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    श्रीकृष्ण के वचन...

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Sat, 29 Nov 2014 12:47 PM (IST)

    श्रीमद्भगवद्गीता में हमें जीवनोपदेशक कृष्ण के दर्शन होते हैं। गीता जयंती पर जानें गीता में कृष्ण के कुछ उपयोगी वचन...

    श्रीमद्भगवद्गीता में हमें जीवनोपदेशक कृष्ण के दर्शन होते हैं। गीता जयंती पर जानें गीता में कृष्ण के कुछ उपयोगी वचन...

    हे अर्जुन। तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में नहीं। इसलिए तू कर्र्मों के फल का हेतु न बन तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो। (2/43)

    विषयों का चिंतन करते रहने से मनुष्य के मन में उनके प्रति आसक्ति पैदा होती है, जो चाह को जन्म देती है। इससे क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से चित्त में मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति-विभ्रम पैदा हो जाता है। स्मृति के लोप से उचित-अनुचित का विचार करने वाली बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि के नाश से स्वयं मनुष्य का ही नाश हो जाता है। (2/62-63)

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    जो मूढ़बुद्धि इंद्रियों को हठपूर्वक रोक कर मन से उनका चिंतन करता है, वह मिथ्याचारी है। जो इंद्रियों को मन से संयत कर निरासक्त होता है, वही कर्मयोग का आचरण श्रेष्ठ है। (3/6-7)

    जो सब भावों में द्वेष भाव से रहित, स्वार्थ रहित, सबका प्रेमी और हेतु रहित दयालु है तथा ममता व अहंकार से रहित सुख-दुख में समान और क्षमावान है, निरंतर संतुष्ट है, मन सहित शरीर को वश में किए है और दृढ़ निश्चय वाला है, वह भक्त मुझको प्रिय है। (12/13-14)

    मन की प्रसन्नता, शांत भाव, भगवत चिंतन का स्वभाव, मन का निग्रह और अंत:करण के भावों की पवित्रता मन संबंधी तप कहे जाते हैं। (17/16)