मानस-संवाद: सुनहु राम अवतार चरित परम सुंदर अनघ
Ramcharitmanas Samwad संसार रूपी बेल-वृक्षों मे कटु और मधुर फल लगते हैं पर यदि भक्त भगवान गुणों को और उनकी लीलाओं को ध्यानस्थ करके लोकहित में लग जाए तो इस संसार में सब कुछ मधुर ही मधुर है।

नई दिल्ली, स्वामी मैथिलीशरण (संस्थापक अध्यक्ष, श्रीरामकिंकर विचार मिशन); काकभुशुंडि जी कहते हैं कि श्रीरामचरितमानस भगवान शंकर और भगवती पार्वती के बीच कैलास पर्वत पर हुआ संवाद है। हिमालय के सर्वोच्च शिखर कैलास पर बैठने की सार्थकता तभी है, जब हमारी जिज्ञासा और समाधान का विषय राम हों। यही श्रद्धा और विश्वास का स्वरूप है। अमृतमंथन भी यही है। शेष सब विवाद और विष मंथन है।
कौन से वे प्रश्न हैं, जिनको आधार बनाकर तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस की रचना की। ये हैं वे दस प्रश्न, जो पार्वती ने शिव से किए, पर शिव ने अंतिम 10वें प्रश्न का उत्तर न देकर पूर्व के नौ प्रश्नों का ही उत्तर दिया। अंत में पार्वती जी ने उस निरुत्तरित प्रश्न को न उठाकर दूसरे रूप में 10वां प्रश्न पुन: निवेदित कर दिया, जो पक्षीराज गरुण और काकभुशुंडि जी के बीच का संवाद है। वस्तुत: पार्वती जी समझ गई थीं कि हमारे प्राणेश्वर शिव ने श्रीराम के परलोक गमन की कथा क्यों नही सुनाई! भगवान शंकर यह मानते हैं कि इस पृथ्वी पर जब तक भगवान की कथा रहेगी, उनके भक्त रहेंगे, तब तक भगवान का परलोक गमन नहीं होगा। भगवान का न कोई पर है न ही परलोक। अपने भक्तों को छोड़कर कौन-सा परलोक प्रभु को प्रसन्न कर सकता है! इसीलिए भगवान शंकर ने परलोक गमन के वृत्तांत को नहीं सुनाया।
उमा-शंभु संवाद ही श्रीरामचरितमानस का भक्तमाल है। पार्वती जी ने दस प्रश्न किए : 1. निर्गुण निराकार सगुण कैसे होता है? 2. राम का अवतार कैसे होता है? 3. फिर वे बाल चरित कैसे करते हैं? 4.जानकी जी से विवाह कैसे करते हैं? 5. श्रीराम ने किस कारण से राज्य का परित्याग किया? 6. वन में रहकर कौन-कौन से चरित्र किए? 7. फिर रावण को कैसे मारा? 8. कौन-कौन से आश्चर्य में डालने वाले कार्य किए? 9. राज्य चलाते समय अयोध्या में कौन कौन-सी लीला की? 10. पृथ्वी पर रहने के पश्चात भगवान विमान में बैठकर अपने स्वलोक गमन कैसे करते है?
ये हैं उन नौ प्रश्नों का सार संक्षेप, जो शंकर जी ने भगवती पार्वती को सुनाया और जिस पृष्ठभूमि पर श्रीरामचरितमानस लिखा गया :
1. धरती में जो बीज निर्गुण रूप होता है, वही समय और अनुकूल जलवायु पाकर बाहर सगुण होकर धान्य, फल, फूल और छाया देने वाला होता है, तो सगुण और निर्गुण में कोई दो अलग नहीं है, न ही उनमें कोई भेद है। बीज का उद्देश्य भी फल बनकर समाज की सेवा है। निर्गुण ईश्वर भी सगुण होकर भक्तों की भावना की पूर्ति करता है।
2. भगवान का अबोध बालस्वरूप भक्तों को सुख देता है। माता कौशल्या ने जन्मते ही अपने पुत्र राम से कह दिया कि आप अपना यह चतुर्भुज विराट रूप समेट कर बच्चों वाली लीला कीजिए। भगवान रोने लगे। भगवान अवतार लेने के बाद यह भूल जाते हैं कि वे ज्ञानियों के लिए बोधगम्य हैं। वेदांत वेद्यं विभुम् हैं। लीलापुरुषोत्तम श्रीराम कहते हैं कि आप बताओ मुझे क्या करना है? यही लीला है कि हम कुछ नहीं जानते, तुम बताओ!
3. बालचरित करते-करते प्रभु ने अपने रूप माधुर्य से शंकर जी को भी विमोहित कर लिया। अपने प्रिय भक्त काकभुशुंडि को उदर में ले जाकर काल की गति को अवरुद्ध कर एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्मांडों के दर्शन कराकर पूर्व में लोमश जी के प्रति बने मनोभाव को समाप्त कर काकभुशुंडि को भक्ति घाट का आचार्य बना दिया।
4. राम का सीता से न तो कभी वियोग होता है, न ही कभी मिलन-संयोग होता है। शंकर जी कहते हैं कि यह सब तो केवल मात्र भक्तों की इच्छा के लिए एक ही तत्व दो रूपों में प्रकट होता है। भक्तों को इंद्रियों का सुख देने और उनको भगवद्विषयक बनाने के लिए विवाह स्वीकार कर लेता है, ताकि वे आंखों से उस सौंदर्य को देख सकें। कानों के उनके मधुर बोल सुन सकें। नाक से प्रसाद की सुगंध ले सकें। हाथ से सेवा कर सकें और पैरों से उनके धाम की ओर यात्रा कर सकें।
5. कौन सा राज्य भगवान से अलग हो सकता है? श्रीभरत के प्रेम को प्रकट करने के लिए, लक्ष्मण की सेवा निष्ठा, शत्रुघ्नजी का मूक समर्पण और अयोध्या में न दिखाई देने बाली बुराई और लंका मे दिखाई देने बाली बुराई के समूलोच्छेदन के लिए श्रीराम ने सरस्वती को कहा कि तुम जाकर कैकेयी और मंथरा की बुद्धि को फेर दो, ताकि मैं 14 वर्ष वन जाकर सृष्टि उद्धार के कार्य कर लूं।
6. भगवान ने वन में रहकर शबरी, कोल भीलों, ऋषि-मुनियों की साधना को अपनी कृपा के द्वारा संपूर्ण किया। यह संकल्प किया कि मैं पृथ्वी को निशाचरों से शून्य कर दूंगा। बुराई के विनाश का संकल्प और उसका क्रियान्वयन विशुद्ध अहिंसा है और सामर्थ्य होते हुए भी केवल अपने व्रत और संकल्प साधना के नाम पर हिंसा होते देखना और हिंसा होने देना शुद्ध हिंसा है, भले ही हम स्वयं हिंसा न कर रहे हों। भगवान ने वन में रहकर पृथ्वी को शोकमुक्त किया।
7. रावण का जितने दिन का जीवन बचा था, तब तक भगवान ने मार्ग में करोड़ों भक्तों को धन्य किया। रावण को मारना तो उनके संकल्प से भी संभव था, पर संकल्प क्रिया में लाकर अनुकरणीय बनाना ही तो ईश्वर की लीला होती है।
8. भगवान राम का कोई भी कार्य ऐसा नहीं है, जिसमें आश्चर्य नहीं है। आश्चर्य तो मनुष्य के सामर्थ्य की सीमा है। जो वह मानता है कि यह संभव नहीं है, उसी को संभव देखकर उसे आश्चर्य होता है। कौआ उड़ता है, गिद्ध उड़ता है तो कोई आश्चर्य नहीं करता, पर आदमी उड़ने लगे तो आश्चर्य होता है। भगवान के प्रताप से यदि समुद्र में पत्थर तैरने लगें और सब आपस में जुड़ जाएं तो यह मनुष्य के लिए आश्चर्य है, पर ईश्वर के लिए सामान्य बात है। ईश्वर चमत्कार या जादूगरी नहीं करता है, वह तो सत्य संकल्प है। जो संकल्प किया, वह पूरा हुआ। साधारण आदमी उसे चमत्कार कहता है।
9. राज्य चलाते हुए भगवान ने अयोध्या में किसी भी परंपरा को नहीं बदला, पर जो किया वह भूतो न भविष्यति था। राज्याभिषेक में सारे बंदरों को पहले स्नान कराने का आदेश दिया, फिर भरत की जटाओं को सुलझाया, तीनों भाइयों को नहलाया, तब जाकर गुरुदेव की आज्ञा पाकर स्वयं स्नान किया। काकभुशुंडि जी कहते हैं कि: वह सोभा समाज सुख कहत न बनइ खगेस। बरनहिं सारद सेष श्रुति सो रस जान महेस।। भगवान राम ने कैकेयी को मोह मुक्त किया। बाद में पुत्र मोह की सांसारिक मिथ्या धारणा से उत्पन्न दुख और 14 वर्ष तक मिली उपेक्षा और उपहास से मुक्त कर कैकेयी को शीर्षस्थ कर दिया। राम में रामत्व है, यही राम का अखंडमंडलाकारं स्वरूप है। शंकर जी कहते हैं कि श्रीरामचरितमानस वह संवाद है, जो अनंत है। यह अमृत है, इसको भर-भर पी लो -
सुनु सुभ कथा भवानि रामचरितमानस बिमल।
कहा भुसुंडि बखानि सुना बिहग नायक गरुड़।।
सो संबाद उदार जेहि भा आगे कहब।
सुनहु राम अवतार चरित परम सुंदर अनघ।।
हरि गुन नाम अपार कथा रूप अगणित अमित।
मैं निज मति अनुसार कहउं उमा सादर सुनहु ।।
भगवान की कथा का यह संवाद उदार है। यह हमारे पापों के पुराने खाते खोलकर नहीं देखता, अपितु जीवन में नया प्रकाश आ जाता है। इस संसार रूपी बेल-वृक्षों मे कटु और मधुर फल लगते हैं, पर यदि भक्त भगवान गुणों को और उनकी लीलाओं को ध्यानस्थ करके लोकहित में लग जाए तो तो इस संसार में सब कुछ मधुर ही मधुर है।
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