Pitru Paksha 2025: पितृ पक्ष के दौरान कब और कैसे करें पितरों का श्राद्ध एवं तर्पण? बरसेगी पितरों की कृपा
तुलसी और पीपल प्रतीक हैं वनस्पति पूजा के। ये हमारे पितृ (Pitru Paksh 2025) हैं। प्रतीक रूप में एक निमित्त बनाकर कहा गया कि पीपल के मूल में पानी डालो लेकिन हर एक वृक्ष पितृ है। प्रत्यक्ष रूप में पितृ है। पीपल का तर्पण पानी डालने से होगा लेकिन हर एक वनस्पति को पानी से सींचो। प्रत्येक वृक्ष की पूजा पितृतर्पण है।

मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। पितृपक्ष में क्या करना चाहिए? इसे नारद भक्ति सूत्र और रामचरित मानस से समझा जा सकता है। नारद भक्ति सूत्र में लिखा है कि जिसका बेटा हरि नाम जपता हो तो पितृलोक में उसके पितृ नृत्य करते हैं। श्रीरामचरितमानस में शिव ने पार्वती से कहा है- सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत... हे उमा, वह कुल धन्य है, जिस कुल में बेटा हरि भजन करता है।
श्रद्धानंद, परमानंद, गौरवानंद, सुखानंद, ये सब अच्छे शब्द हैं, लेकिन नृत्यानंद कुछ अलग हस्ती है। पितृलोक है या नहीं, मुझे नहीं पता। एक अवस्था का नाम होगा, जिसमें पितृगण नृत्य करते होंगे। पितृ तर्पण यानी श्राद्ध के लिए मेरा स्पष्ट कहना है कि अगर माता-पिता जीवित नहीं हैं तो उनका स्मरण करो।
अगर माता-पिता हैं तो उनकी सेवा करो। जो नहीं हैं, उनका स्मरण होना चाहिए। उनके श्राद्ध के बहाने, उनके सुकर्मों के बहाने, उन्होंने तुम्हें जो संस्कार दिए हों, उनके बहाने उनका स्मरण करो। जो अच्छे संस्कार उन्होंने दिए हैं, उन्हें अपने में बनाए रखना भी उनका श्राद्ध करना ही है। उनका स्मरण बहुत ही मूल्यवान है, लेकिन यह भी ध्यान रखना है कि अगर माता-पिता हैं तो प्राथमिकता के साथ उनकी सेवा करो।
श्राद्ध करना ही है, मगर हमारे घर में जो बैठे हैं, उन पिता की ओर मेरी ज्यादा दृष्टि है। उनकी सेवा करो। आज्ञा सम न सुसाहिब सेवा। आज्ञा का पालन करने के बराबर कोई सेवा नहीं है। वह जो कहे, सो करो। आप कहेंगे कि वह गलत कहें तो भी? मेरा मानना है कि हां, एक मिनट के लिए हां कह दो, फिर कुछ समय बाद उन्हें समझाओगे तो बूढ़े पिता अवश्य ही समझ जाएंगे।
एक महत्वपूर्ण बात यह भी कहना चाहता हूं कि पितृ बाधक बन रहे हैं, ऐसा मानकर परिवारजन कुछ उपाय करते हैं। अक्सर श्रोता इस विषय में जिज्ञासा भी मेरे सामने करते हैं। लोग कहते हैं कि पितृदोष है। पितृ बाधक बनते हैं, ऐसा मुझे अनुभव नहीं है। अंधश्रद्धा, डोरे-धागे, गुजरात में डाक बजाना आदि ये सब न करो तो अच्छा है। मेरा मानना है कि पितृ बाधक हैं, ऐसा सोचना भ्रांति है। कोई बाधा नहीं बनता। किए हुए कर्म ही बाधक होते हैं।
पूरे जगत के पिता हैं योगेश्वर कृष्ण। पितृ तर्पण में आप पीपल पर जल देते हैं। जब अनुकूलता हो, तब प्राची के पीपल सोमनाथ हो आओ। सोमनाथ पितृ चरण है और योगेश्वर कृष्ण भी हैं वहां। त्रिवेणी का जल लेकर पीपल में चढ़ाओ, कोई पितृ बाधक नहीं बनेगा। आपके गांव में, घर के पास पीपल हो और जल न हो तो कुछ अश्रु बहा दो, पितृ तर्पण हो जाएगा।
