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    मलमास: 19 साल बाद बन रहा है यह योग, सभी मांगलिक कार्य वर्जित

    इस बार दो माह हरि (भगवान विष्णु) को समर्पित होंगे। यह होगा कार्तिक से इतर अधिकमास के कारण जिसका योग एक अतिरिक्त आषाढ़ की वृद्धि के कारण बन रहा है। इस प्रकार संवत 2072 (वर्ष 2015) हिंदी मास इस बार 13 माह का होगा। इस वृद्धि को अधिकमास, मलमास या

    By Preeti jhaEdited By: Updated: Wed, 17 Jun 2015 01:10 PM (IST)

    इस बार दो माह हरि (भगवान विष्णु) को समर्पित होंगे। यह होगा कार्तिक से इतर अधिकमास के कारण जिसका योग एक अतिरिक्त आषाढ़ की वृद्धि के कारण बन रहा है। इस प्रकार संवत 2072 (वर्ष 2015) हिंदी मास इस बार 13 माह का होगा। इस वृद्धि को अधिकमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास कहते हैं। हालांकि पूरे देश में इस अवधि में लक्ष्मीनारायण का पूजन, स्नान दान किया जाता है लेकिन महादेव की नगरी काशी में यह खास हो जाता है। इस एक माहपर्यंत शैव-वैष्णव आराधना एकाकार होगी। एक ओर श्रीहरि की पूजा अर्चना तो दूसरी तरफ हर कृपा के निमित्त पंचक्रोसी यात्रा की जाती है।

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    स्नान दान के साथ ही भगवान विष्णु को मालपुआ का भोग तो महादेव को विल्व पत्र अर्पण और स्वयंभू द्वादश ज्योतिर्लिंगों का रूद्राष्टाध्यायी मंत्रों से अभिषेक की परंपरा है। अधिकमास अर्थात अतिरिक्त आषाढ़ 17 जून से लग रहा है जो 16 जुलाई को खत्म होगा। 17 जून के पूर्व की अवधि में शुद्ध आषाढ़ कृष्ण पक्ष तीन जून से शुरू हुआ जो 16 जून तक रहेगा। शुद्ध आषाढ़ शुक्ल पक्ष 17 जुलाई से 31 जुलाई तक रहेगा। एक अगस्त से सावन शुरू होगा।
    यह है अधिकमास
    जिस चंद्रमास में सूर्य की संक्रांति नहीं होती उसे अधिकमास कहते हैं। अत: जिस राशि पर सूर्य का संचरण होता है, उसे उस राशि की संक्रांति कही जाती है। अधिकमास 32 माह 16 दिन चार घड़ी के अंतर पर आता है। ज्योतिष शास्त्र में अनुभव किया गया कि इस गणना में कहीं न कहीं कुछ सूक्ष्म अंतर रह जाता है। इसे पूरा करने के लिए क्षय मास की व्यवस्था की गई जो 140 वर्ष पीछे से 190 वर्ष के बीच एक बार आता है। जिस चंद्रमास के दोनों पक्षों में सूर्य संक्रांति होती है, क्षय मास कहा जाता है। क्षय मास केवल कार्तिक, मार्गशीर्ष व पौष के किसी एक माह में होता है। जिस वर्ष क्षय मास होता है, उस एक वर्ष के भीतर दो अधिक मास होते हैं।
    ज्ञान और विज्ञान
    ख्यात ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी के अनुसार सनातनी परंपरा में ज्योतिष शास्त्र अनुसार चंद्रगणना आधारित काल गणना पद्धति प्रमुख मानी जाती है। इस पद्धति में चंद्रमा की 16 कलाओं के आधार पर दो पक्ष (कृष्ण व शुक्ल) का एक मास माना जाता है। प्रथम पक्ष अमांत और दूसरा पूर्णिमांत कहा जाता है। कृष्ण पक्ष के प्रथम दिन से पूर्णिमा की अवधि में साढ़े 29 दिन होते हैं। इस दृष्टि से गणना अनुसार एक वर्ष 354 दिन का होता है। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन व छह घंटे का समय लगता है। सूर्य गणना व सनातनी परंपरा की चंद्र गणना पद्धति में हर साल 11 दिन तीन घड़ी व 48 पल का अंतर पड़ जाता है। यह अंतर तीन वर्ष में बढ़ते-बढ़ते लगभग एक साल का हो जाता है। अंतर दूर करने के लिए भारतीय ज्योतिष शास्त्र में तीन वर्ष में एक अधिकमास की परंपरा है। इस अधिकमास के तीन वर्ष में सूर्य गणना व चंद्रगणना की दोनों पद्धतियों की काल गणना लगभग समान हो जाती है।
    स्नान-दान विधान
    अधिकमास का अधिष्ठाता श्रीहरि को माना गया है। इस अवधि में श्रीहरि को प्रसन्न करने के लिए स्नान-दान व्रत का विशेष महत्व है। इस अवधि में माहपर्यंत काशी में गंगा या पंचगंगा घाट पर स्नान, व्रत और लक्ष्मीनारायण की सविधि पूजा का विधान है। मान्यता है कि समस्त विधानों के साथ अन्न, वस्त्र, स्वर्ण-रजत, ताम्र आभूषण समेत अन्य वस्तुओं के दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति और पापों का क्षय व अंत में विष्णु लोक प्राप्त होता है। पंचनद तीर्थ पर स्नान कर भगवान शिव का पूजन, बिल्व पत्र अर्पण और दान से अक्षय पुण्य, धर्म अर्थ काम मोक्ष प्राप्ति होती है।

