पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के महाप्रयाण दिवस
अखिल विश्व गायत्री परिवार के जनक पंडित श्रीराम शर्मा एक ऐसी दिव्य सत्ता के रूप में हम सबके बीच आए जिनसे अनेकों व्यक्तियों ने स्नेह पाया। उन्होंने विकास के लिए एक नया सहज पथ प्रशस्त किया। यह बात दैनिक जागरण के साथ खास बातचीत में देसंविवि के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पंड्या ने पंडित श्रीराम शर्मा के 24वें महाप्रयाण दिवस और गायत्री जयं
हरिद्वार। अखिल विश्व गायत्री परिवार के जनक पंडित श्रीराम शर्मा एक ऐसी दिव्य सत्ता के रूप में हम सबके बीच आए जिनसे अनेकों व्यक्तियों ने स्नेह पाया। उन्होंने विकास के लिए एक नया सहज पथ प्रशस्त किया। यह बात दैनिक जागरण के साथ खास बातचीत में देसंविवि के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पंड्या ने पंडित श्रीराम शर्मा के 24वें महाप्रयाण दिवस और गायत्री जयंती व गंगा दशहरा की पूर्व संध्या पर कही।
दो जून सन् 1990 को गंगा दशहरा के दिन पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ब्रह्मलीन हुए थे। तब से शांतिकुंज में गंगा दशहरा के साथ गायत्री जयंती और आचार्य पंडित श्रीराम शर्मा का महानिर्वाण दिवस साथ-साथ मनाया जाता है। शुक्रवार को इस अवसर पर शांतिकुंज में तीन दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत हुई। शनिवार को देसंविवि के कुलाधिपति और शांतिकुंज प्रमुख डॉ. प्रणव पंड्या ने दैनिक जागरण से खास बातचीत में बताया कि आधुनिक ऋषि के रूप में आचार्य ने गायत्री महामंत्र के कल्याणकारी सामर्थ्य को जाति, धर्म, लिंग, भेद से परे सबके लिए सार्वजनिक रूप से सुलभ बनाने का विश्वामित्र के बाद इस युग का भगीरथ पुरुषार्थ कर दिखाया। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अपने जीवन काल में ही करोड़ों संस्कृतिनिष्ठ व्यक्तियों का अध्यात्मिक जन आंदोलन खड़ा हो चुका था।
देशभर में 2400 से अधिक प्रज्ञा संस्थान खड़े हो चुके थे। आज इनकी संख्या करीब 5500 से अधिक हो गई है और 80 से अधिक देशों में मिशन का विस्तार के माध्यम से नैतिक, बौद्धिक एवं सामाजिक आंदोलन का विराट स्वरूप स्थापित हो चुका है। डॉ. पंड्या ने बताया कि आचार्य ने सन् 1971 में नवसृजन की योजनाओं को कार्यन्वित करने के लिए सप्तऋषि क्षेत्र हरिद्वार स्थित गायत्री मंत्र दृष्टा विश्वामित्र की तपस्थली को चुना। माता भगवती देवी शर्मा को अध्यात्म-अनुष्ठान एवं संगठन का कार्यभार सौंप कर आचार्य उग्र तपश्चर्या के लिए चार बार हिमालय गए। एक प्रश्न के उत्तर में कुलाधिपति ने बताया कि 1975 में महिला जागृति अभियान पत्रिका के प्रकाश के साथ ही देव कन्याओं के जत्थे देश भर में भेजकर आचार्य ने नारी सम्मेलन आयोजित किए।
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