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Hindu Nav Varsh 2024: जानें, विक्रम संवत 2081 के राजा और मंत्री कौन हैं और कैसा रहेगा वर्षफल ?

Hindu Nav Varsh 2024 हिंदुओं का वर्षारंभ नास्ति मातृ समोगुरुः पर आधारित है जिसका अर्थ है माता के समान अन्य कोई गुरु नहीं है। गुरुरूपिणी माता की वंदना-उपासना से नए वर्ष का आरंभ होता है और वह भी न केवल एक दिन अपितु नव दिन पर्यंत। इस दिन श्रद्धाभक्ति पूर्वक माता का स्मरण भजन पूजन व्रत यज्ञ आदि कृत्यों से मातृ देवो भव की उक्ति को चरितार्थ करते हैं।

By Jagran News Edited By: Pravin KumarPublished: Mon, 08 Apr 2024 05:23 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2024 05:23 PM (IST)
Hindu Nav Varsh 2024: जानें, विक्रम संवत 2081 के राजा और मंत्री कौन हैं और कैसा रहेगा वर्षफल ?
Hindu Nav Varsh 2024: जानें, विक्रम संवत 2081 के राजा और मंत्री कौन हैं और कैसा रहेगा वर्षफल ?

नई दिल्ली, प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री (अध्यक्ष, ज्योतिष विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय)। Hindu Nav Varsh 2024: ज्योतिषशास्त्र की कालगणना में संवत्सर ही वर्ष है। इसे वेदों ने प्रजापति कहा है। गणना की सुविधा के लिए अखंड काल को दिन, तिथि, मास, ऋतु, अयन तथा वर्ष के रूप में बांटा गया है। इन सब में वर्ष बड़ी इकाई है। व्यवहार में सौर एवं चांद्र दो वर्षों का प्रयोग होता है। 12 महीनों का एक वर्ष होता है। चांद्र वर्ष में 354 दिन तथा सौर वर्ष में 365 दिन होते हैं। उत्तरभारत में चांद्र वर्ष अमांत ग्रहण किया जाता है, कहीं-कहीं पूर्णिमांत चांद्र वर्ष स्वीकार किए जाते हैं। शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक होने वाला मास ही अमांत मास कहा जाता है। अतः अमांत चांद्र वर्ष चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा से प्रारंभ होकर चैत्र कृष्णपक्ष की अमावस्या तक रहता है।

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प्रत्येक वर्ष का आरंभ चैत्रमास शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से ही होता है और इस दिन जिस ग्रह का वार होता है, वही ग्रह संपूर्ण वर्ष का राजा होता है। जैसे इस वर्ष का आरंभ मंगलवार का दिन होने से संपूर्ण वर्ष का राजा मंगल रहेगा। इसी तरह जब सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है, तब उस वार के ग्रह को वर्ष का मंत्री कहा जाता है। इस वर्ष शनिवार के दिन मेष संक्रांति का आरंभ होने से वर्ष का मंत्री शनि रहेगा। इसी प्रकार राजा, मंत्री के सहित सस्येश अर्थात फसलों के स्वामी दुर्गेश, धनेश, रसेश, धान्येश, नीरसेश, फलेश तथा मेधेश कुल दस सौर मंत्रिमंडल के सदस्य होते हैं।

सौर परिवार का अपना मंत्रिमंडल होता है। संहिता ज्योतिष द्वारा प्राचीन काल से ही इन ग्रहों की स्थितिवश संपूर्ण वर्ष के शुभाशुभ फलों को जानने का प्रयास होता रहा है। इसी तरह संपूर्ण विश्व में होने वाले प्राकृतिक उपद्रव, हानि, लाभ सभी की वैयक्तिक उपलब्धियां तथा अन्यान्य शुभाशुभ फलों को जानने के लिए जगत लग्न कुंडली बनाई जाती है। संहिताकारों ने प्रत्येक संवत्सर के नाम करण किए हैं, जो संख्या में साठ हैं - प्रभव, विभव आदि। इस वर्ष के संवत्सर का नाम काल अथवा कालयुक्त संवत्सर होगा। प्रत्येक शुभ कार्यों में यज्ञ-अनुष्ठान तथा समस्त धार्मिक कृत्यों में संकल्प के समय संवत्सर का स्मरण अनिवार्य होता है। युगादि गणनानुसार इस संवत्सर के पूर्व तक कलयुग के कुल 5125 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं।

नए वर्ष के प्रथम दिवस प्रातःकाल उठकर घर की साफ-सफाई करके स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान का स्मरण करना चाहिए। विगत वर्ष में जो दोष हो गए हों, उनके लिए परमात्मा से क्षमायाचना करते हुए दृढ संकल्प करना चाहिए कि भविष्य में इस प्रकार की पुनरावृत्ति नहीं होगी। पुनः अपने अपने घरों में नया ध्वज लगाना चाहिए, वंदनवार लगाकर नए वर्ष का स्वागत करना चाहिए, अपने से बड़ों का सम्मान-आदर करते हुए उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए। भारतीय शास्त्रों में इस दिन से प्याऊ (प्रपा दान) चलाना, धर्मघट आदि के दान करने का भी विधान किया गया है।

हिंदुओं का वर्षारंभ "नास्ति मातृ समोगुरुः" पर आधारित है, जिसका अर्थ है, माता के समान अन्य कोई गुरु नहीं है। गुरुरूपिणी माता की वंदना-उपासना से नए वर्ष का आरंभ होता है और वह भी न केवल एक दिन, अपितु नव दिन पर्यंत। इस दिन श्रद्धाभक्ति पूर्वक माता का स्मरण, भजन, पूजन, व्रत, यज्ञ, अनुष्ठान, उपवास आदि कृत्यों से मातृ देवो भव की उक्ति को चरितार्थ करते हैं।

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भारतवर्ष तो माता के प्रति इतना कृतज्ञ है कि वह अपने देश को भारत माता, भूमि को पृथ्वी माता, अपने जन्म स्थल को मातृभूमि, धन को लक्ष्मी माता, विद्या को सरस्वती माता तथा शक्ति को महाकाली माता कह कर पूजता है। दुर्गा माता तो विश्वेश्वरी, विश्वात्मिका, जगद्धात्री तथा जगत प्रसवित्री हैं। दुर्गा ही सभी प्राणियों में चेतना रूप से, बुद्धि रूप से, निद्रा, क्षुधा, तृष्णा, शांति, लज्जा, श्रद्धा, कांति, स्मृति, दया, तुष्टि तथा भ्रांति रूप से व्याप्त हैं। यह सभी उस महाशक्ति की विविध रूपों में अभिव्यक्तियां हैं। दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि जब संपूर्ण देवों का तेज एकत्र हुआ, तब उसने नारी का रूप धारण किया और अपने प्रकाश से संपूर्ण ब्रह्मांड को व्याप्त कर लिया। वही दुर्गा देवी हैं।

अतुलं तत्र तत्तेजः सर्वदेव शरीरजम् ।

एकस्थं तदभून्नारी व्याप्तलोकत्रयं त्विषा ॥


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