    मलमास या पुरुषोत्तम मास

    मलमास या पुरुषोत्तम मास, 3 साल के बाद बनने वाली तिथियों के योग से बनता है। इसे अधिक मास भी कहा जाता है। इस साल 17 जून से 16 जुलाई तक अधिक मास के योग बन रहे हैं। साल 2015 का यह मलमास कई मामलों में बेहद अहम है, क्योंकि यह योग 19 साल बाद बन रहा है। मलमास में मांगलिक कार्य तो वर्जित रहते हैं, लेकिन भगवान की आराधना, जप-तप, तीर्थ यात्रा करने से ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। इस मास में भगवान शिव की आराधना बेहद फलदायी होती है। विद्वानों के अनुसार, हर तीसरे वर्ष में अधिक मास होता है। सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश को संक्रांति होना कहा जाता है। सौर मास 12 और राशियां भी 12 होती हैं। जब दो पक्षों में संक्रांति नहीं होती, तब अधिक मास होता है। यह स्थिति 32 माह 16 दिन में एक बार यानि हर तीसरे वर्ष बनती है। इस साल 17 जून से 16 जुलाई तक का समय मलमास का रहेगा। इस माह में जप, तप, तीर्थ यात्रा, कथा श्रवण का बड़ा महत्व होता है। अधिक मास में हर दिन भागवत कथा सुनने से अभय फल की प्राप्ति होती है।

    मलमास को भगवान विष्णु की पूजा के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। आषाढ़ मास में मलमास लगने का संयोग दशकों बाद बनता है। इससे पूर्व 1996 में यह संयोग बना था और अगली बार 2035 में यह संयोग बनेगा। डॉ. शिवकुमार शुक्ल के मुताबिक, जुलाई से दिसंबर तक पड़ने वाले त्योहार मौजूदा साल की तिथियों के मुकाबले दस से 20 दिन तक की देरी से आएंगे। यह स्थिति अधिक मास के कारण बनेगी। उन्होंने बताया कि 2012 में अधिक मास होने के कारण दो भाद्रपद थे और 2015 में दो आषाढ़ होंगे, जबकि 2018 में 16 मई से 13 जून तक दो ज्येष्ठ होंगे।

    अधिक मास में किए जाने वाले पूजन यज्ञ से मिलने वाले फल, इस मास में भगवान विष्णु का पूजन, हवन, जप-तप और दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। खास तौर पर भगवान कृष्ण, श्रीमद् भागवत गीता, श्रीराम की अराधना, कथा वाचन और विष्णु की उपासना की जाती है। इस मास में एक समय भोजन करना, भूमि पर सोने से भी लाभ प्राप्त होता है। पुरुषोत्तम मास में तीर्थ स्थलों और धार्मिक स्थानों पर जाकर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। अधिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की एकादशी पद्मिनी और परमा एकादशी कहलाती है, जो इष्ट फलदायिनी, वैभव और कीर्ति में वृद्धि करती है। अधिक मास में शादी, विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवित जैसे मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं।