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    सकारात्मक सोच के माध्यम से व्यक्ति का विकास होता है

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Wed, 10 Dec 2014 10:49 AM (IST)

    सकारात्मक सोच के माध्यम से व्यक्ति का विकास होता है और नकारात्मक सोच के कारण वह विनाश को प्राप्त होता है। ज्ञानेंद्रियों के द्वारा व्यक्ति को वातावरण से तरह-तरह के विचार मिलते हैं और इन विचारों पर सोचकर वह निश्चय करता है कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

    सकारात्मक सोच के माध्यम से व्यक्ति का विकास होता है

    सकारात्मक सोच के माध्यम से व्यक्ति का विकास होता है और नकारात्मक सोच के कारण वह विनाश को प्राप्त होता है। ज्ञानेंद्रियों के द्वारा व्यक्ति को वातावरण से तरह-तरह के विचार मिलते हैं और इन विचारों पर सोचकर वह निश्चय करता है कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

    कभी-कभी इन विचारों पर सोचते- सोचते वह इतना उलझ जाता है कि उसको पता ही नहीं चल पाता कि क्या सही है या गलत है, जैसा कि महाभारत युद्ध में अर्जुन के साथ हुआ। अर्जुन नकारात्मक विचारों में घिर गए थे। यदि उस समय कृष्ण जैसे मार्गदर्शक न होते तो हो सकता था कि महाभारत युद्ध का परिणाम भिन्न होता। अक्सर देखने में आता है कि जहां सकारात्मक विचार प्रगति कराते हैं वहीं नकारात्मक विचार व्यक्ति को पाप की तरफ भी खींच ले जाते हैं। व्यक्ति का मन सोच का केंद्र होता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि मन के पास ही सारे विचारों का संग्रह होता है। इस संग्रह को भावनाओं का सागर भी कहा जाता है और सनातन धर्म में इसे भवसागर कहा गया है।

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    इसी भवसागर को पार करके व्यक्ति सफल कहलाता और जो इसमें डूब जाता है, वह असफल होकर संसार में दुख भोगता है और धार्मिक व्यक्ति ईश्वर की शरण लेने की सलाह देते हैं। वैज्ञानिक पद्धति के अंतर्गत मनोवैज्ञानिक ऐसे मामलों में लगातार काउंसलिंग या दवाओं के प्रयोग की सलाह देते हैं। अच्छी या बुरी दोनों ही प्रकार की सोच की अधिकता हानिकारक है।

    दिमाग यदि किसी गहरी सोच में डूबा है तो वह शरीर को स्वस्थ नहीं रख पाता। इसका परिणाम होता है तरह-तरह की बीमारियां। ऐसा ज्यादातर मामलों में देखने में आता है कि सोच से बचने के लिए व्यक्ति पलायनवादी रवैया जैसे अपने आपको मनोरंजन के साधनों में या नशे आदि में डूबकर मुख्य सोच से बचने की नाकाम कोशिश करता है, परंतु इस प्रकार की सोच के भंवर से बचने का साधन है उस सोच की तह में जाकर उसके मुख्य कारणों का निवारण करना। इसके लिए ध्यान व मनन एक अति उत्तम विधि है, जिसे अध्यात्म और मनोविज्ञान की भी मान्यता प्राप्त है। आजकल पश्चिमी देशों में भारतीय ध्यान पद्वति बहुत लोकप्रिय हो रही है। जो व्यक्ति ईश्वर पर विश्वास करता है उसका स्वयं पर भी विश्वास बढ़ जाता है। वह परिणाम को ईश्वर की इच्छा मानकर शांति का अनुभव करने लगता है।

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