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    जीवन हमेशा एक-सा नहीं रहता, परिवर्तन को स्वीकारें

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Fri, 08 May 2015 12:48 PM (IST)

    जीवन हमेशा एक-सा नहीं रहता। परिवर्तन को स्वीकार कर ही हम अपनी हताशा-निराशा से उबर सकते हैं और समय के साथ चलकर अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं... क धनी व्यक्ति को व्यवसाय में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। उसे लगने ल

    जीवन हमेशा एक-सा नहीं रहता। परिवर्तन को स्वीकार कर ही हम अपनी हताशा-निराशा से उबर सकते हैं और समय के साथ चलकर अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं...

    क धनी व्यक्ति को व्यवसाय में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। उसे लगने लगा कि उसकी जिंदगी में घटाटोप अंधेरा भर गया है। उसके मन में आत्महत्या का विचार उपजा। वह जैसे ही नदी में कूदने जा रहा था, किसी ने उसे पीछे से पकड़ लिया। वह कोई मुसाफिर था। आत्महत्या करने की कोशिश करने वाला व्यक्ति फूट-फूट कर रोने लगा, 'आपने मुझे क्यों बचा लिया, ऐसी जिंदगी से मर जाना ही अच्छा है।' उस व्यक्ति की पूरी कहानी सुनकर मुसाफिर बोला, 'तुम यह मानते हो कि पहले तुम सुखी थे?' वह व्यक्ति बोला, 'हां, मेरी जिंदगी में उजाला ही उजाला था, लेकिन अब अंधेरे के सिवा कुछ नहीं बचा।' मुसाफिर ने कहा, 'क्या तुम नहीं जानते कि दिन के बाद रात ही आती है और रात के बाद दिन ही आता है?' वह व्यक्ति बोला- 'यह तो सभी लोग जानते हैं।'

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    'जानते हो तो आत्महत्या क्यों कर रहे थे? तुमने जब सुखी जीवन को स्वीकार किया, तो अब दुखी जीवन को क्यों स्वीकार नहीं करते। जबकि तुम्हें पता है इस रात के बाद फिर दिन ही आना है।'

    परिवर्तन प्रकृति का नियम

    महान दार्शनिक अरस्तू ने कहा है, परिवर्तन प्रकृति का नियम है। हम प्रकृति के इस नियम को जब भी मानने से इनकार करने लगते हैं, तब हम दुखी होते हैं, अवसाद से घिर जाते हैं। हमें स्वीकारना होगा कि जब अच्छे दिन स्थायी नहीं रहते, तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे। जो व्यक्ति इस सत्य को जान लेता है, वह कभी निराश-हताश नहीं होता। उसका कर्मशील जीवन मजबूत होकर सामने आता है।

    गतिशीलता से होगा विकास

    दरअसल, परिवर्तन को स्वीकारना ही हमें गतिशील बना सकता है। हम समय की ऐसी रेलगाड़ी के साथ-साथ चल रहे हैं, जिसमें रुकने का मतलब पिछड़ जाना होता है। जीवन के सफर का वास्तविक आनंद हम तभी उठा सकते हैं, जब हम समय के साथ चलें, पुराने स्टेशनों (जड़ रीति-रिवाजों और पुरानी अवधारणाओं) को छोड़ते जाएं और नए स्टेशनों (समय के अनुकूल नवीनता) को अपनाते जाएं। परिवर्तन शाश्वत है। समय के साथ किसी भी वस्तु, विषय और विचार में भिन्नता आती है। मौसम बदलते हैं। मनुष्य की स्थितियां बदलती हैं। समय के साथ उत्तरोत्तर बदलने को ही विकास कहा जाता है। यदि हम बदलाव से मुंह चुराएंगे, तो हमारा विकास नहींहो सकेगा।

    सड़ जाता है ठहरा जल

    वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो संसार में कोई भी पदार्थ नहीं, जो स्थिर रहता है। उसमें कुछ न कुछ परिवर्तन सदैव होता रहता है। इसी तरह समाज में भी परिवर्तन होता है। समाज शास्त्री मैकाइवर का कहना है कि समाज परिवर्तनशील है। यदि हम समाज में निरंतरता को बनाए रखना चाहते हैं तो हमें यथास्थिति को छोड़ अपने आचार-व्यवहार को परिवर्तनोन्मुख बनाना ही होगा। तभी हमारी प्रगति संभव है। इसके उलट, यदि हम परिवर्तन को स्वीकार नहीं करते, तो हम रूढि़वादी हो जाते हैं। ठहरे हुए जल की तरह, जिसका सड़ना निश्चित है। रूढि़वादी लोग स्त्री स्वतंत्रता, समान अधिकार, स्त्रियों की शिक्षा आदि शुभ परिवर्तनों को स्वीकार नहीं कर पाते और अंदर ही अंदर दुखी होकर स्वयं को जलाते रहते हैं।

    मुश्किलों से आती है ऊर्जा

    परिवर्तन को स्वीकारना साहस का काम है। क्योंकि इसके लिए गतिशील-कर्मशील होना होगा, जीवन में आई मुश्किलों से संघर्ष करना होगा। संघर्ष ही हमारे जीवन में विकास के बीज बोता है। एक लोक कथा है। एक बार एक किसान भगवान से नाराज हो गया कि वे कभी बारिश-ओले से फसल चौपट कर देते हैं, तो कभी तूफान से। उसने भगवान से प्रकृति का संचालन एक साल के लिए अपने हाथ में ले लिया। उसकी फसलों के लिए जितनी जरूरत थी, किसान ने उतना पानी बरसाया। तूफान आने नहीं दिया। जब धूप की जरूरत हुई तो सूरज चमका दिया। उसने फसल के हर खतरे को रोक दिया। सचमुच गेहूं की फसल बहुत अच्छी हुई। बड़ी-बड़ी बालियां लग गईं, लेकिन जब फसल काटी गई, तो पता चला कि बालियों के अंदर गेहूं के दाने तो थे ही नहीं। फिर किसान भगवान से बोला, 'भगवन, यह आपने क्या किया।' भगवान ने कहा, 'जो किया, तुमने ही किया। बालियों में बीज इसलिए नहीं आए, क्योंकि पौधों को तुमने चुनौती दी ही नहीं। उनके पास कोई संकट नहीं था। गेहूं के पौधे संघर्ष की अपनी ताकत खो चुके थे। ऐसे में उनकी सृजनात्मकता भी खो चुकी थी।'

    जीवन का स्वाद

    इसी तरह हमारे जीवन में जो विपरीत परिस्थितियां आती हैं, वे ही हमारे विकास और सृजनात्मकता में सहायक बनती हैं। बस, हमें बिना आपा खोए उनसे संघर्ष करना चाहिए। अगर हम यह चाहते हैं कि हमारे जीवन में अच्छा ही घटित होता रहे और बुरा कुछ भी न हो, तो यह अच्छा भी बुरा लगने लगेगा। जीवन में दुख और सुख दोनों ही आते हैं। हम हमेशा मीठा ही खाते रहें, तो उससे ऊब जाएंगे। लेकिन यदि नमकीन खाने के बाद मीठा खाएंगे, तो वह ज्यादा स्वादिष्ट लगेगा। इसलिए जीवन में आए परिवर्तनों को स्वीकारें और जीवन के स्वाद का पूरा आनंद लें।