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    जीवन में बौद्धिक विकास से ज्यादा जरूरी है भावनात्मक विकास

    जीवन में बौद्धिक विकास से ज्यादा जरूरी है भावनात्मक विकास। सुख-शांति हासिल करने और सफल व सार्थक जीवन जीने के लिए भावनात्मक विकास के लक्ष्य पर ध्यान देना जरूरी है ताकि हर व्यक्ति अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कर सके। जैसे मजबूत नींव पर बहुमंजिले भवन की स्थिरता बनी रहती है

    By Preeti jhaEdited By: Updated: Mon, 20 Jul 2015 12:33 PM (IST)
    जीवन में बौद्धिक विकास से ज्यादा जरूरी है भावनात्मक विकास

    जीवन में बौद्धिक विकास से ज्यादा जरूरी है भावनात्मक विकास। सुख-शांति हासिल करने और सफल व सार्थक जीवन जीने के लिए भावनात्मक विकास के लक्ष्य पर ध्यान देना जरूरी है ताकि हर व्यक्ति अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कर सके। जैसे मजबूत नींव पर बहुमंजिले भवन की स्थिरता बनी रहती है वैसे ही भावना हमारे जीवन की नींव है। हमारी भावना जितनी सकारात्मक और नियंत्रित होगी, हमारा जीवन उतना ही सफल और सार्थक बनेगा।
    भावनाओं पर अनियंत्रण से ही जीवन लड़खड़ाने लगता है। तभी तो आए दिन जीवन में भावनात्मक समस्याएं बढ़ती हुई नजर आ रही हैं। आपके व्यवहार में आपकी भावनाएं जैसे क्रोध, ईष्र्या, उल्लास, खुशी, निराशा, पीड़ा-कैसे अभिव्यक्त होती हैं, इसका सीधा प्रभाव मनुष्य के अवचेतन मन पर पड़ता है। आपका व्यवहार खींचे हुए फोटो की तरह मनुष्य के अवचेतन मन में फीड हो जाता है। दूसरी बात आप क्रोध और हर्ष की स्थिति में दूसरों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं, इसका भी प्रभाव आपके भावनात्मक विकास पर पड़ता है। आज यह मुद्दा चिंता का विषय बनता जा रहा है कि व्यक्ति का अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं है। इन्हीं स्थितियों में व्यक्ति निराशा से अपने जीवन को कुंठित कर देता है, क्योंकि वह ईष्र्या, क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं का सामना नहीं कर पाता।
    भावनात्मक प्रतिभा के विकसित न होने के कारण ही भावना के प्रवाह में व्यक्ति अपने को नहीं संभाल पाता। नतीजतन अनहोनी घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती हैं। ये घटनाएं हमें चेतावनी देती हैं कि आधुनिक मनुष्य किस भावदशा में अपनी जिंदगी जी रहे हैं। जेटयुग में जीने वाले व्यक्ति के बौद्धिक विकास का स्तर तो अच्छी तरह बढ़ रहा है, पर भावनात्मक विकास का स्तर घट रहा है। इसके कारण उसके जीवन में एक ठहराव-सा आ जाता है। उसे क्या करना है, कैसे करना है, इस तरह की वह कोई प्लानिंग ही नहीं कर पाता। ऐसा लगता है निषेधात्मक विचारों का कुछ ज्यादा ही दबाव मनुष्य के जीवन पर आ जाता है। इस कारण वह किसी के साथ सही तरीके से न रिश्ते निभा पाता है और न ही तालमेल बिठा पाता है। तभी तो आज भावनात्मक विकास का महत्व बढ़ रहा है

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