मनुष्य का जीवन एक विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए होता है
सत्य सर्वकालिक है। सत्य न केवल स्वयं प्रतिष्ठित है, बल्कि सभी कुछ, जो भी जगत में दृष्टिगत है वह सत्य में ही प्रतिष्ठित है।
मनुष्य का जीवन एक विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए होता है। मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है और उसकी प्राप्ति कैसे करनी चाहिए, इस पर हमारी परंपरा में प्रारंभ से ही विचार होता रहा है। आरंभ में मनुष्य के लिए यह कहा गया कि मनुष्य सभी कुछ प्राप्त करे और नीति संगत प्राप्तियों का उपयोग धर्म के अनुसार करे। वह यह विचार अवश्य रखे कि उसके जीवन में उसे जो प्राप्तियां हुईं हैं वे शाश्वत नहीं हैं और उन प्राप्तियों के माध्यम से मनुष्य शाश्वत सुख की प्राप्ति नहीं कर सकता है।
इसलिए ऋषि परंपरा में यह कहा गया है कि परमसत्य का ध्यान करो और उसे ही प्राप्त करो। मनुष्य के लिए सत्य की प्राप्ति का आग्रह ऋषियों द्वारा केवल इसीलिए नहीं किया गया है कि सत्य केवल एक यथार्थ मात्र है और उसकी प्राप्ति भी अल्पकालिक ही होती है। सत्य सर्वकालिक है। सत्य न केवल स्वयं प्रतिष्ठित है, बल्कि सभी कुछ, जो भी जगत में दृष्टिगत है वह सत्य में ही प्रतिष्ठित है।
सत्य की ही उपासना करना है। सत्य में ही सभी कुछ प्रतिष्ठित है। यह कहने के साथ-साथ ऋषिगण सत्य को धर्म के स्वरूप में भी देखते हैं और यह कहते हैं कि धर्म को चाहे जितने व्यापक रूप में देखा जाए और धर्म को चाहे जिस रूप में प्राप्त किया जाए, किंतु सत्य से बढ़कर और कोई धर्म नहीं है। सत्य ही परम धर्म है और सत्य से बढ़कर कोई दूसरा धर्म नहीं है। इसीलिए रामकथा के अनुपम कथाकार गोस्वामी तुलसीदास ने भी श्री रामचरितमानस में लिखा है कि सत्य के बराबर कोई दूसरा धर्म नहीं है। ट्रुथ इज गॉड कहकर पाश्चात्य विचारक सत्य को ईश्वर कहते हैं और वे ईश्वर को सत्य स्वरूप में देखते हैं। सत्य ही ईश्वर है, ईश्वर ही सत्य है- ऐसी उनकी दृष्टि है और इसी दृष्टि से सत्य की महत्ता स्थापित है। इन्हीं सब विचारों और सिद्धांतों के आधार पर निष्कर्ष रूप में यह कहा गया है कि इस जगत में विजय सदा सत्य की होती है और असत्य चाहे जितना भी बलशाली और अजेय हो उसे हारना ही पड़ता है। यही कारण है कि हमारे देश का आदर्श वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ स्वीकार किया गया है। पाश्चात्य विचारकों ने भी सत्य के बारे में कहा है कि सत्य को कुछ वक्त के लिए असत्य परेशान कर ले, लेकिन अंतत: सत्य की ही जीत होती है। दुनिया के सभी धर्म सत्य का गुणगान करते रहे हैं। जो जीवन के सत्य का सामना नहींकर सकते हैं वे अध्यात्म या ईश्वर की अनुभूति कभी नहींकर सकते।
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