संभव है? कुछ ज्ञान एकत्र करने मात्र से समूचे अस्तित्व को जानना बड़ा मुश्किल कार्य है। जो प्रकृति के, अस्तित्व के जितना करीब है- वह मौन है। वह शब्दों और विचारों के जाल से बाहर निकलकर सत्य की तलाश में सदैव सजग व तत्पर रहता है। जो साधक शांत और मौन रहते हैं, उनका संबंध शब्दों से कम और नि:शब्द शून्य से ज्यादा होता है।
व्यक्ति जब तक शब्दों के अंधकार में फंसा रहता है, तब तक उसे कुछ दिखाई नहीं देता। इसलिए यह जरूर ध्यान रखें कि हमारा मन तालाब के ङिालमिलाते पानी की तरह है। एक चांद भी ङिालमिलाते और हिलते-डुलते हुए पानी में अनेक होकर दिखता है। कई बार तो धुंधला होकर दिखाई भी नहीं पड़ता है। अगर पानी एकाएक शांत हो जाए, तो चांद एक ही दिखाई देता है। शांत तालाब का पानी दर्पण बन जाता है। ठीक ऐसे ही मन कई बार हिलोरे तब लेता है, जब उस पर सोच और विचार की तंरगें यह तय करती हैं कि परमात्मा कैसा है? ऐसा करने से परमात्मा खंडों में बंट जाता है, परंतु पूर्ण रूप से मन और चित्त को शांत करने से व्यक्ति अतल गहराइयों में डुबकी लगाता है। वह शांत होता है, तो उसकी स्थिरता उसे समाधि की ओर ले जाती है। प्रभु का मिलन कराती है जैसा आदि शंकराचार्य, बुद्ध, नानक, महावीर आदि महापुरुषों ने किया। समाधि तक पहुंचने के लिए मन और मस्तिष्क को तैयार करना पड़ता है। जीवन की अनेकानेक चुनौतियों को समझना पड़ता है। तब जाकर कहीं उस परम तत्व की चरण-शरण मिलती है।
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