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    महाभारत कथा : भगवान कृष्ण का अवतरण यदु-कुल में

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Wed, 20 Apr 2016 12:00 PM (IST)

    कुरु-वंश और यदु-वंश से जुडी इस श्रृंखला में आज पढ़ते हैं, यदु वंश की शुरुआत के बारे में और भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बारे में…

    महाभारत कथा : भगवान कृष्ण का अवतरण यदु-कुल में

    कुरु-वंश और यदु-वंश से जुडी इस श्रृंखला में आज पढ़ते हैं, यदु वंश की शुरुआत के बारे में और भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बारे में…

    सद्‌गुरु : यदु को उसके पिता ययाति ने श्राप दिया था कि वह कभी राजा नहीं बन सकता। वह दक्षिण की ओर आज के मथुरा शहर चला आया और नागा जनजाति में विवाह कर लिया। उस जनजाति में राजा नहीं होते थे, एक परिषद शासन चलाती थी। यदु उस शासक परिषद में शामिल हो कर उसका मुखिया बन गया। उसके बच्चों से अलग-अलग वंश परंपराएं निकलीं जैसे अंधक, भोजक और वृष्णि, जो साथ मिलकर यादवों के नाम से मशहूर हुईं।

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    कुछ पीढ़ियों के बाद यदु वंश में वासुदेव का जन्म हुआ। उनकी दो पत्नियां, देवकी और रोहिणी थीं। देवकी का एक सौतेला भाई था, कंस, जो जबरन बनाए गए संबंध यानी बलात्कार से पैदा हुआ था। उन दिनों हर कहीं यह परंपरा थी कि चाहे बच्चे का जन्म किसी भी तरह हुआ हो, वह अपनी मां के वंश का एक वैध हिस्सा बन जाता था। मगर यादवों ने कंस को नहीं अपनाया और उसे अवैध सन्तान कहकर दुत्कार दिया। वह एक महान योद्धा था,‍ फिर भी उन्होंने उसे शासक परिषद में शामिल करने से इनकार कर दिया क्योंकि वह बहुत दुष्ट और असभ्य था।

    कंस ने पूरब के एक महान राजा जरासंध से दोस्ती कर ली। जरासंध के समर्थन के कारण बहुत से लोग कंस के साथ हो गए। यादव वंश में पहली बार ऐसा हुआ था कि किसी ने बुजुर्गों की परिषद को खारिज करके खुद को राजा घोषित कर दिया था। राजा बनने के बाद कंस ने अपनी निर्विवाद सत्ता स्थापित कर ली और अपने असभ्य तरीकों से राजपाट चलाने लगा।

    उसके शासन में लोग काफी दुखी थे, मगर कोई उसका विरोध करने का साहस नहीं करता था क्योंकि उसका मित्र जरासंध एक शक्तिशाली राजा था। कंस को श्राप मिला हुआ था कि उसकी बहन के आठवें बच्चे के हाथों उसका वध होगा। जब उसे इस बात का पता चला, तो उसने देवकी और वासुदेव को जेल में डाल दिया। वह गिनती करके सिर्फ आठवें बच्चे को मार सकता था मगर वह कोई खतरा नहीं उठाना चाहता था।

    जिस दिन पहले बच्चे का जन्म हुआ, कंस ने जेल में जाकर नवजात शिशु को पैरों से उठाया और फर्श पर पटक दिया। उसकी मां भय और दुख से हक्की-बक्की रह गई, मगर जेल में कैद होने के कारण वे कुछ नहीं कर सकते थे। अगले बच्चे का जन्म हुआ, कंस ने फिर से आकर उसे पटक कर मार डाला। इसके विस्तार में मैं नहीं जाऊंगा। उसके बाद वासुदेव और देवकी ने यह सुनिश्चित किया कि सातवां बच्चा बलराम, वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में चला जाए, जो नदी के दूसरी ओर गोकुल में रहती थी।

    भगवान कृष्ण का अवतरण

    फिर आठवें बच्चे कृष्ण का जन्म होना था। वे इस बच्चे को बचाने के लिए पूरी तरह संकल्पित थे, सिर्फ बच्चे के लिए नहीं बल्कि इसलिए भी कि वे कंस के अत्याचार को समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने तंत्र विद्या से जेल के रक्षकों को सुला दिया। गोपों के मुखिया नंद और उनकी पत्नी यशोदा नदी के उस पार रहते थे। यशोदा ने अभी-अभी एक बच्ची को जन्म दिया था। वासुदेव ने नवजात कृष्ण को नंद और यशोदा को सौंप दिया और उस नवजात बच्ची को अपने साथ जेल में ले गए।

    सुबह जब कंस जेल में आया तो लड़की को देखकर हैरान रह गया क्योंकि आठवां बच्चा लड़का होना चाहिए था, जो उसे मारता। मगर फिर भी कंस अपने जीवन पर कोई खतरा नहीं चाहता था। कौन जाने – लड़की कब लड़के में बदल जाए। वह उसे उठाने ही वाला था कि देवकी ने उससे प्रार्थना की, ‘देखो, यह तो एक लड़की है। यह तुम्हें नहीं मार सकती। इसकी शादी हो जाएगी और यह अपने घर चली जाएगी। कृपया इसका जीवन बख्श दो।’ कंस ने कहा, ‘ऐसा हरगिज नहीं हो सकता। मैं कोई खतरा क्यों मोल लूं?’ वह लड़की को उठाकर उसे पटकने ही वाला था, मगर वह नीचे नहीं गिरी।

    सद्‌गुरु