यह जिज्ञासा अक्सर आती है कि क्या स्त्रियां अपने पति या ससुर की श्राद्ध विधि करवा सकती हैं? मेरी दृष्टि में हां, करवा सकती हैं। मैं तो यह भी कहता हूं कि अंतिम विधि में धर्मपत्नी अग्निदाह दे सकती है। पितृ क्रिया में बैठ सकती है। संविधान में समय-समय पर परिवर्तन गतिशील जगत के लिए जरूरी है। धर्म संविधान में मूल उसूलों को पड़कर देशकाल के अनुसार परिवर्तन कर सकते हैं।
तुलसी और पीपल प्रतीक हैं वनस्पति पूजा के। ये हमारे पितृ (Pitru Paksha tarpan time) हैं। प्रतीक रूप में एक निमित्त बनाकर कहा गया कि पीपल के मूल में पानी डालो, लेकिन हर एक वृक्ष पितृ है। प्रत्यक्ष रूप में पितृ है। पीपल का तर्पण पानी डालने से होगा, लेकिन हर एक वनस्पति को पानी से सींचो। प्रत्येक वृक्ष की पूजा पितृतर्पण है।
नाग को भी पितृ कहा गया है। कई परिवार में लोग श्रद्धा (pitru Paksha 2025) से कहते हैं कि हमारे पितृ नाग बनकर घूम रहे हैं। नाग देवताओं के मंदिर पितरों के मंदिर माने जाते हैं। सांप सपने में आए या सामने दिखाई दे तो तलवट कूटकर खिलाने को कहा जाता था। वट यानी अहंकार। तलवट का अर्थ व्यासपीठ करती है कि आपका तल जितना अहंकार को भी कूटना। नाग में रहे पितृ का तर्पण तलवट से होता है।
अर्थात परिवार, परंपरा में आने वाली संतान अपने अहंकार को कूटे तो यह उनके पिता का सबसे बड़ा तर्पण है। नाग पितृ का प्रतीक माना गया, इसलिए अहंकारशून्य होना हमारे पितृ का तर्पण है। महादेव को जल चढ़ाओ, यह पितृतर्पण है। शंकर जलधारा से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना किसी वस्तु से नहीं होते। शिव अभिषेक आप घर में करो, यह भी पितृतर्पण है। शालिग्राम नारायण हैं। शालिग्राम का अभिषेक पितृतर्पण है।
प्रतिदिन 'रामचरितमानस' का पाठ करो, यह भी पितृतर्पण है। 'तात मात सब बिधि तुलसी की।' जब-जब समय मिले केवल हरि, रामनाम का मंत्र जप करो, यह पितृतर्पण है। अपने गुरु के वचनामृत यत्किंचित हमारी जितनी समझ हो, उतनी मात्रा में उसका अनुसरण करना। गुरु स्वयं हमारे पितृ हैं।
हमारे ऊपर तीन प्रकार के ऋण हैं-पितृऋण, ऋषिऋण और देवऋण। पितृऋण के साथ-साथ बाकी दोनों ऋण भी आदमी को पूरे करने होते हैं। ऋषि और मुनि का ऋण केवल शास्त्र अध्ययन, स्वाध्याय करने से पूरा होता है। स्वाध्याय में कभी प्रमाद न करें। 'स्वाध्याय प्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम्।' ज्ञानेश्वर महाराज ने 'ज्ञानेश्वरी' दी। ज्ञानेश्वर ऋषि हैं, भगवान हैं। इस ऋषि के ऋण से मुक्त होना है तो 'ज्ञानेश्वरी' का पाठ करें।
जगद्गुरु तुकाराम का ऋण उतारना है तो अभंग का पारायण करें। वाल्मीकि और तुलसी ऋषि हैं, इस ऋषिऋण से मुक्त होना है तो 'रामायण' गाएं; 'मानस' का स्वाध्याय करें। सिख भाइयों को गुरु नानक और दसों गुरुओं का ऋण चुकाना है तो 'गुरु ग्रंथ साहब' का पाठ करें। ऋषिऋण तो केवल शास्त्रवचन गुनगुनाने से चुकाया जाता है। ऋषि को आप क्या दे पाओगे?
यज्ञ करके, दान करके, सत्कर्म करके देवऋण से मुक्ति प्राप्त होती है। भगवद्गीता में कहा है, यज्ञ, दान और तप कर्म कभी छोड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि ये बुद्धिमान की मलिन होती बुद्धि को बार-बार विशुद्ध करने के प्रयोग हैं।
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