विपरीत स्थितियों में सामंजस्य: शिव जी का जीवन हमें यही संदेश देता है
कैसी भी परिस्थिति हो, हमें उन सबमें सामंजस्य बनाकर रखना चाहिए, तभी हम सफलता पा सकते हैं। शिव जी का जीवन हमें यही संदेश देता है...
कैसी भी परिस्थिति हो, हमें उन सबमें सामंजस्य बनाकर रखना चाहिए, तभी हम सफलता पा सकते हैं। शिव जी का जीवन हमें यही संदेश देता है...
सत्कर्र्मों द्वारा व्यक्तित्व को निखारा जा सकता है। हमारे सामने भगवान शिव का उदाहरण है। या तो वे समाधि में आत्मचिंतन की मुद्रा में दिखते हैं या फिर समाधि के बाहर जन-कल्याणकारी कार्यों में। हमारे जीवन का भाव भी यही होना चाहिए। यदि हम आत्मनिरीक्षण को अपनी दिनचर्या का अंग बनाएं और लोगों के कल्याण के लिए आगे आएं।
शिव जी का मुख्य संदेश है- परिस्थितियों की स्वीकृति एवं उनका सामंजस्य। भगवान शिव का वाहन नंदी वृषभ धर्म का प्रतीक है, वहीं भगवती पार्वती का वाहन शेर शक्ति का प्रतीक है। दोनों एक दूसरे के विरोधी, किंतु गजब का सामंजस्य। शिव के कंठ में सर्पमाला, तो कार्तिकेय का वाहन मयूर। मयूर सर्प का दुश्मन है, तो गणेश के वाहन चूहे का दुश्मन सर्प है। सब विपरीत स्वभाव के हैं, लेकिन शिव सामंजस्य बनाए रखते हैं। अर्थात जो व्यक्ति विरोधी स्थितियों में सामंजस्य बना लेता है, उसका ही जीवन सफल है। यही गुण परिवार को भी सफल बनाता है और देश को भी।
समुद्र मंथन में निकला विष शिव जी ने कंठ में रख लिया, उसे गले के नीचे नहींउतारा। इसके माध्यम से उन्होंने हमें संदेश दिया कि सांसारिक विष यानी दुख-कठिनाइयों को गले से नीचे नहीं उतारना चाहिए। यानी कठिनाइयों का भान तो हो, लेकिन उन्हें बहुत महत्व नहीं देना चाहिए। शिव जी के मस्तक पर चंद्रमा इस बात का प्रतीक है कि अपने मस्तिष्क को शांत रखें। यही कारण है कि स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हमें गर्व होना चाहिए कि उन्हें शिव जैसा देवता प्राप्त है।
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