अनमोल वचन
तिनका कबहुं न निंदिये, जो पांवन तर होय। कबहूं उडि़ आंखिन परे, पीर घनेरी होय।। - संत कबीर अर्थ : कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो, जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आंख में आ गिरे तो कितनी
तिनका कबहुं न निंदिये, जो पांवन तर होय।
कबहूं उडि़ आंखिन परे, पीर घनेरी होय।।
- संत कबीर
अर्थ : कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो, जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आंख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है।
भावार्थ : किसी की शक्ति को छोटा नहींसमझना चाहिए। हो सकता है कोई देखने में छोटा हो, शक्तिहीन लगता हो, लेकिन इसका अर्थ यह नहींकि हम उसे छोटा और शक्तिहीन कहकर उसका उपहास करें या उसकी निंदा करें। क्योंकि हो सकता है कि उसमें अपार शक्ति छिपी हो। जैसे जो तिनका हमारे पैरों तले कुचला हुआ होता है, वही जब हवा से उड़कर हमारी आंख में पड़ जाता है, तो हमें बहुत पीड़ा देता है। एक चींटी हाथी से कितनी छोटी होती है, लेकिन जब वह उसकी सूंड में घुस जाती है, तो वह इस विशालकाय जीव को भी परेशान कर देती है। इसलिए किसी को भी कमतर नहींआंकना चाहिए। किसी को अशक्त समझने की भूल नहींकरनी चाहिए। आधुनिक संदर्भ में कहें तो जो सबसे छोटा है यानी परमाणु, उसमें ही सबसे ज्यादा शक्ति छिपी होती है।
मन
मन यह स्वीेकार नहीं कर पाता है कि हम गलत हैं। पर आत्मा सच की गवाही दे देती है। आत्मा की आवाज को दबाने का मन हर संभव प्रयत्न करता है। जिस दिन मन ने यह आवाज सुनने की शुरुआत कर दी, तो समझ लें परिवर्तन की नींव पड़ गई।
वचन
कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔधÓ कहते हैं कि किसी कार्य को संपन्न कराने में जहां चक्रवर्ती सम्राट की तलवार कुंठित हो जाती है, वहां महापुरुष का एक मधुर वचन काम कर जाता है।
कर्म
हमारा कर्म तभी सफल होता है, जब विफलता मिलने पर हताश होने की बजाय हम दोगुने उत्साह से अपने काम में लग जाते हैं। यह उत्साह ही है, जो हमें अपना कर्म करने के लिए प्रेरित करता है और हमें सफलता दिलाता है।
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