क्रिया योग: जीवन को बनाए रखने का कौशल है ध्यान
परमहंस योगानंद जी सदा यह कहा करते थे जन्म-जन्मांतर के दौरान जारी आत्मा की विकास-यात्रा में प्रत्येक मनुष्य एक ऐसे स्थान पर पहुंचता है जहां वह विचार करता है कि इंद्रियों को संतुष्ट करने से मैं असंतुष्ट ही रहूंगा क्योंकि मैं स्वयं इंद्रियां नहीं हूं। परमहंस योगानंद जी की पुस्तक योगी कथामृत अथवा जहां है प्रकाश एक प्रकार से लोगों के लिए ध्यान के प्रवेश द्वार का कार्य करती है।

स्वामी चिदानंद गिरि । जैसे-जैसे संसार अधिक से अधिक जटिल होता जा रहा है, अधिक से अधिक भौतिकता की ओर आकर्षित हो रहा है, लोग यह अनुभव कर रहे हैं कि ध्यान जीवन को बनाए रखने का एक कौशल है। यदि आपके लिए उस प्रकार की आंतरिक शांति का झरना या स्रोत उपलब्ध नहीं है तो आप चूर-चूर होकर बिखर जाएंगे। लोगों को किस बात से प्रेरणा मिलेगी और वे ध्यान के लिए समय कैसे निकाल सकते हैं, इस संदर्भ में आप उनसे यह प्रश्न कर सकते हैं कि वे सोने के लिए समय कैसे निकालते हैं, भोजन करने के लिए समय कैसे निकालते हैं? क्योंकि आप यह मानते हैं कि ये कार्य अनिवार्य हैं। जैसे-जैसे समाज में अधिक और अधिक पागलपन बढ़ता जा रहा है, यूरोप, अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, आस्ट्रेलिया और भारत में लोगों ने यह अनुभव किया है कि, 'अपनी मानवता और अपने विवेक पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए मुझे आत्मा की सचेतनता के साथ संपर्क स्थापित करना सीखना होगा।'
परमहंस योगानंद जी सदा यह कहा करते थे, 'इसे करके देखें और तुलना करें।' जन्म-जन्मांतर के दौरान जारी आत्मा की विकास-यात्रा में, प्रत्येक मनुष्य एक ऐसे स्थान पर पहुंचता है, जहां वह विचार करता है कि, 'इंद्रियों को संतुष्ट करने से मैं असंतुष्ट ही रहूंगा, क्योंकि मैं स्वयं इंद्रियां नहीं हूं।' हम सबने यह अनुभव किया है। हम उन लोगों की आलोचना नहीं कर रहे हैं, जो कामवासना या मदिरा या समृद्धि इत्यादि के पीछे दौड़ रहे हैं। जब कोई व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग के प्रति गंभीर रूप से प्रतिबद्ध होना आरंभ करता है तो इसका कारण यह होता है कि उसने वह सब कुछ करके देख लिया है और अंत में उसे इन सबसे कोई संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई है।
दूसरी ओर, किसी ऐसे व्यक्ति को विश्वास दिलाना अत्यंत कठिन है, जो अभी तक उस स्थान तक नहीं पहुंचा है। आप किसी को भाषण देते हुए यह नहीं कह सकते हैं, 'यह मत करो, तुम्हारे लिए यह अनुचित है।' जब आप एक बच्चे थे और आपकी मां आपसे ऐसा कुछ कहती थीं और उनके वहां से हटते ही आप पुनः वही करना चाहते थे। ऐसा करने से कोई लाभ नहीं होगा। उचित मनोवृत्ति यही है, 'ध्यान करके देखें और तत्पश्चात तुलना करें।'
परमहंस योगानंद जी की पुस्तक योगी कथामृत अथवा जहां है प्रकाश एक प्रकार से लोगों के लिए ध्यान के प्रवेश द्वार का कार्य करती है। जो ध्यान में प्रवेश करना चाहते हैं, उन्हें हम ये पुस्तकें देते हैं। तत्पश्चात उन्हें गुरुदेव परमहंस योगानंद जी द्वारा प्रदत्त अद्भुत योगदा सत्संग पाठमाला के परिचय को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इस परिचय का शीर्षक है, 'आत्म-साक्षात्कार के उच्चतम स्तर।' शीर्षक में ही यह कहा गया है कि यदि आप अपने जीवन में कुछ प्राप्त करना चाहते हैं, तो इसे पढ़ें और देखें कि आप क्या अनुभव करते हैं। इसमें ध्यान की नियमित दिनचर्या से संबंधित निर्देश प्रदान किए जाते हैं। कुछ महीनों में प्रविधियां और नौ या दस महीनों के बाद ध्यान करने हेतु हर प्रकार की सक्षमता प्रदान करने के लिए आपके पास सब प्रकार के साधन उपलब्ध होते हैं।
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