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अहिंसा का संबंध मनुष्य के हृदय के साथ है

प्रत्येक आत्मा में परमात्मा को देखने वाले महापुरुष ही धर्मस्वरूप को समझते हैं और वे ही अहिंसा की आराधना कर सकते हैं। अहिंसा एक सनातन तत्व है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 01 Apr 2017 11:13 AM (IST)Updated: Sat, 01 Apr 2017 11:24 AM (IST)
अहिंसा का संबंध मनुष्य के हृदय के साथ है
अहिंसा का संबंध मनुष्य के हृदय के साथ है

 हमारा देश धर्मप्रधान होने के कारण ही एक महान देश कहलाता है। यह वही भारतभूमि है, जहां से धर्म और

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दार्शनिक तत्व समूह ने बरसाती नदी के समान प्रवाहित होकर सारे संसार को सराबोर कर दिया था। संसार में अनेक प्रकार के प्रतिद्वंद्वी समूह रहेंगे ही, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि एक-दूसरे से घृणा की जाए या विरोध किया जाए।

प्रत्येक आत्मा में परमात्मा को देखने वाले महापुरुष ही धर्मस्वरूप को समझते हैं और वे ही अहिंसा की आराधना कर सकते हैं। अहिंसा एक सनातन तत्व है। अहिंसा, संयम, तप रूप मंगलमय धर्मदीप का प्रकाश यदि विश्व को आलोकित कर दे, तो निश्चय ही धरा से अज्ञान का तमस समाप्त हो सकता है। अहिंसा एक शाश्वत तत्व है। शून्यांश पर हिंसा नहीं, अहिंसा ही है। सह अस्तित्व के लिए अहिंसा अनिवार्य है। दूसरों का अस्तित्व मिटाकर अपना अस्तित्व बनाए रखने की कोशिश अंतत: घातक होती है। अहिंसा भारतीय संस्कृति की मुख्य पहचान है। अहिंसा सभी को अभय प्रदान करती है। वह सृजनात्मक है और समृद्धता से युक्त है। आज का सभ्य संसार वातावरण में घुटन और अस्वस्थता का अनुभव कर रहा है। एक ओर कहीं विध्वंसक भौतिकता व्याप्त है। दूसरी

ओर स्वार्थपरक भावनाओं से वह विषाक्त हो रहा है। आज शांति के लिए एक आध्यात्मिक जाग्रति आवश्यक है, जो राष्ट्र, समाज और परिवार से हिंसा का अंधकार दूर कर सके। महावीर स्वामी का अमृत संदेश समस्त प्राणी जगत के कुशल-क्षेम का संवाहक है, अपार शांति का अक्षय स्रोत है और मानव जाति को सुदृढ़ व सुगठित रखने का दिव्य संदेश है। जैन धर्म में अहिंसा का बड़ा ही व्यापक अर्थ लगाया जाता है, किसी की हत्या न करना या खून न बहाना ही अहिंसा का उदाहरण नहीं है।

मन-वचन-कर्म से किसी को कोई कष्ट न देना अहिंसा है। अहिंसा के अंतर्गत केवल मानव ही नहीं पशु-पक्षी, जीव-जन्तु को भी कष्ट नहीं पहुंचाना है। अर्थात अपनी आत्मा के समान ही सबको मानो। अहिंसा का संबंध

मनुष्य के हृदय के साथ है, मस्तिष्क के साथ नहीं। जिसके जीवन में अहिंसा का स्वर झंकृत होता है, वह केवल शत्रु को ही प्यार नहीं करता बल्कि उसका कोई शत्रु होता ही नहीं है। जिसको आत्मा के अस्तित्व में विश्वास है, वही हिंसा का त्यागी हो सकता है। कुछ लोग अहिंसा को कायरता और निर्बलता मानते हैं। किन्तु गांधी ने अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही देश को स्वतन्त्र करा लिया था।


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