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    प्रात:काल का समय हमारे जीवन में बड़ा महत्व है

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Fri, 12 Dec 2014 11:44 AM (IST)

    प्रात:काल का समय हमारे जीवन में बड़ा महत्व रखता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि वहीं से हमारा दिन प्रारंभ होता है। इसलिए प्रात:काल को अपने विवेक से प्रारंभ करना चाहिए। हमारे जीवन का कोई भी पल अगर मनोविकारों से ग्रस्त होता है तो हम मानसिक रूप से अस्त-व्यस्त हो जाते हैं।

    प्रात:काल का समय हमारे जीवन में बड़ा महत्व है

    प्रात:काल का समय हमारे जीवन में बड़ा महत्व रखता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि वहीं से हमारा दिन प्रारंभ होता है। इसलिए प्रात:काल को अपने विवेक से प्रारंभ करना चाहिए। हमारे जीवन का कोई भी पल अगर मनोविकारों से ग्रस्त होता है तो हम मानसिक रूप से अस्त-व्यस्त हो जाते हैं।

    हमारी थोड़ी-सी भूल हमारे जीवन को कांटों से भर देती है। मनोविकारों में काम, क्रोध, लोभ और मद प्रमुख हैं। वे हमारे संतुलित जीवन में असंतुलन पैदा कर देते हैं। इसका कारण यह है कि जो व्यक्ति रात में पूरी नींद सोता है, वह सुबह अनमना बन जाता है। उसके मन में कोई प्रसन्नता नहीं होती। वह उखड़ा-उखड़ा अपना दिन प्रारंभ करता है और ऐसी ही अवस्था में वह क्रोधी बन जाता है।

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    सुबह का क्रोध दिन भर उसे उद्विग्न बनाए रखता है। हमें कोई चीज अच्छी नहीं लगती। बात-बात में मित्रों से लड़ पड़ते हैं। एक प्रकार से हम क्रोध के वशीभूत होकर पागल की तरह व्यवहार करने लगते हैं। सुबह का क्रोध विष के समान होता है, जो हमें अपनों से दूर कर देता है और मित्रों के मन में घृणा पैदा कर देता है। क्रोधी व्यक्ति को समाज में सम्मान नहीं मिलता। कामी व्यक्ति और अहंकारी व्यक्ति दोनों को लोग अछूत की नजरों से देखते हैं, लेकिन जो लोग सत्संग में बैठते हैं, विवेक की बात करते हैं, वे सबसे पहले प्रयास करते हैं कि उनका प्रात:काल आनंदमय हो। ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति खुश रहने के बारे में सोचता जरूर है, लेकिन रह नहीं पाता।

    अगर हम प्रात:काल को आनंद रूप में स्वीकार करें, उगते हुए लाल सूर्य का प्रसन्नतापूर्वक स्वागत करें, मंद-मंद बयार में शरीर को प्रफुल्लित करें और हंसते हुए मुस्कुराते हुए दिन का स्वागत करें तो कोई कारण नहीं है कि हमारा दिन खराब हो। काम के वशीभूत हो, और मद के वशीभूत हो, अगर हम दिन का प्रारंभ करेंगे तो सारा दिन विकृतियों से भर जाता है। मनोवैज्ञानिक मानने लगे हैं कि प्रात:काल बिस्तर परित्याग के बाद प्रसन्नतापूर्वक अच्छे विचारों का धारण करना चाहिए और किसी भी कारण से क्रोध के वशीभूत न हो, ऐसा उपाय करना चाहिए। साधना में जो लोग उतरते हैं, वे सबसे पहले यह प्रयास करते हैं कि मन को विकृति से दूर रखते हुए आनंद के क्षेत्र में प्रवेश करें। जिस प्रकार स्वस्थ रहना हमारा मूल धर्म है, उसी प्रकार प्रसन्न रहना भी हमारा अधिकार है।

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