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    Ramlala Pran Pratishtha: राम नाम के जप से स्वार्थ और परमार्थ दोनों सिद्ध हो जाते हैं

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 21 Jan 2024 01:06 PM (IST)

    Ramlala Pran Pratishtha राम नाम वह भक्ति मणि है जो हमारे और सबके अंदर और बाहर प्रकाश कर सकती है। राम नाम और राम को छोड़कर यदि कोई अन्यत्र भटकता फिरता हो तो यही समझना चाहिए कि वह पृथ्वी को छोड़कर कहीं और आधार खोज रहा है। जिस राम नाम के और जिन राम के प्रभाव से पत्थर जुड़ गए तथा तर गए।

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    Ram Mandir: राम नाम के जप से स्वार्थ और परमार्थ दोनों सिद्ध हो जाते हैं

    स्वामी मैथिलीशरण (संस्थापक अध्यक्ष, श्रीरामकिंकर विचार मिशन): राम नाम अगुण और सगुण दोनों ही है। राम नाम अग्नि, सूर्य तथा चंद्रमा है। इसी राम नाम के प्रभाव से भगवान शंकर काशी में देह त्याग करने वालों को महामंत्र का नित्य उपदेश करके अनित्य शरीर से मुक्त कर देते हैं। राम नाम के प्रभाव से ही विष का कलश पीकर भी शिव सदाशिव हैं। भगवान की भक्ति रूपी वर्षा यदि जीवन में हो जाए तो ये राम नाम के दो अक्षर श्रावण और भाद्रपद होकर गोस्वामी तुलसीदास जी की तरह किसी को भी भांग के बीज से तुलसी बना सकते हैं, जिस तुलसी को भगवान नित्य प्रतिपल अपने शीश पर धारण करते हैं।

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    जैसे किसी के नाम को न जानने पर केवल रूप मात्र देखने से उसका पूरा परिचय नहीं हो पाता है, उसी तरह राम नाम में निष्ठा के बिना राम की सगुण रूप की सेवा और भक्ति संभव नहीं है। सगुण और अगुण के बीच में ये राम नाम दोनों को जोड़ने वाला दुभाषिया का कार्य करता है। राम नाम के प्रभाव के कारण ही गणेश जी संसार में प्रथम पूजा के अधिकारी हो गये, एक बार राम नाम लेने से भगवती पार्वती को विष्णु सहस्त्रनाम का फल मिल गया और भगवान शंकर ने नाम निष्ठा पर प्रसन्न होकर भगवती पार्वती को अपने अंक में बिठाकर अर्धनारीश्वर रूप धारण कर लिया।

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    गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि राम नाम के जप से स्वार्थ और परमार्थ दोनों सिद्ध हो जाते हैं। इस कलिकाल में यदि भक्ति और विवेक न भी हो, केवल व्यक्ति राम राम जपे तो भी उसको सब साधनों का फल मिल जाता है। श्रीराम के चरणों में सहज प्रेम हो जाएगा और साधक परम पद को प्राप्त कर सकता है। राम नाम वह भक्ति मणि है जो हमारे और सबके अंदर और बाहर प्रकाश कर सकती है।

    राम नाम और राम को छोड़कर यदि कोई अन्यत्र भटकता फिरता हो तो यही समझना चाहिए कि वह पृथ्वी को छोड़कर कहीं और आधार खोज रहा है। जिस राम नाम के और जिन राम के प्रभाव से पत्थर जुड़ गए तथा तर गए, मनुष्य यदि उनका आश्रय छोड़कर दर दर भटके तो उसको मतिमंद ही कहेंगे। हनुमान जी विभीषण से कहते हैं :

    जानतहूं अस स्वामि बिसारी।

    फिरहि ते काहे न होहिं दुखारी।।

    जिनके बल और करुणा के प्रताप से मैंने समुद्र को पार किया, लंका को जलाया, निशाचरों को मारा, लंका के वन को उजाड़ दिया, यह सब उसी राम नाम का प्रताप था, जिस राम नाम की मुद्रिका को लेकर मैं लंका गया था :

    श्री रघुबीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान।

    ते मतिमंद जे राम तजि भजहिं जाहिं तजि आन।।

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    जाम्बवान जी ने राम नाम की महिमा को स्वयं सगुण साकार राम के समक्ष प्रस्तुत किया और कहा महाराज, आपको समुद्र पर सेतु बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं करना है, क्यों कि :

    सुनहु भानुकुल केतु जामवंत कह जोरि करि।

    नाथ नाम तब सेतु नर चढ़ि भवसागर तरहिं ।।

    श्रीराम का नाम ही वह सेतु है जिस पर चढ़कर संसार के सब प्राणी इन अनंत भवसागर को बिना प्रयास ही पार कर सकते हैं। यदि हमने इतने सहज और सरल साधन राम नाम को छोड़ दिया तो हम इस घोर भव निधि में डूब जाएंगे, फिर मोक्ष और भक्ति का कोई और उपाय नहीं हैं।

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